मुंबई। धर्म के ऊपर मानवता को रखते हुए महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक मुस्लिम महिला ने कोविड-19 से मृत एक हिन्दू व्यक्ति का पूरे रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया, क्योंकि कोरोनावायरस संक्रमित होने के कारण उसके करीबी रिश्तेदार अंत्येष्टि में नहीं आ सके। कोल्हापुर के एस्टर आधार अस्पताल में वरिष्ठ प्रबंधक के पद पर कार्यरत आयेशा राउत ने कोविड-19 महामारी के दौरान आगे बढ़कर एक बुजुर्ग हिन्दू व्यक्ति का दाह-संस्कार किया। उन्होंने मानवता से भरा यह कदम ऐसे वक्त में उठाया है, जब रिश्तेदार और परिजन भी कोविड-19 से मरने वाले प्रियजन का अंतिम संस्कार करने से कतरा रहे हैं।
कोविड-19 से 1 सप्ताह से जूझने के बाद 9 मई को सुधाकर वेदक (81) की एस्टर आधार अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। राउत ने उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज के साथ किया। बातचीत में राउत ने बताया कि रमजान के महीने में जकात के तौर पर उनके परिवार ने कोल्हापुर के श्मशान और कब्रिस्तान में काम करने वालों को पीपीई किट बांटने का फैसला लिया था। उन्होंने बताया कि मैं पंचगंगा श्मशान घाट पर पीपीई किट बांट रही थी, तभी मुझे डॉक्टर हर्षला वेदक का फोन आया कि उनके पिता सुधाकर वेदक की रविवार (9 मई) को मृत्यु हो गई है।
डॉक्टर वेदक ने राउत से पूछा कि क्या वे पंचगंगा श्मशान में उनके पिता का अंतिम संस्कार कर सकती हैं, क्योंकि उनका पूरा परिवार कोरोनावायरस से संक्रमित होने के कारण आने में असमर्थ है। राउत और डॉक्टर वेदक एक-दूसरे को पेशे के कारण जानते हैं। डॉक्टर वेदक मुंबई से करीब 275 किलोमीटर दूर सरकारी छत्रपति प्रमिला राजे अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर हैं।
राउत ने कहा कि मुझे तकलीफ हुई कि सुधारकर वेदक के परिवार से कोई भी अंतिम संस्कार में नहीं आया था। इसलिए मैंने डॉक्टर वेदक को फोन किया और उनके पिता का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी। उन्होंने बताया कि उनकी (डॉक्टर वेदक) अनुमति से मैंने पीपीई किट पहना और हिन्दू रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया। डॉक्टर वेदक ने इसके लिए राउत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि जब किसी रिश्तेदार/परिजन की मृत्यु होती है तो परिवार को दुख होता है, लेकिन कोविड-19 पाबंदियों के कारण जब लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाते, वहां पहुंच नहीं पाते हैं तो उन्हें ज्यादा दुख होता है। सुधाकर वेदक का स्वास्थ्य शुक्रवार को बिगड़ा और रविवार को उनकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर वेदक ने बताया कि 3 बहनों में वे सबसे बड़ी हैं और 3 साल पहले जब कैंसर से उनकी मां की मृत्यु हुई थी तो दाह-संस्कार कर्म उन्होंने ही किया था।
उन्होंने कहा कि हमारे माता-पिता को हमेशा अपनी बेटियों पर गर्व रहा था और हमें कभी कोई भेदभाव नहीं झेलना पड़ा। ऐसे में एक महिला का मेरे पिता का दाह-संस्कार करना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। उन्होंने कहा कि राउत का धर्म भी मायने नहीं रखता। डॉक्टर ने कहा कि मुसलमान होकर आयेशा का दाह-संस्कार करना कोई मुद्दा नहीं था। वास्तव में हम सभी इसके लिए उनके आभारी हैं। मैं आयेशा को पेशे के कारण पिछले कुछ साल से जानती हूं। (भाषा)