हिन्दी ब्लॉग का संसार जैसे-जैसे व्यापक हो रहा है, निजी ब्लॉगों के साथ-साथ कम्यूनिटी ब्लॉग यानी कि सामूहिक ब्लॉगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कबाड़खाना, बेटियों का ब्लॉग ऐसे ही कुछ जाने-माने सामूहिक ब्लॉग हैं। इस दिशा में एक बड़ी पहल हुई है, चोखेर बाली के रूप में। जो आँखों की किरकिरी है, जो मुँह खोलती है तो समाज को चुभती है, हँसती है, बात करती है, आजाद होती है, अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीती है तो चुभने लगती है सबकी आँखों में। ऐसी आँख की किरकिरी है जो, उन स्त्रियों का एक सामूहिक ब्लॉग है, चोखेर बाली। चोखेर बाली को परवाह नहीं है कि वो कुछ लोगों की आँखों को चुभती है। अगर किसी का जीवन ही लोगों की आँखों को चुभने लगे, तो क्या वह जीना छोड़ देगी।स्त्रियों की अव्यक्त, दबी हुई पीड़ा, उसके मन के छिपे कोनों और दबी हुई आवाज का स्वर है चोखेर बाली। सुजाता, जूली झा, आभा, रिपुदमन चौधरी, विनीत कुमार, काकेश, अजीत वडनेरकर, पारुल, नीलिमा, बेजी और प्रत्यक्षा इस ब्लॉग की सदस्यों में से एक हैं। चोखेर बाली की शुरुआत सुजाता ने की, जो नोटपैड नाम से अपना खुद का ब्लॉग भी चलाती हैं। इस ब्लॉग की शुरुआत के पीछे मुख्य मकसद स्त्रियों के समवेत स्वर को एक मंच प्रदान करना था। इसकी बेहतर शुरुआत हुई है। स्त्री विमर्श से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर इस ब्लॉग में निरंतर बेहतर और सार्थक लेखन हो रहा है। स्त्रियों का उन्नत स्वर पितृसत्ता के उन दबे हुए पक्षों पर सवालिया निशान उठा रहा है, जिन पर इतने स्पष्ट स्वरों में नहीं लिखा जाता था। चीजें बदल रही हैं। इस ब्लॉग पर, चोखेर बाली के सदस्यों के लेखन में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। |
हिन्दी ब्लॉग का संसार जैसे-जैसे व्यापक हो रहा है, निजी ब्लॉगों के साथ-साथ कम्यूनिटी ब्लॉग यानी सामूहिक ब्लॉगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कबाड़खाना, बेटियों का ब्लॉग ऐसे ही कुछ जाने-माने सामूहिक ब्लॉग हैं। इस दिशा में एक बड़ी पहल हुई है। |
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वो नजर है वहाँ, जो देख पा रही है कि कैसे यह समाज एक स्त्री को विक्षिप्तता की अवस्था तक ले जाता है। अपनी बात कहने के लिए कैसे पागल हो जाती है एक औरत :
एक लड़की को मैंने देखा
उन्माद से भारी विक्षिप्तावस्था में
वह ताबड़तोड़
हर किसी को ललकारे जा रही थी।
हर लड़की के जीवन में
कभी न कभी
पागलपन का ऐसा दौरा ज़रूरी हो जाता है
वर्ना वह अपनी बात
कभी कह ही नहीं पाएगी।
विभिन्न पारंपरिक मर्यादाओं और नियमों में छिपे शोषण के बीज भी दिख रहे हैं :
चूड़ियाँ, पायल, मंगलसूत्र, सब पहनाते-पहनाते कहीं हम बेटियों को गुलाम मानसिकता की जंजीरों में तो नहीं बाँध रहे? हर तरह का अवसर देने के बाद उसे किसी सोच में कहीं कैद तो नहीं कर रहे? सहनशील, शांत और औरत बनाने की कोशिश में उसकी स्वयं के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति को क्षीण तो नहीं कर रहे?!!
यह एक बेहतरीन शुरुआत है और अभी सिर्फ आकार ले रही है। अभी तो चोखेर बाली को एक लंबा सफर तय करना है। अगर यह अपनी वैचारिक समझ को और पुख्ता करती है और अपनी स्थिरता बनाए रखती है तो इस मोर्चे पर कुछ बड़ा और सार्थक निकलकर आएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
ब्लॉग : चोखेर बाली
URL : http://sandoftheeye.blogspot.com/