उत्तरी अमेरिका की समुद्री सीमा से मात्र 100 मील दूर दक्षिण में एक बड़ी मछली जैसा दिखने वाला द्वीप राष्ट्र है क्यूबा। गन्ने की खेती वाले इस देश के आदमकद नेता फिदेल कास्त्रो दुनिया की मशहूर किन्तु विवादास्पद हस्तियों में से एक थे। क्यूबा पर 50 वर्षों तक शासन किया और इसलिए विश्व के लोग क्यूबा को फिदेल कास्त्रो के देश के नाम से जानते हैं। फिदेल कास्त्रो का 26 नवंबर को 90 साल की उम्र में निधन हो गया।
फिदेल कास्त्रो ने 1956 में एक असफल क्रांति और 1959 में एक सफल हिंसक क्रांति का नेतृत्व किया जिसमें उन्होंने अमेरिकी समर्थित तानाशाह बटिस्टा के भ्रष्ट तथा अराजक शासन को उखाड़ फेंका। पश्चिमी जगत के सर्वप्रथम साम्यवादी देश की स्थापना की और समाजवाद के साथ एक अधिनायकवादी, दमनात्मक और निष्ठुर शासन की स्थापना की।
कास्त्रो ने विपक्षी दलों के नेताओं को या तो जेलों में ठूंस दिया या मृत्युदंड दे दिया। प्रेस पर अंकुश लगाया और बोलने की आजादी छीन ली गई। सत्ता पर कब्जा करते ही सारे अमेरिकी निवेश व उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। अमेरिका की नाक के ठीक नीचे बैठा यह देश जब चाहे तब अमेरिका को नसवार सुंघाता रहा और अमेरिका छींकने के अलावा कुछ नहीं कर सका सिवाय आर्थिक पाबंदिया लगाने के।
आइजनहावर, निक्सन, फोर्ड, बुश और क्लिंटन जैसे कई धुरंधर राष्ट्रपति आए और चले गए किंतु फिदेल कास्त्रो की नाक में कोई नकेल नहीं डाल सका। अमेरिका के प्रकोप से बचने के लिए फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ से मित्रता की।
एक समय ऐसा भी आया जब कास्त्रो ने अपने देश में अमेरिका को लक्ष्य बनाकर परमाणु मिसाइलें तैनात करवा लीं। परमाणु युद्ध का खतरा भांप कर सोवियतसंघ ने ये मिसाइलें वापस हटा ली क्योंकि फिदेल कास्त्रो इनका बटन दबाने के लिए उतावले होने लगे थे और विश्व को तीसरे विश्व युद्ध के दरवाज़े पर ला खड़ा किया था।
मिसाइलें हटाने से पूर्व तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को क्यूबा पर हमला न करने का सार्वजानिक वादा भी करना पड़ा। दावा किया जाता है की अमेरिका की खुफ़िया एजेंसी ने 600 से ज्यादा बार फिदेल कास्त्रो की हत्या का षडयंत्र किया किन्तु हर बार असफलता ही हाथ लगी।
क्यूबा की राजधानी हवाना में आप जगह जगह लिखा पाएंगें 'समाजवाद या मौत'। अपने घंटों तक चलने वाले भाषणों के लिए प्रसिद्ध फिदेल कास्त्रो का एक प्रमुख कथन था 'कई लोग समाजवाद की आलोचना करते हैं पर मुझे कोई उस देश का नाम बताएं जहाँ पूंजीवाद सफल रहा है।'
जनतंत्र के समर्थकों को आश्चर्य होगा कि जब एक बार फिदेल कास्त्रो ने देश की जनता को शिक्षित करने की ठानी तो इतना बड़ा अभियान चलाया कि केवल एक साल में देश के 95 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को शिक्षित कर दिया।
आज भी लेटिन अमेरिका के किसी देश में इस देश से ज्यादा शिक्षित दर नहीं। अशिक्षितों को शिक्षित करने के लिए लाखों कार्यकर्ता देश के कोने-कोने में पहुँच गए, फिर वह चाहे शहर का मजदूर हो, देहात का किसान हो, मछुआरा हो या जेल का कैदी, सभी को शिक्षित कर दिया। क्यूबा में स्वास्थ्य सेवाएँ सरकारी हैं और बेहतरीन हैं।
किसी भी देश की स्वास्थ्य सेवाओं को परखने का उचित आधार होता है उस देश की शिशु मृत्यु दर देखना जिसका पैमाना प्रति हजार है। क्यूबा का करीब सात है जो अमेरिका से भी थोड़ा बेहतर है, वहीं भारत की शिशु मृत्यु दर 46 है। यानी क्यूबा की स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर भारत से कई गुना बेहतर है। मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा यही दो कारण हैं क्यूबा में फिदेल कास्त्रो के लोकप्रिय होने का। सन 2008 में राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देकर अपने भाई राउल कास्त्रो की ताजपोशी कर दी।
आधी दुनिया के लिए फिदेल कास्त्रो एक तानाशाह और क्रूर शासक थे, वहीं अधिकांश क्यूबावासिओं में लोकप्रिय भी थे। यह तो भविष्य बताएगा कि वे तानाशाह थे या शहंशाह किन्तु संसार के इतिहास के पन्नों पर उनका नाम अमिट अक्षरों में अंकित तो हो ही चुका है।