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क्या इतनी आसानी से अलग देश बन सकता है बलूचिस्तान, क्या है एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया?

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हमें फॉलो करें बलूचिस्तान कैसे बन सकता है एक आजाद देश

WD Feature Desk

, शनिवार, 17 मई 2025 (13:02 IST)
Free Baloch Movement: बलूचिस्तान की आजादी की मांग करने वाले वर्तमान में 4 चेहरे हैं- पहला नायला कादरी जो बलूचिस्तान की निर्वासित प्रधानमंत्री है। दूसरा डॉक्टर महरंग बलूच जो मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और इस वक्त वह पाकिस्तान की जेल में कैद है। तीसरा मीर यार खान जो सक्रिय स्वतंत्रता समर्थक, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और ‘फ्री बलूच मूवमेंट’ के प्रतिनिधि हैं। चौथा है बशीर जेब जो बलूच लिबरेशन आर्मी के चीफ है और जो पाकिस्तानी सेना से जमीनी मुकाबला कर रहे हैं। इससे पहले असलम बलोच थे जिन्हें पाकिस्तानी सेना मार दिया। सात-आठ दशकों के दमन, शोषण और जिल्लत के विरुद्ध उठी प्रतिरोध की आवाज को जब पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने नहीं सुना तो अब बलोच लैंड में सशस्त्र क्रांति की आग भड़क चुकी है।
 
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद बलूचिस्तान के एक प्रमुख कार्यकर्ता और लेखक मीर यार बलूच ने पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर कई बयान शेयर किए, जिसमें उन्होंने ‘बलूचिस्तान गणराज्य’ के गठन की घोषणा की। यही नहीं मीर यार बलूच ने संयुक्त राष्ट्र और भारत से मान्यता मांगी है। उन्होंने नई दिल्ली में दूतावास खोले जाने की मांग उठाई है। मीर यार ने कहा कि बलूचिस्तान भारत द्वारा 14 मई 2025 को पाकिस्तान से पीओके खाली करने के लिए कहने के फैसले का पूरा समर्थन करता है। अब सवाल यह उठता है कि बलूचिस्तान क्या सच में एक आजाद मुल्क बन सकता है? हां, लेकिन इसके लिए उसे 5 काम करना होंगे।ALSO READ: बलूचिस्तान यदि आजाद हुआ तो क्या रहेगी उसकी सीमा?
 
1. एक देश के रूप में योग्य बनाना: यदि बलूचिस्तान खुद को आजाद करना है तो उसे सबसे पहले अपनी सीमाओं और क्षेत्रफल को तय करना होगा। खुद की आबादी को सुनिश्चित करना होगा। खुद की पहचान और भाषा को सुनिश्चित करना होगा। इसके बाद उसे खुद की एक सरकार और सेना का गठन करना होगा। ऐसी सरकार जिसे अपनी आबादी का बहुमत हासिल हो। यानी उस क्षेत्र की जनता उसके साथ उसका समर्थन करती हो। इस सरकार के बाकी इकाइयों के साथ किसी न किसी तरह के संबंध होना चाहिए।
 
2. समर्थन और एक्शन को करना होगा तय: यदि उसकी सरकार अपने क्षेत्र के किसी आंदोलन, संगठन या एक्शन का समर्थन करती है तो यह तय होना चाहिए कि वह किसी भी प्रकार के आतंकवाद या उग्रवाद की समर्थन न हो बल्कि विद्रोही या मुक्ति संग्राम का समर्थन करती हो। यह कि वह आम जनता के खिलाफ न हो बल्कि सेना या सरकार के खिलाफ हो जो कि उस पर अत्याचार कर रही हो और यह कि जो मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में चरम पर हो। ALSO READ: बलूचिस्तान कब तक होगा पाकिस्तान से अलग, जानिए ज्योतिष विश्लेषण
 
