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दिल्ली सरकार में भ्रष्टाचार के दंश

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ललि‍त गर्ग

देश में भ्रष्टाचार पर जब भी चर्चा होती है तो राजनीति को निशाना बनाया जाता है। आजादी के सत्तर साल बीत जाने के बाद भी भ्रष्टाचार को शक्तिशाली बनाने में राजनेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका का होना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि भारत की राजनीति पर एक बदनुमा दाग है। इस दाग को भ्रष्टाचार को समाप्त करने के नारे को बुलन्द करते हुए सत्ता पर काबिज हुए अरविन्द केजरीवाल एवं उनकी सरकार हर दिन किसी नए घोटाले एवं भ्रष्टाचार के संगीन मामले को लेकर और गहरा कर रही हैं।


दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन अनेक घोटाले एवं भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त पाए गए हैं और हर बार केजरीवाल उनकी रक्षा कर उन्हें सत्ता में कायम किए हुए हैं। जैन का एक और मामला सीबीआई की जांच के दौरान सामने आया है, जिसने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्य सवाल तो यहां सत्येंद्र जैन जैसे राजनेताओं पर विश्वास करने का नहीं है, सवाल यहां ऐसे राजनेताओं की अपने कर्तव्यपरायणता और पारदर्शिता का है। कब तक हम भ्रष्ट नेताओं को सहते रहेंगे और कब तक भ्रष्ट नेता देश के चरित्र को धुंधलाते रहेंगे? सतेन्द्र जैन के भ्रष्टाचार का मामला गंभीर एवं विडम्बनापूर्ण है।

इस मामले में दिल्ली डेंटल काउंसिल के रजिस्ट्रार और अधिवक्ता की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तारी और रजिस्ट्रार के लॉकर से सत्येंद्र जैन के नाम की संपत्ति के दस्तावेज बरामद होना आम आदमी पार्टी एवं अरविन्द केजरीवाल के कथनी और करनी की असामनता को बयां कर रही है। आम आदमी पार्टी के नेता इन दस्तावेजों को पुराना बता रहे हैं, लेकिन सीबीआई द्वारा उनकी दलीलों को खारिज कर देने के बाद मंत्री के साथ ही आप सरकार भी कठघरे में खड़ी दिखाई दे रही है।
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सीबीआई  ने दिल्ली डेंटल काउंसिल के रजिस्ट्रार के लॉकर से जैन के नाम से तीन संपत्तियों के दस्तावेज, जैन और उनके परिवार के सदस्यों के नाम की दो करोड़ रुपए की बैंक की डिपॉजिट स्लिप और 41 चेक बुक बरामद की हैं। स्वास्थ्य मंत्री पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं और सीबीआई  उनके खिलाफ केस दर्ज कर जांच भी कर रही है। अब इन दस्तावेजों की बरामदगी पूर्व के आरोपों को कहीं-न-कहीं और पुख्ता करती है।

यदि आम आदमी पार्टी की बात पर भरोसा कर भी लिया जाए तो भी एक सरकारी अधिकारी के लॉकर में मंत्री की निजी संपत्ति के दस्तावेज पाया जाना संदेह अवश्य पैदा करता है। ऐसे में आम आदमी पार्टी द्वारा विपक्षी दलों पर निशाना साधने के बजाय इन दलों के साथ ही दिल्ली की जनता को भी स्पष्ट करना चाहिए कि सच्चाई क्या है? जो पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर सत्ता में आई है, उस पार्टी पर बार-बार भ्रष्टाचार के आरोप लगना गंभीर चिन्ता का विषय है।

दिल्ली सरकार एवं आम आदमी पार्टी से इतनी नैतिकता की अपेक्षा अवश्य की जाती है कि वह मंत्री पर लगे आरोपों के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करे। इस मामले में सरकार को अपने स्तर पर कमेटी बनाकर भी जांच करनी चाहिए और यदि मंत्री दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। मंत्री सत्येन्द्र  जैन पर इससे पूर्व हवाला कारोबार, जमीन कारोबार में धांधलियों, परिजनों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने, अस्पतालों में दवा एवं उपकरण खरीद धांधलियों सहित अनेक आरोप लगे हैं और अब उनके कागजात एक अधिकारी के लॉकर से बरामद होने का मामला सामने आया है।

मुख्यमंत्री केजरीवाल सत्येंद्र जैन की आर्थिक धांधलियों को संरक्षण दे रहे हैं, उसे देखकर केजरीवाल पर भी संदेह होना स्वाभाविक हैं। ताजा प्रकरण के बाद कहीं-न-कहीं ऐसा लगता है कि मंत्री सतेन्द्र जैन एवं रजिस्ट्रार ऋषिराज के बीच कोई न कोई आर्थिक रिश्ते हैं जिनकी जांच आवश्यक है और कोई भी जांच तब तक पारदर्शी नहीं हो सकती जबकि सतेन्द्र जैन अपने पद पद बने हुए हैं। लगातार भ्रष्टाचार एवं घोटालों पर दिल्ली सरकार द्वारा पर्दे डालने का दुष्प्रभाव और सीधा-सीधा असर सरकार के कार्यों पर दिख रहा है, इन बढ़ती भ्रष्ट और अराजक स्थितियों को नियंत्रित किया जाना जरूरी है।

