नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने उस अध्ययन को लेकर चिंता व्यक्त की है, जिसमें यह कहा गया है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति में आवारा कुत्तों की भूमिका हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे काल्पनिक अध्ययन के कारण लोग अपने पालतू कुत्तों को छोड़ सकते हैं। ऐसे में इस तरह के अध्ययन के प्रायोगिक प्रमाण की आवश्यकता है।
इस महीने की शुरुआत में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में छपे इस अध्ययन में आवारा कुत्तों, विशेषकर उनकी आंत और कोरोना वायरस की क्रमिक उन्नति में संभावित संबंध दर्शाया गया है।
कनाडा के ओटावा विश्वविद्यालय के लेखक जुहुआ जिया के अध्ययन के मुताबिक यह संभावना है कि आवारा कुत्तों की आंतों ने अन्य मजबूत प्रतिरक्षा वाले स्तनधारियों की तुलना में कोरोना वायरस के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराया हो। कई वैज्ञानिकों ने अध्ययन के तहत निष्कर्षों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
कोलकाता के भारतीय रासायनिक जीव विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक सुभाजीत बिस्वास ने पीटीआई-भाषा से कहा कि यह अध्ययन सैद्धांतिक है। यह प्रयोगशाला में कार्यात्मक प्रयोगों के प्रमाण को मुहैया नहीं कराता जो कि यह साबित करे कि यदि अध्ययन में दर्शाए गए निश्चित बदलावों को अपनाया जाए तो वायरस कम घातक साबित होगा।
विषाणु विज्ञानी उपासना रे ने कहा कि इस बात की 'संभावना' है कि कुत्ते की आंत एसएआरएस-सीओवी-2 की क्रमागत उन्नति में मददगार साबित हुई हो लेकिन यह एक परिकल्पना है। उन्होंने कहा कि बेहतर है कि इसे कुत्तों पर न डालें क्योंकि हमारे पास प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं। (भाषा)