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2050 तक हो जाएगा भारत के वनों का विनाश, मोदी से राहुल तक किसी राजनितिक दल के एजेंडे में प्रमुखता से नहीं पर्यावरण

वन्‍य विनाश के मामले में ब्राजील के बाद दूसरे नंबर पर पहुंचा भारत

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नवीन रांगियाल

Indian Forest Loss : जून महीने की शुरुआत में भोपाल में करीब 20 साल पुराने बरगद और पीपल के दो पेड़ों को बचाने के लिए लोग सड़क पर उतर आए थे। ये पेड़ सड़क किनारे हैं, जिन्हें पीडब्ल्यूडी (PWD) सड़क बनाने के लिए हटा रहा था। लेकिन कुछ मासूम बच्चे हाथों में पोस्टर लेकर पेड़ों से चिपक गए। बच्‍चों ने मध्‍यप्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान से पेड़ न काटने की विनती की थी। सीएम चौहान ने वीडियो जारी कर कहा-- पेड़ नहीं हटेंगे। सड़क को डायवर्ट कर देंगे, पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसे आंदोलन होते रहना चाहिए।

सीएम शिवराज का ये मैसेज अच्‍छा था, लेकिन बदकिस्‍मती है कि यह जमीनी हकीकत नहीं है। न ही पूरे देश के जनप्रतिनिधियों के लिए वन्‍य और पर्यावरण का संरक्षण प्राथमिकता है। जिसका दुष्‍परिणाम यह है कि भारत में वन्‍य क्षेत्र (Deforestation and Forest Loss) लगातार घटता जा रहा है। आलम यह है कि दुनिया में वन विनाश के मामले में भारत ब्राजील के बाद दूसरे स्‍थान पर है।
रिपोर्ट कहती कि अगले 10 साल से कम समय में 45 से 64 फीसदी जंगल क्षेत्र पर क्लाइमेट चेंज हॉटस्पॉट यानी जलवायु परिवर्तन (Climate change) का बुरा असर होगा। साल 2050 तक देश का सारा जंगल ही इसकी चपेट में आ सकता है। 

खतरे में वन : पिछले कुछ सालों में आई रिपोर्ट पर नजर डाले तो पता चलता है कि देश का वन क्षेत्र लगातार खतरे में आ रहा है। घटते वन्‍य क्षेत्र से जलवायु, गर्मी, बारिश के असंतुलन के साथ ही ग्‍लेशियर पिघलने जैसे बड़े खतरे सामने आ रहे हैं। वहीं वन्‍य प्राणियों का जीवन खतरे में आ रहा है। साल 2027 तक इस दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ जाएगा। गर्मी इतनी बढ़ चुकी है कि लोग अब ट्रैफिक सिग्‍नल पर कुछ सेकंड भी खड़े नहीं हो पा रहे हैं, वे आसपास पेड़ों की छांव ढूंढने लगे हैं। हैबिटाट डिस्‍ट्रक्‍शन (प्राकृतिक आवास) की वजह से वन्‍य प्राणी शहरों की तरफ भाग रहे हैं। जानवरों का जंगलों से ये पलायन खुद वन्‍य प्राणियों और इंसान दोनों के लिए खतरा हो गया है।
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भारत में घटते वन्‍य क्षेत्र को लेकर वेबदुनिया ने यह रिपोर्ट तैयार की है। आइए जानते हैं देश में कहां-कहां और कितना वन्‍य क्षेत्र घट रहा है।
भारत : कितना वन क्षेत्र हुआ नष्ट?
मार्च 2023 में डेटा एग्रीगेटर अवर वर्ल्ड इन डेटा के नाम से एक रिपोर्ट जारी हुई थी। जिसमें 1990 से 2000 और 2015 से 2020 के आंकड़ों की मदद से पिछले 30 साल में दुनिया के 98 देशों में वनों की कटाई को लेकर रिसर्च की गई। इस रिपोर्ट में सामने आया था कि भारत ने 1990 और 2000 के बीच 384,000 हेक्टेयर जंगलों को खो दिया। 2015 और 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 668,400 हेक्टेयर हो गया।

वन विनाश में भारत दूसरे स्‍थान पर : भारत में वन विनाश को लेकर एक दो नहीं कई रिपोर्ट पुष्‍टि करती है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वन विनाश में भारत दूसरे स्थान पर आ गया है। पिछले 5 साल में भारत ने 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल खो दिए। यह रिपोर्ट यूके स्थित फर्म यूटिलिटी बिडर ने जारी की थी। जिसके मुताबिक वन विनाश के मामले में भारत, ब्राजील के बाद दूसरे नंबर पर है, जहां पिछले 5 साल में 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए हैं। इतना ही नहीं, यूटिलिटी बिडर की रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले 30 साल में जंगलों के होते सफाए के मामले में भारत में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई। जंगलों की सबसे ज्‍यादा कटाई या विनाश साल 2015 से 2020 के बीच हुआ।

