क्या हो अगर आपके सामने लोहे की सलाखें पिघलकर रिसने लगें, या सड़कों का डामर पिघलकर लिक्विड बन जाए। ऐसा अब तक हमने साइंस फिक्शन फिल्मों में देखा है, लेकिन इस तरह की तपन हकीकत में महसूस होने लगे तो क्या इंसानी जीवन की कल्पना की जा सकती है। शायद नहीं। जी, हां पहले से ही वायरस और भूकंप जैसी आपदाओं से जूझती दुनिया के लिए अब तापमान एक नया खतरा है।
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	दरअसल, दुनिया के तापमान (वैश्विक तापमान) में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वैज्ञानिक कई बार ये चेतावनी दे चुके हैं कि धरती का पारा बढ़ रहा है। इसमें हर साल इजाफा हो रहा है। इस झुलसती गर्मी के पीछे कई वजहें हैं।
									
										
								
																	क्या 50 डिग्री को पार करेगा पारा?
1850 से 1900 के बीच दुनिया का जो औसत तापमान था वो अब 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। यानी ग्लोबल टेंपरेचर में इतना इजाफा हुआ है। यही वजह थी कि 2015 से 2022 तक सभी 8 साल बेहद गर्म रहे थे। 1990 के दशक में साल का औसत तापमान 26.9°C हुआ करता था। अब कुछ साल से दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों का तापमान 40 के पार जा रहा है। वहीं देश के दूसरे राज्यों और शहरों में 40 से लेकर 45 डिग्री तक तापमान दर्ज हो रहा है। रिपोर्ट की माने तो हर दो दशकों में 10-14 डिग्री तक तापमान बढ़ा है। इस रफ्तार को दर्ज करें तो आने वाले दो दशकों में यानी करीब 2045-50 के आसपास गर्मी 50 डिग्री तक पहुंच सकती है।
									
											
									
			        							
								
																	क्यों दहशत में है नासा (NASA)?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation - WMO) के छह मुख्य अंतरराष्ट्रीय तापमान डेटासेट के मुताबिक पिछले 8 साल दुनियाभर के रिकॉर्ड पर सबसे गर्म थे। यह लगातार बढ़ती ग्रीनहाउस गैस की मात्रा और इससे होने वाली गर्मी की वजह से था। इसका मतलब यह है कि 2022 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत से लगभग 1.11 डिग्री सेल्सियस गर्म थी। यही वजह है कि नासा (NASA) ने भी दुनिया पर आने वाले इस नए खतरे को लेकर डर जाहिर किया है। World Meteorological Organisation – WMO की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	नासा (NASA) के प्रशासक बिल नेल्सन ने हाल ही में कहा था- लगातार बढ़ती गर्मी खतरनाक है। जलवायु पहले ही गर्म होने के रिकॉर्ड बना रही है, जंगलों में आग और भयावह हो रही है, तूफान खतरनाक होते जा रहे हैं, सूखा कहर बरपा रहा है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। ऐसे में दुनिया की हालत क्या होगी।
									
										
										
								
																	
2022 में यूरोप में हजारों की हुई थी मौत
पिछले साल WHO (क्षेत्रीय निदेशक हंस क्लूज यूरोप) के मुताबिक 2022 में गर्मी की वजह से 15 हजार लोगों की मौत हो गई थी। जबकि जर्मनी में 4500 लोग, स्पेन में 4000 लोगों की मौत, पुर्तगाल में 1000 से ज्यादा लोगों की मौत, यूके में 3200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। भारत के कई शहरों और राज्यों में गर्मी का पारा 40 के पार जा चुका है। शोध और विशेषज्ञ मानते हैं कि इंसान का शरीर 36-37 डिग्री तक तापमान बर्दाश्त कर सकता है। जबकि कई देशों और राज्यों में गर्मी का पारा 50 तक पहुंचने की रिपोर्ट पहले से ही दहशत में डाल रही है। सोचिए अगर यह 50 तक पहुंचा तो क्या स्थिति होगी?
									
