अजय ब्रम्हात्मज जब कहते लिखते हैं कि मधुमेह से ग्रस्त पिता को बेटी रसगुल्ला नहीं खाने देती, तो बेटी के लिए उनका प्यार और पिता के लिए बेटी की चिंता दोनों ही झलकते हैं। फिलहाल रसगुल्ला तो नहीं मिलता, लेकिन अपनी प्यारी बिटिया रानी के लिए वो झींगा जरूर पकाते हैं।
राकेश को उलझे, घुँघराले बालों में चोटी बनाने का कोई अनुभव नहीं है। लेकिन हर सुबह स्कूल के लिए तैयार करते बिटिया की चोटी बनाने का अनुभव राकेश कुछ यूँ बयान करते हैं, 'अब दस मिनट तक तो उसके घुँघराले बालों को, जिसे वो मैगी कहती है, कंघी से सीधा करना पड़ता है और तब जाकर कहीं उसमें रबड़ लग पाता है. पर मेरी खीझ पर उसका धैर्य अकसर भारी पड़ता है. बोलती है, 'पापा, मैं सिर नहीं हिलाउँगी तुम मेरी चोटी लगा दो'. रबड़ को वो चोटी कहती है.'
पिता बिटिया की चोटी बना रहे हैं, उसका मनपसंद खाना बना रहे हैं। बिटिया की जिद है, माँ नहीं, पापा के ही हाथ का खाना है। और पिता इस जिद से खुश हैं। इनमें बहुत से ऐसे भी पिता होंगे, जो अपनी पत्नी के लिए शायद बहुत सामंती पति हों, लेकिन बिटिया के लिए बिल्कुल सच्चे, सीधे, कोमल पिता हो जाते हैं।
रिश्ते बदल रहे हैं, मूल्य, विचार भावनाएँ सबकुछ। मुझे याद नहीं कि मेरे पिता ने कभी मेरी चोटी की हो। ये सारे काम हमेशा से माँ के ही जिम्मे रहे। आज के पिता ज्यादा समझदार और संवेदनशील हैं। वो पिता होने के सुख और दायित्व दोनों को समझ रहे हैं। और यह दायित्व कोई बोझ नहीं, बल्कि इसमें भी एक आनंद है। यह आनंद बदलते वक्त के संवेदनशील पिताओं के व्यवहार और उनके शब्दों में झलकता है। इसी का परिणाम है, यह ब्लॉग जो बदलते वक्त की ढेरों सुगबुगाहटों में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा रहा है।
बेटी पिता को ज्यादा मनुष्य बनाती है, ज्यादा गहरा और कोमल। वह उसे इंसान बनाती है। बेटियाँ पिता को बदलती हैं।
रवीश यह स्वीकार भी करते हैं, ‘मेरी बेटी हर दिन मुझे बदल देती है। आज ही दफ्तर से लौटा तो स्वेटर का बटन बंद कर दिया। चार साल की तिन्नी ने कहा कि ठंड लग जाएगी। बाबा तुम एकदम पागल हो। बेटियों को ख्याल करना आ जाता है। बस हम लोग यानी पुरुष पिता उस ख्याल को अपने अधिकारों से नियंत्रित कर नियमित मज़दूरी में बदल देते हैं। छुट्टी के दिन वही तय करती है। कहती है, आज बाबा खिलाएगा। बाबा घुमाएगा। बाबा होमवर्क कराएगा। मम्मी कुछ नहीं करेगी। मैं करने लगता हूँ। वही सब करने लगता हूँ, जो तिन्नी कहती है। मैं बदलने लगता हूँ। बेहतर होने लगता हूँ। बेटियों के साथ दुनिया को देखिए, अक्सर मन करता है इसे इस तरह बदल दें। इसके लिए खुद बदल जाएँ।'
बेटियों का यह ब्लॉग सचमुच एक क्रांतिकारी कदम है। यह बदलती दुनिया की सुगबुगाहट और उसका दस्तावेज है। बेटियों का स्थान बदल रहा है, बेटियाँ पिताओं को बदल रही हैं। बेटियाँ दुनिया को बदल रही हैं। बेटियाँ खुद भी बदल रही हैं। चीजें बदल रही हैं। हमें इसके सुंदर, और सुंदर होते जाने की उम्मीद है।
ब्लॉग : बेटियों का ब्लॉग
URL : http://daughtersclub.blogspot.com/