ब्राजील के बाद सबसे ज्‍यादा विनाश भारत में : यह बेहद चिंता वाली बात है कि रिसर्च में सामने आया कि भारत में जंगलों के विनाश का यह आंकड़ा ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा है। ठीक इसी अवधि के दौरान ब्राजील में 16,95,700 हैक्टेयर में फैले जंगल साफ कर दिए गए हैं।-- रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम फर्म यूटिलिटी बिडर।

98 देशों में के जंगलों की हकीकत : बता दें कि मार्च 2023 में जारी इस रिपोर्ट में डेटा एग्रीगेटर साइट अवर वर्ल्ड इन डेटा द्वारा 1990 से 2000 और 2015 से 2020 के आंकड़ों पर रिचर्स और विश्लेषण किया गया है। जिसमें पिछले 30 साल के दौरान 98 देशों में काटे गए जंगलों की आंकड़ों के साथ यह हकीकत सामने आई है।
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भारत : वन विनाश में 284,400 हैक्टेयर की वृद्धि : सबसे चौंकाने वाली और परेशान करने वाली बात यह है कि दो समयावधि के आंकड़ों की तुलना में सामने आया है कि भारत में वन विनाश के मामले में 284,400 हैक्टेयर की वृद्धि हुई है। 1990 से 2000 के बीच भारत ने अपने 384,000 हैक्टेयर में फैले जंगलों को खो दिया था। वहीं 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 668,400 हैक्टेयर हो गया है। यानी भारत में वन विनाश में 284,400 हैक्टेयर की वृद्धि हुई जिसे दुनिया में सबसे ज्यादा माना जा रहा है।

वन्‍य क्षेत्र में वृद्धि पर सवाल : साल 2021 में आई ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021’ (ISFR) में यह भी कहा गया था कि वन्‍य क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। हालांकि सरकार के इस दावे पर सवाल भी उठे थे। विशेषज्ञों ने वन्‍य  गणना के तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाने के लिए शहरों के लगे पेड़ और पौधरोपण, सड़क के किनारे लगे पेड़, रबर, कॉफी और चाय बगानों की हरियाली को भी वन क्षेत्र के तौर पर शामिल कर लिया गया है।

गायब हो गया यूपी जितना बड़ा जंगल : 13 जनवरी 2022 को प्रकाशित ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021’ India State of Forest Report  (ISFR) के जारी आंकड़ों में कहा गया था कि 2019 से 2021 के बीच वन आवरण में 1.6 लाख हैक्टेयर करीब (0.2 प्रतिशत) की मामूली वृद्धि हुई है। हालांकि ज्यादातर जंगल रिकॉर्डेड फॉरेस्ट (राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन वन भूमि) के बाहर उग रहे हैं। इस बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट कहती है कि भारत से उत्तर प्रदेश के आकार के बराबर करीब 2.59 करोड़ हैक्टेयर में फैले जंगल लापता हैं। हैरान करने वाली बात है कि इतनी बड़े विनाश के बारे में India State of Forest Report  (ISFR) के पास कोई जवाब नहीं है।

क्‍यों हो रहा वनों का विनाश : दुनिया की बढ़ती आबादी वनों को नष्‍ट करने में सबसे ज्‍यादा जिम्‍मेदार साबित हो रही है। भारत में भी यह एक बड़ी वजह है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है। (Estimated population of India in 2023) आबादी में हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में इंसानों की जरूरत के लिए लगातार जंगलों की कटाई हो रही है। इसी जरूरत के चलते करीब 1.10 करोड़ लोग रोज लकड़ी काटने जंगल में जाते हैं। 7 से 8 करोड़ जानवर चरने के लिए जंगलों में जाते हैं। हजारों लोग पिकनिक-पार्टीज के लिए जंगलों में रोज जा रहे हैं। हजारों लोग मॉर्निंग वॉक, साइक्‍लिंग और एक्‍सरसाइज के लिए जंगलों का रुख कर रहे हैं। घने जंगलों के बीच लोग फॉर्म हाउस बना रहे हैं। कई सरकारी और निजी परियोजनाएं जंगलों में आकार ले रही हैं।

जंगलों में इंसानी दखल 
1.10 करोड़ लोग रोज लकड़ी काटने जंगल में जाते हैं
7 से 8 करोड़ जानवर चरने के लिए जंगलों में जाते हैं
दुनियाभर में पशुपालन व्यवसाय जंगलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं
हजारों लोग पिकनिक-पार्टीज के लिए जंगलों में रोज जाते हैं।
घने जंगलों के बीच लोग फॉर्म हाउस बना रहे हैं
कई सरकारी और निजी परियोजनाएं जंगलों में आकार ले रही हैं

पशु पालन और तेल : रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दुनियाभर में पशुपालन व्यवसाय ने जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वजह से हर साल 21,05,753 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए जाते हैं। इसके बाद तेल के लिए 950,609 हैक्टेयर वनों का विनाश किया गया है।