अन्यथा दिल्ली की सारी प्रगति को भ्रष्टाचार की महामारी खा जाएगी। दिल्ली सरकार शहंशाह-तानाशाही की मुद्रा में है, वह कुछ भी कर सकती है, उसको किसी से भय नहीं है, उसका कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सकता- इसी सोच ने उसे भष्टाचारी बनाया है। जहां नियमों की पालना व आम जनता को सुविधा देने के नाम पर भोली-भाली जनता को गुमराह किया जा रहा है, ठगा जा रहा हैं। आप की चादर इतनी मैली है कि लोगों ने उसका रंग ही काला मान लिया है। अगर कहीं कोई एक प्रतिशत ईमानदारी दिखती है तो आश्चर्य होता है कि यह कौन है? पर हल्दी की एक गांठ लेकर थोक व्यापार नहीं किया जा सकता है।

आप राजनेताओं की सोच बन गई है कि सत्ता का वास्तविक लक्ष्य सेवा नहीं, धन उगाई है। राजनेता से मंत्री बने व्यक्ति अंततः लोकसेवक हैं। उन पर राष्ट्र को निर्मित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसे में यदि वे भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं या किसी गंभीर लापरवाही को अंजाम देते हैं, तो उन पर कार्रवाई भी होनी ही चाहिए और इसका अहसास भी उन्हें रहना चाहिए। राजनेताओं विशेषतः दिल्ली सरकार के मंत्रियों का भ्रष्टाचार इस लिहाज से भी एक बड़ा अपराध है कि इस कारण से इसकी जड़ें प्रशासन के निचले स्तर तक जाती हैं। प्रशासनिक भ्रष्टाचार का एक सिरा राजनीतिक भ्रष्टाचार से भी जुड़ता है।

यही कारण है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को भ्रष्ट मंत्रियों  का संरक्षण भी प्राप्त होता है और इसी का उदाहरण है दिल्ली डेंटल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ. ऋषि राज की गिरफ्तारी एवं उन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगना। दिल्ली देश की धड़कन है, उसकी शासन-व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए सक्षम और ईमानदार राजनेताओं का होना जरूरी है, यह बात केजरीवालजी एवं उनकी सरकार के मंत्रियों को समझनी होगी। अन्यथा भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाएगा तथा दिल्ली के सर्वांगीण विकास की राह बाधित रहेगी।

कहा जाता है कि भ्रष्टाचार तो भारत की आत्मा में रच-बस गया है। इसे सख्त कानून से नहीं बल्कि राष्ट्रीय चरित्र को सुदृढ़ बनाकर ही समाप्त किया जा सकता है। जहां तक अपराधियों के कालेधन का सवाल है तो सरकार उनके प्रति उतना बलपूर्वक कदम नहीं उठाती है क्योंकि कहीं-न-कहीं सरकार भी भ्रष्टाचार में लिप्त दिखाई देती है। ईमानदारी और नैतिकता शतरंज की चालें नहीं, मानवीय मूल्य हैं। इस बात को समझकर ही हम राजनीति एवं सरकारों में पारदर्शिता, जबावदेही एवं ईमानदारी को स्थापित कर सकेंगे। भ्रष्टाचार शासन एवं प्रशासन की जड़ों में इतना गहरा पेठा हुआ है कि इन विकट एवं विकराल स्थितियों में एक ही पंक्ति का स्मरण बार बार होता है, 'घर-घर में है रावण बैठा इतने राम कहां से लाऊं।' भ्रष्टाचार, बेईमानी और अफसरशाही इतना हावी हो गया है कि लोकतंत्र में सांस लेना भी दूभर हो गया है।

आखिर हम कब नींद से जागेंगे। कुछ जिम्मेदारी तो हमारी भी है। हमारे देश की चर्चाएं बहुत दूर दूर तक हैं यह अच्छी बात है लेकिन इन चर्चाओं के बीच हमारे देश का भ्रष्टाचार भी दुनिया में चर्चित है, इसे तो अच्छा नहीं कहा जा सकता। इसलिए हमें जरूरत है इसको रोकने की। हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफसोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है, राष्ट्रीय चरित्र नहीं है, नैतिक मूल्य नहीं है। राष्ट्र में जब राष्ट्रीय मूल्य कमजोर हो जाते हैं और सिर्फ निजी स्वार्थ और निजी हैसियत को ऊंचा करना ही महत्वपूर्ण हो जाता है तो वह राष्ट्र निश्चित रूप से कमजोर हो जाता है और हादसों का राष्ट्र बन जाता है।

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