- लॉकडाउन खुलने की स्थिति में ‘आर’ यानी री-प्रोडक्टिव का स्तर बढ़ेगा
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कई देशों में लॉकडाउन खोल दिया गया है ऐसे में कोरोना वायरस की आशंका फिर से बढ़ गई है।
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अब सेकंड वेव का खतरा बढ़ गया है जैसा कि छूट मिलते ही लोगों ने मिलना-जुलना शुरू कर दिया है।
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मेडिकल के प्रोफेसर और विशेषज्ञों ने ने भी इस आशंका से इनकार नहीं किया है। उन्होंने रिसर्च में बताया है कि कैसी हो सकती है वायरस की दूसरा दौर।
किसी भी तरह के वायरस को फैलने के लिए एक ‘होस्ट’ और एक ‘सक्सेसफुल ट्रांसमिशन’ की जरुरत होती है। अगर यह दोनों वायरस को मिल जाए तो उसके फैलने का रास्ता साफ हो जाता है। कई देशों में लॉकडाउन खुलने के बाद वायरस को यही दो चीजें मिल सकती है। जिसके बाद कोरोना वायरस के दूसरे दौर का का खतरा बढ़ गया है।
वहीं जब तक किसी भी कम्युनिटी में एक भी संक्रमित व्यक्ति है और वह बाकी लोगों के संपर्क में आता है तो 'आर' यानी री-प्रोडक्टिव का स्तर उछलेगा।
फरवरी और मार्च 2020 में वायरस की तेजी से शुरुआत हुई थी, ऐसे में कई देशों ने लॉकडाउन लागू करना शुरू किया था। जिन देशों ने समय पर ऐसा नहीं किया वहां वायरस एंट्री कर चुका था, जबकि स्लोवेनिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने समय रहते लॉकडाउन लगाया जिससे इन देशों की बॉर्डर पर ही वायरस रुक गया था।
लेकिन अब चूंकि लॉकडाउन में कई देशों ने छूट देना शुरू की है, ऐसे में कोरोना की सेकंड वेव के पसरने का अंदेशा मंडराने लगा है। हाल ही में जो नए मामले सामने आ रहे हैं उसमें एक दूसरे से संक्रमण ही एक कारण ज्यादा सामने आ रहा है। जब तक किसी भी देश की जनसंख्या में एक भी संक्रमित व्यक्ति मौजूद है तब तक वायरस का खतरा बरकरार रहेगा।
डॉक्टर भी इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं।
इंदौर में स्वास्थ्य विभाग में मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी सीएमएचओ डॉ प्रवीण जडिया ने वेबदुनिया को बातचीत में बताया,
‘लोग अगर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करेंगे और पहले जैसी ही आदतों को दोहराएंगे तो निश्चित तौर पर वायरस के दूसरे दौर का खतरा हमारे ऊपर मंडराता रहेगा। यहां तक कि सरकार फिर से लॉकडाउन के बारे में भी विचार कर सकती है। ऐसे में अब जिंदगी को पूरी तरह से नए तरीके से ही जीना होगा’
दुनिया की रिसर्च बताती है कि वायरस ने अब तक सिर्फ लो इम्युनिटी को ही प्रभावित किया है। लेकिन अब यह हार्ड इम्युनिटी को भी प्रभावित कर सकता है। वहीं दुनिया में ऐसी कम्युनिटी भी है जहां वायरस न सिर्फ जिंदा रहेगा बल्कि वहां से दूसरी जगह भी फैल सकता है।
अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक डॉक्टर कहते हैं कि एपिडेमिक सर्दियों के मौसम में आने वाले फ्लू के साथ भी शामिल हो सकता है। ऐसे में हमें अपने हेल्थ सिस्टम को और ज्यादा सुधारने की जरुरत होगी।लेकिन अगर हम मास्क पहनने और हाथ धाने की आदत के साथ ही रहे तो इसका खतरा काफी कम हो सकता है।
क्या कहती है दुनिया की रिपोर्ट: हमेशा आता है महामारी का दूसरा दौर
डब्लूएचओ के महानिदेशक ने कहा है कि अगर लॉकडाउन हटा तो इस महामारी के दूसरे दौर में उछाल आ सकता है। पिछले दिनों चीन दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में ऐसा हुआ है। मामलों में कमी आने को यह नहीं मान सकते कि आगे भी ऐसा होता रहेगा। आशंका है कि दुनिया इसके दूसरे दौर का शिकार हो जाए।
क्या है आर… री- प्रोडक्टिव नंबर?
जब तक किसी भी कम्युनिटी में एक भी संक्रमित व्यक्ति है और वो अपने आसपास के दो या तीन या इससे ज्यादा लोगों को संक्रमित करता रहेगा यह वायरस खत्म नहीं होगा। इसे ही ‘आर’ यानी री-प्रोडक्टिव नंबर कहा जाता है। लॉकडाउन खुलने की स्थिति में री-प्रोडक्टिव का स्तर बढ़ेगा।
क्यों है दूसरे दौर की आशंका?
मध्यकाल में ब्लैक डेथ बीमारी के कई दौर आए। प्लेग भी बार-बार लोगों को संक्रमित करता रहा। कहा जाता है कि स्पेनिश फ्लू का भी दूसरा दौर आया था और उसमे ज्यादा लोगों की मौतें हुईं थीं। कुछ ही साल पहले सार्स और मर्स जैसे संक्रमण भी दोबारा आए थे, लेकिन तब तक दुनिया के पास एक अच्छा हेल्थ सिस्टम था इसलिए उसे रोक लिया गया। स्वाइन फ्लू का भी दूसरा दौर आ चुका है।
वहीं कोविड 19 की बात करें तो यह दूसरे वायरस से ज्यादा खतरनाक है। ऐसे में जब तक एक संक्रमित व्यक्ति दो या तीन स्वस्थ्य लोगों को संक्रमित करता रहेगा यह खत्म नहीं होगा। इसी सिलसिले को री-प्रोडक्टिव यानी आर नंबर कहा जाता है।