मध्यप्रदेश सूची में सबसे ऊपर : देश का वन और वृक्ष क्षेत्र 8.09 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2019 की तुलना में इसमें 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। अब तक एक अच्छी बात यह है कि भारत के 17 राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों में उनके भौगोलिक क्षेत्र के 33% से अधिक भाग पर वन हैं। मध्यप्रदेश सूची में सबसे ऊपर है। हालांकि मध्यप्रदेश में पिछले दो साल में वन क्षेत्र के दौरान गिरावट देखी गई है। 'सघन' और 'अत्यंत सघन' वन क्षेत्र की दोनों श्रेणियों में क्रमश: 11 और 132 वर्ग किलोमीटर तक वनों की कटाई दर्ज की गई है। जबकि दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में 20 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र की वृद्धि हुई है।

सबसे ज्‍यादा वन वृद्धि दिखाने वाले राज्‍य : वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले देश के शीर्ष 5 राज्यों में आंध्रप्रदेश (647 वर्ग किमी), तेलंगाना (632 वर्ग किमी), ओडिशा (537 वर्ग किमी), कर्नाटक (155 वर्ग किमी) और झारखंड (110 वर्ग किमी) हैं।

पूर्वोत्तर में घट रहा जंगल : पूर्वोत्तर राज्यों में वन क्षेत्र एक हजार 20 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है और अब इन राज्यों में कुल वन क्षेत्र 1 लाख 69 हजार 521 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया है।

सबसे कम वन क्षेत्र दिखाने वाले राज्‍य : वन क्षेत्र में सबसे कमी दर्ज करने वाले शीर्ष 5 राज्य पूर्वोत्तर के हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश (257 वर्ग किमी), मणिपुर (249 वर्ग किमी), नागालैंड (235 वर्ग किमी), मिजोरम (186 वर्ग किमी) और मेघालय (73 वर्ग किमी) शामिल हैं।

अरुणाचल प्रदेश ने 257 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र खो दिया है। मणिपुर 249 वर्ग किलोमीटर, नागालैंड 235 वर्ग किलोमीटर, मिजोरम 186 वर्ग किलोमीटर और मेघालय 73 वर्ग किलोमीटर जंगल कटा है। रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के 104 पहाड़ी जिलों में 902 वर्ग किमी जंगल कम हुआ है।

जंगल भारत का कितना एरिया कवर करते हैं
अत्यंत सघन वन : 99,779 sq km – 3.04 % of india’s area
मध्यम सघन वन : 3,06,890  sq km – 9.33  % of india’s area
खुला वन : 3,07,120 sq km – 9.34 % of india’s area
कुल जंगल क्षेत्र : 7,13,789 sq km – 21.71 % of india’s area
Forest cover in India – 2023
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क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ?
डॉ डीके वाघेला, मप्र प्रदूषण बोर्ड के पूर्व अधिकारी और पर्यावरणविद ने वेबदुनिया को बताया कि शहरों की आबादी बढ़ने के साथ, वृक्षों की संख्या निरन्तर घटती जा रही है। विकास के नाम पर हरित क्षेत्र के लिए सुरक्षित स्थानों पर सीमेंट कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद से घटती हरियाली अब कुल क्षेत्रफल का 22% से भी कम रह गई है। जंगलों के कटने से जैव विविधता निरन्तर घट रही है। विगत 50 वर्षों में पृथ्वी पर बाघों की संख्या करीब 94% कम हो गई है, जबकि ताजे पानी के जलीय जंतुओं की संख्या भी 83% कम हो गई है। वन्य जीवों की प्रजातियां विलुप्त होने से कई वन्य प्राणी शहर की ओर प्रस्थान करने लगे हैं, गौरेया और कौवे शहरों से विलुप्त हो रहे हैं। वायु प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारण पेड़ों का काटा जाना भी है। इसी वजह से कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खड़ी हो गई है। जलवायु परिवर्तन हो रहा है। असमय वर्षा, ओले गिरना या वर्षा न होना, भूमिगत जल घटना और नदी-तालाब सूख रहे हैं। सघन वन व बड़े वृक्ष ही इस पृथ्वी पर जीवन बचा सकने में सक्षम हैं।

1987 से हो रही वन्‍य क्षेत्र की स्‍टडी : भारत में कई वर्षों से जारी सामाजिक वानिकी, वन उत्सव, वृक्षारोपण जैसी योजनाओं का सकारात्मक असर अब दिखना शुरू हो रहा है, जिसकी पुष्टि हाल में प्रकाशित 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' से होती है। बता दें कि अपने देश में वन क्षेत्र का अध्ययन वर्ष 1987 से प्रारंभ हुआ। यह अध्ययन प्रत्यक्ष सर्वेक्षण और उनसे प्राप्त जानकारी के आधार पर किया जाता है। वन क्षेत्र को 'झाड़ी वन', 'दुर्लभ वन', 'मध्यम सघन वन' और 'अत्यंत सघन वन' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' हर दो साल में प्रकाशित होती है, जिससे देश भर में वन क्षेत्र की स्थिति के आंकडे सामने रखे जा सके।

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