					
			        							
								
																	भारत की क्या स्थिति होगी?
World Meteorological Organisation - WMO की ही रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रहे तापमान का सबसे बुरा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होगा। भारत के कई हिस्सों में लू (Heat wave) तो पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा देखी गई है। आबादी के मान से भी भारत पर ज्यादा असर होगा। यहां गर्मी (Heat wave) से मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर WMO की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सबसे भारी नुकसान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश झेलेगा।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2022 में कहा गया है कि भारत में गर्मी के संपर्क में आने से 167 अरब काम के घंटों का नुकसान हुआ है, जो 1990-1999 से 39 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में अत्यधिक गर्मी के कारण सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण क्षेत्रों में भारत को 159 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 5.4 प्रतिशत आय का नुकसान हुआ।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	2030 तक गर्मी के तनाव के कारण उत्पादन क्षमता में गिरावट को लेकर रिपोर्ट भी है। जिसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर 8 करोड़ नौकरियां जाएंगी। इनमें से 3.4 करोड़ नौकरियां भारत में जाएंगी।
									
										
										
								
																	
क्या है IPCC की रिपोर्ट में?
इस बढ़ती गर्मी में संयुक्त राष्ट्र की IPCC की रिपोर्ट का जिक्र भी जरूरी है। यह रिपोर्ट लंबे समय की रिसर्च के बाद सामने आई थी। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के साथ ही IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की जो रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट के मुताबिक उत्सर्जन के आधार पर हम करीब 10 से 20 साल में तापमान के मामले में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी पर पहुंच जाएंगे। यह भारत के लिए खतरनाक है, क्योंकि गर्मी बढ़ने से भारत के 50% हिस्से और ऐसे लोगों पर भारी प्रभाव पड़ेगा, जिनका जीवनयापन सीधेतौर पर पर्यावरण पर निर्भर करता है।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	विशेषज्ञों का दावा है कि इस गति से गर्मी बढ़ना मानव जाति के इतिहास में 2000 साल में पहली बार देखा गया है। इससे भारत के लोगों पर भारी असर होगा, खासकर ऐसे 40 करोड़ लोगों पर जिनका रोजगार पर्यावरण या इसी तरह के संसाधनों चलता है। जबकि दुनिया की 90 फीसदी आबादी पर असर होगा। ये आबादी अत्याधिक गर्मी और सूखे से जुड़े खतरों का सामना करेगी।
									
										
										
								
																	
234 वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट में क्या है?
यह 3000 पन्नों से ज्यादा की रिपोर्ट है। इसे दुनिया के 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। जिसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं, जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	200 देश क्लाइमेट चेंज से लड़ रहे युद्ध
साल 2015 में पेरिस जलवायु समझौता हुआ था, जिसमें 200 देशों ने इस ऐतिहासिक जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, इस समझौते का मकसद था दुनिया में हो रही तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना। इसके साथ ही यह तय करना कि यह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से ज्यादा न हो। रिपोर्ट में शामिल 200 से ज्यादा लेखक पांच परिदृश्यों पर नजर बनाए हुए हैं और उनका मानना है कि किसी भी स्थिति में दुनिया 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी। यह आशंका पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है।
 
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		2022 में दुनिया का तापमान NASA की बेसलाइन अवधि 1951-1980 के औसत से 0.89 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
 
	- 
		2022 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत से करीब 1.11 डिग्री गर्म थी।
 
	- 
		2015 से 2022 तक 8 साल बेहद गर्म रहे।
 
	- 
		2016 इतिहास का सबसे गर्म साल रहा।
 
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		1993 की तुलना में 2020 में (Sea Level Rise) में दोगुनी बढ़ोतरी हुई।
 
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		1990 के दशक में साल का औसत तापमान 26.9°C हुआ करता था।
 
	- 
		जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश पर होगा।
 
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		2030 तक गर्मी की वजह से भारत में 3.4 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं।
 
आकड़ें : 'WMO प्रोविजिनल स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022'  की डाउन टू अर्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक