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Global Warming से भारतीयों के दिमाग में बढ़ती गर्मी, महिलाओं के साथ हिंसा में इजाफा, 2090 तक और बढ़ेगी मारपीट

भारत, नेपाल और पाकिस्तान की 1 लाख 95 हजार से ज्‍यादा महिलाओं ने किया हिंसा का खुलासा

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नवीन रांगियाल

  • तापमान में 1 डिग्री इजाफे से भारत में 8 प्रतिशत बढ़ी घरेलू हिंसा (Domestic Violence)
  • 21वीं सदी के अंत में (2090 तक) परिवारिक हिंसा में 21 प्रतिशत की वृद्धि होगी
  • गर्मी की वजह से महिलाएं हो रहीं शारीरिक, भावनात्‍मक और यौन हिंसा का शिकार
  • चीन, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, तंजानिया और इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने की यह इंटरनेशनल स्‍टडी (JAMA PSYCHIATRY)
Global Warming and domestic violence : ग्‍लोबल वार्मिंग (Global Warming) आमतौर पर प्राकृतिक आपदाएं लेकर आती है, लेकिन कोई यह कहे कि ग्‍लोबल वार्मिंग से रिश्‍ते भी तबाह होते हैं तो शायद यकीन नहीं होगा। लेकिन यकीन करना होगा कि ग्‍लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ता टेंपरेचर भारतीयों के दिमाग में भी गर्मी बढ़ा रहा है।
दरअसल, गर्मी की वजह से दुनिया में घरेलू हिंसा (Domestic Violence) की घटनाओं में जबरदस्‍त इजाफा हुआ है। गर्मी की वजह से पति-पत्‍नी और कपल्‍स के रिश्‍ते (Relationship) खराब हो रहे हैं। साल 2010 से लेकर 2018 तक की गई एक स्‍टडी (JAMA PSYCHIATRY) सामने आई है, जिसमें भारत, नेपाल और पाकिस्तान की 1 लाख 95 हजार से ज्‍यादा महिलाओं ने घरेलू हिंसा की शिकायत की है। 15 से लेकर 49 साल उम्र तक की महिलाओं ने खुलासा किया कि उनके पति या पार्टनर ने उनके साथ शारीरिक और मानसिक हिंसा की।
दुनियाभर के वैज्ञानिक इन हिंसाओं के पीछे की वजह दुनिया का बढ़ता तापमान बता रहे हैं। यानी दिमाग पर चढ़ी गर्मी की वजह से लोग हिंसक हो रहे हैं। चिंता वाली बात तो यह है कि जैसे-जैसे (Climate Change) गर्मी का पारा बढ़ेगा, महिलाओं के प्रति हिंसा की घटनाओं में भी इजाफा होता जाएगा और भारत इस मामले में सबसे आगे रहेगा।पढ़िए गर्मी की वजह से दुनिया में बढ़ती हिंसा पर ये विस्‍तृत रिपोर्ट।
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1 लाख 95 हजार महिलाओं ने किया हिंसा का खुलासा
भारत, नेपाल और पाकिस्तान की 1 लाख 95 हजार से ज्‍यादा महिलाओं पर स्‍टडी की गई। (अध्ययन में उन महिलाओं को शामिल किया गया जो शादीशुदा हैं या लव रिलेशनशिप में हैं)

इस स्‍टडी को दुनिया में बढ़ते ग्‍लोबल वार्मिंग और इसकी वजह से बढ़ रहे वैश्‍विक तापमान को साथ में रखकर विश्‍लेषण किया गया। देखा गया कि बढ़ता तापमान कैसे मानव स्‍वभाव पर असर डाल रहा है और फिर यह कैसे घर में पति-पत्‍नी के बीच रिश्‍तों को खराब कर रहा है। अध्‍ययन में 1 लाख 95 हजार से ज्‍यादा महिलाओं ने स्‍वीकार किया कि उनके साथ शारीरिक हिंसा, मानसिक हिंसा, भावनात्‍मक हिंसा और यहां तक कि यौन हिंसा किसी न किसी रूप में हुई है।

इतने प्रतिशत बढ़ी हिंसा : अध्ययन में साफ कहा गया कि वैज्ञानिकों ने जब महामारी-विज्ञान और अधिक तापमान का विश्‍लेषण किया गया तो पता चला कि बढ़ते तापमान के साथ महिलाओं के साथ इंटिमेट पार्टनर द्वारा वायलेंस की घटनाएं बढ़ गई हैं। तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के साथ शारीरिक हिंसा में 8% की वृद्धि और यौन हिंसा में 7.3% की वृद्धि हुई है। दरअसल, जब सालाना तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो IPV (intimate partner violence) की मात्रा 4.9 फीसदी बढ़ जाती है।
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इन देशों ने 8 साल तक की स्‍टडी
JAMA PSYCHIATRY ने साल 2010 से लेकर 2018 तक करीब 8 साल तक यह स्‍टडी की गई। चीन, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, तंजानिया और इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने की यह इंटरनेशनल स्‍टडी की और तमाम तरह के निष्‍कर्ष पर पहुंचे। इतना ही नहीं, इन वैज्ञानिकों ने आने वाले समय के लिए भी चेतावनी जारी की और बताया कि आने वाले दिनों में किन देशों में गर्मी की वजह से कितना खतरनाक असर होने वाला है।

