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अपराध के 'पाताललोक' का सबसे चर्चित शूटआउट, जिसमें सिस्टम से राजनीति तक सबके राज छिपे हैं

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नवीन रांगियाल

शनिवार की देर रात करीब साढ़े 9 बजे का वक्त। मीडिया के कैमरों की फ्लैश लाइट्स चमक रही हैं। खाकी वर्दी और जर्नलिस्ट से घिरा अपने दौर का एक बेहद खूंखार माफिया डॉन अतीक अहमद नजर आ रहा है। उसके साथ उसका भाई अशरफ अहमद है।  इन्हें मेडिकल के लिए पास के ही एक अस्पताल में ले जाया जा रहा है। अचानक कुछ हलचल होती है और प्रयागराज की गलियां पिस्तौल के कई राउंड की आवाजों से कांप जाती हैं।
धांय-धांय... कारतूस के खोल सडकों पर गिरते रहते हैं। कुछ धुआं और कुछ  कैमरों के श्रिंक होने के बीच एक के बाद एक कई गोलियां चलती हैं। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का शव जमीन पर धराशायी हो जाता है। अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में सामने आता है कि अतीक अहमद के शरीर में 8 गोलियां दागी गईं, जबकि अशरफ को 6 गोलियां मारी गईं।
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यह किसी हिंदी या साउथ इंडियन फिल्म की स्क्रिप्ट- सा लगता है, लेकिन वास्तव में यह फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, हकीकत है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माफिया राज की हकीकत। ये देश का सबसे चर्चित शूटआउट है, जो कानून- व्यवस्था की रक्षा करने  वाली पुलिस और समाज को सच का आइना दिखाने वाली मीडिया के सामने घटना और फिर ये पूरे देश के लिए एक लाइव मर्डर  हो गया। यह मर्डर इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि जिस अतीक को मारा गया वो अपराध से राजनीति तक का सफर तय कर विधायक से लेकर सांसद तक बन बैठा था।  

जी, हां। अतीत में खौफ का प्रयाय रहे अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को पुलिस कस्टडी में मार दिया गया। मीडिया के  सामने, तीन हथियारबंद बदमाशों ने। गोलियां दागने के बाद तीनों ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। जैसे ही यह खबर मीडिया में फ्लेश हुई, पूरे देश में एक सनसनी से पसर गई। सारे देश की नजरें टीवी चैनल्स पर जम गई। ब्रेकिंग और स्क्रोल में अगर  कुछ था तो सिर्फ अतीक अहमद का मर्डर।

ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म अतीक अहमद और अशरफ के इस मर्डर की खबरों से ओवरफ्लो हो गए। क्या व्हाट्सएप और टेलीग्राम सब जगह कुछ था तो बस शूटआउट एट प्रयागराज। उसी अतीक  अहमद का मर्डर, जिसे पिछले कई दिनों से एनकाउंटर का डर सता रहा था। इसी डर के चलते उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी  लगाई थी कि उसे मार दिया जाएगा, इसलिए बचा लिया जाए।  
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कहते हैं मौत खींचकर कहां से कहां ले आती है। अतीक के साथ भी यही हुआ। गुजरात की साबरमती जेल में सजा काट रहे अतीक की मौत उसे उत्तर प्रदेश ले आई। जिस उत्तर प्रदेश में उसका आतंक था उसी धरती पर वो औंधा मुंह खून से लथपथ गिरा था। 

यह दृश्य न सिर्फ उत्तर प्रदेश के माफिया राज की खौफनाक दास्तां बता रहा था, बल्कि पुलिस, प्रशासन, सिस्टम, राजनीति और  अंडरवर्ल्ड तक के कनेक्शन के पूरे जाल की तस्वीर पेश कर रहा था। ठीक दो या तीन दिन पहले अतीक के बेटे असद को पुलिस  एनकाउंटर में मार गिराया गया था, उसके बाद अब उसके पिता और चाचा की यूं सरेआम हत्या हो जाना अपराध में राजनीति या  राजनीति में अपराध की जम चुकीं जड़ों की गहराई के बारे में चीख- चीख कर बता रहा था।  
   
अब इस बेहद चर्चित शूटआउट की जांच पड़ताल के लिए एसआईटी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जांच होगी, सबूत जुटाए जाएंगे।  यूपी सरकार इस मामले में घिरी हुई नजर आ रही है। बैठकों का दौर जारी है। सरकारी और राजनीतिक हलकों में अपराध में  लिप्त लोगों के नामों के खुलासों को लेकर सनसनी है। ऊपर से नीचे तक सिस्टम और राजनीति दोनों हिले हुए हैं। अपराध कथाओं से उपजे इन सारे एनकाउंटर और मर्डर के बीच मीडिया अपने सबसे उपजाऊ काल में चल रहा है। आखिर वो हो गया है जो  मीडिया चाहता था। अब तक मीडिया अपनी हैडलाइंस में सिर्फ प्रश्नवाचक और विस्मयाबोधक चिन्ह लगाकर काम चला रहा था।  अब उसने एक बेहद खौफनाक मर्डर की ब्रेकिंग चलाकर अपनी 'प्यास' को लगभग कुछ दिनों के लिए बुझा लिया है।
 
अपराध के उपजने और इसको मिट्टी में मिलाने का काम नया नहीं है। उत्तर प्रदेश में माफिया राज की फेहरिस्त लंबी है। जिसमें विकास दुबे, श्रीप्रकाश जैसे कई नाम हैं। 
 
अपराध की एक लंबी कहानी को अंजाम देने के बाद अतीक अहमद, अशरफ अहमद और असद के शव कब्रस्तान की किसी गहराई में कहीं पड़े हैं और बाहर इस दुनिया में मीडिया शूटआउट एट प्रयागराज के इस पाताललोक में अपराध के कतरे और छींटे खोजने में व्यस्त हो गया है।

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