3. आजादी का एलान: योग्यता और भीतरी समर्थन के बाद खुद को आजाद करने और मानने का ऐलान करके संघर्ष का मार्ग तय करना। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं कि कोई देश आजाद हो गया। आजादी की घोषणा इसलिए जरूरी है ताकि विश्व समुदाय का ध्यान इस ओर जाए और वह इस क्षेत्र के इतिहास और अत्याचार पर ध्यान दें। हालांकि ऐसा कई देशों के भीतर के क्षेत्र कर चुके हैं लेकिन उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली है, क्योंकि उनकी जनता का उनके साथ कोई समर्थन नहीं था और वे योग्य भी नहीं थे। लेकिन इससे यह तो तय हो जाता है कि उसे क्षेत्रीय अखंडता और स्वायत्तता जैसी गारंटियां मिल जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का दल इस क्षेत्र पर नजर रखता है। 
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4. विश्व समुदाय का समर्थन: आजादी के ऐलान के बाद निर्वाचित सरकार का यह कार्य रहता है कि वह विश्व के देशों में जाकर समर्थन हासिल करने का प्रयास करे और अपने यहां हो रहे अत्याचार और मानवाधिकार उल्लंघन के सबूत दें। इसी के साथ ही अपनी क्षेत्रीय पहचान, इतिहास और क्षेत्रफल के बारे में जानकारी को प्रसारित करना चाहिए। यदि कुछ देश सहमत हो जाते हैं तो वहां उन देशों में अपने दूतावास खोलने की प्रक्रिया करना चाहिए।
 
5. विश्व समुदाय से मान्यता: एक आजाद देश के तौर पर खुद को मान्यता दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों में से कुछ देशों का समर्थन जरूरी है। यानी किसी देश का अस्तित्व तभी माना जाएगा, जब अन्य देश उसके साथ संपर्क स्थापित करें या उसे मान्यता दें। इस मान्यता से ही किसी अलग इकाई को देश के तौर पर पहचान मिलती है। 
 
6. संयुक्त राष्ट्र से खुद को मान्यता दिलवाना: इसके बाद अंतिम कदम है संयुक्त राष्ट्र से पहचान मिलना। यह अंतिम चरण है और अगर किसी देश को संयुक्त राष्ट्र से अलग पहचान मिली है तो वह खुद को पूरी तरह आजाद मानता है। इसके लिए यूएन महासचिव को चिट्ठी लिखनी होती है और खुद को देश के तौर पर पहचान देने की मांग करना होती है। संयुक्त राष्ट्र की मान्यता के लिए आवेदन सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के पास भेजा जाता है। यह परिषद विचार करने के बाद आवेदक देश की एप्लीकेशन को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के पास भेजता है। अगर यूएनजीए के सदस्य दो-तिहाई के बहुमत से यह मंजूरी देते हैं कि खुद को स्वतंत्र घोषित करने वाली इकाई शांतिपूर्ण है और यूएन चार्टर के तहत अपनी जिम्मेदारियां निभा सकती है तो उसे एक अलग देश के तौर पर मान्यता मिल जाती है। यदि यूएन से मान्यता नहीं भी मिलती है तो भी वह देश आजाद बना रह सकता है अपनी शक्ति और कुछ देशों के समर्थन के बल पर।ALSO READ: बलूचिस्तान के बारे में 5 खास बातें, भविष्यवाणी- पाकिस्तान से होगा अलग?
 
  • नए देश की मान्यता के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव को आवेदन भेजा जाता है।
  • महासचिव उस आवेदन की जांच करने के बाद सुरक्षा परिषद के पास भेजता है।
  • सुरक्षा परिषद में 15 सदस्यों में से कम से कम 9 देशों का समर्थन जरूरी है।
  • यदि पांच स्थाई सदस्यों (चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका) में से कोई एक विरोध में वीटो करता है तो आवेदन रद्द हो जाता है।
बलूचिस्तान की राह में चीन, पाकिस्तान और उसके समर्थक देश रोड़ा डालते रहे हैं इसलिए वह 70 वर्षों से संघर्ष कर रहा है। चीन अपने वीटो का प्रयोग करके बलूचिस्तान को एक देश बनने से रोक सकता है। इसे भी उदाहरण से समझते हैं। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया 1948 में ही अलग हो गए थे। इन्हें कुछ देशों से मान्यता भी मिल गई थी। हालांकि, दोनों ही 1991 तक संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता हासिल नहीं कर पाए, क्योंकि यूएन में कभी अमेरिका तो कभी सोवियत संघ इस प्रस्ताव को वीटो कर देता था।  
 
- Anirudh Joshi

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