2090 तक बढ़कर 23.5 फीसदी हो जाएगा IPV का स्तर
अध्ययन में वर्ष 2090 तक जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी बढ़ने पर शारीरिक और यौन हिंसा क्रमश: 28.3 प्रतिशत और 26.1 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी। भारत में IPV (intimate partner violence) का स्तर 2090 तक बढ़कर 23.5 फीसदी हो जाएगा। इसके बाद 14.8 फीसदी की दर के साथ नेपाल दूसरे नंबर पर रहेगा। जबकि, 5.9 फीसदी के साथ पाकिस्तान सबसे कम IPV (intimate partner violence) वाला देश होगा। इस स्टडी का एनालिसिस 2 जनवरी 2022 से 11 जुलाई 2022 तक किया गया है।

क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग का असर सबसे ज्यादा भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप में देखने को मिला है। इन देशों के कई शहरों में लगातार हीटवेव की आपदा आई है। IPV का 4.9 फीसदी बढ़ने का मतलब है घरेलू हिंसा की संख्या में 6.3 फीसदी का इजाफा। जिसमें शारीरिक और यौन घरेलू हिंसा भी शामिल हैं।

क्‍यों बढ़ रहा IPV का स्‍तर : दरअसल, IPV (intimate partner violence) का स्‍तर बढ़ता जा रहा है। यह लगातार कार्बन उत्सर्जन की वजह से हो रहा है। दूसरी तरफ तापमान का बढ़ना रुक नहीं रहा है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को रोका नहीं गया तो यह मानव स्‍वभाव पर भी असर डालेगा। ऐसे में यह स्थिति बनने में देर नहीं लगेगी कि महिलाओं के साथ हिंसा के मामले बढ़ते चले जाएं। वैज्ञानिकों के अनुमान है कि सदी के अंत तक शारीरिक हिंसा के मामले 28.3 फीसदी, यौन हिंसा बढ़कर 26.1 और भावनात्मक हिंसा 8.9 फीसदी हो सकती है।
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पक्षियों में भी होने लगा ब्रेकअप
दिलचस्‍प बात तो यह है कि इन दिनों गर्मी के बढ़ते तापमान और धोखेबाज प्रवृति की वजह से पक्षियों में भी ब्रेकअप की घटनाएं सामने आ रही हैं। एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि पहले करीब 90 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियां उम्रभर एक ही साथी के साथ रहती थीं, लेकिन अब दूरियां और धोखेबाजी की वजह से पक्षियों में भी ब्रेकअप बढ़ रहे हैं। उल्‍लेखनीय है कि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग के साथ मौसमी आपदाओं के कारण पक्षियों में कई बदलाव हो रहे हैं। उनके उड़ने और प्रजनन की क्षमता और मानसिक स्थिति बिगड़ रही है। जिसकी वजह से वे अपने लॉन्‍ग टाइम पार्टनर को छोड़ देते हैं।
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क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ
तापमान हेल्‍थ पर करता है असर
इंदौर की प्रसिद्ध गायनाकोलॉजिस्‍ट डॉ शैफाली जैन ने वेबदुनिया को बताया कि ग्‍लोबल वार्मिंग की वजह से गर्भवति महिलाओं की सेहत पर कोई असर पड़ा हो ऐसा अभी तक तो देखने में नहीं आया है, लेकिन आमतौर पर हम आईवीएफ जैसी प्रक्रिया गर्मी के दिनों में टालने की कोशिश करते हैं, क्‍योंकि इसके लिए एक खास तरह के टेंपरेचर की जरूरत होती है। हालांकि पुरुषों की सेहत को तापमान जरूर प्रभावित करता है। मसलन, ज्‍यादा गर्म पानी से नहाना और बहुत ज्‍यादा चाय-कॉफी पीने से स्‍पर्म लॉस हो सकते हैं। वेल्‍डिंग मशीन का काम करने वाले लोगों में हीट की वजह से स्‍पर्म लॉस हो सकता है। गर्मी के मौसम में स्‍पर्म डेवलेपमेंट भी उतना अच्‍छा नहीं माना जाता है।

घोषणापत्र में शामिल करना चाहिए
मनोचिकित्‍सक और विचारक डॉ सत्‍यकांत त्रिवेदी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन मानसिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी करने वाला हो सकता है। विशेषकर बढ़ती गर्मी, मस्तिष्क के रसायनों, और तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुंचाती है। इसके कारण पहले की तुलना में लोगों में चिड़चिड़ाहट, तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। अगर इन समस्याओं पर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो इसके कारण आत्महत्या के मामले बढ़ने का खतरा हो सकता है। मौसम में हो रहा यह बदलाव इंसानी सेहत के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला है।

अब समय आ गया है जब राजनीतिक पार्टियों को पानी, बिजली और शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ जलवायु परिवर्तन की रोकथाम विषय को भी घोषणापत्र में शामिल करना चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर हमें भी इससे संबंधित खतरे को समझते हुए, अपने वजूद को बचाने की कोशिश करनी होगी, वरना आने वाली पीढ़ियों को हम जवाब नहीं दे पाएंगे।

क्‍यों होता है ऐसा : वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्म जलवायु, जिसमें अधिक तीव्र और बार-बार चलने वाली लू होती है, से मस्तिष्क के थर्मोरेग्यूलेशन और भावना से जुड़े क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में ये उत्तेजना जैसी स्थितियां पैदा कर ज्‍यादा आक्रामक बना देती है। अधिक समय तक गर्मी के संपर्क में रहने से अड्रेनलिन हार्मोन सक्रिय होकर उत्तेजना बढ़ा सकता है।

कुल मिलाकर रिपोर्ट से यही सामने आया है कि गर्मी का तापमान उत्‍तेजना बढ़ाता है। ऐसे हार्मोन्‍स सक्रिय होते हैं, जिससे पुरुष आक्रामक हो जाता है। जिसका परिणाम कई बार हिंसा के रूप में सामने आता है।

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