-इतिश्री सिंह राठौर
हाल ही में ओडिशा के रायगढ़ जिले में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) की अदालत ने गुणपुर सनसनीखेज ट्रिपल हत्या के मामले में 9 लोगों को फांसी की सजा सुनाई। महत्वपूर्ण बात यह है कि ओडिशा में जादू-टोना मामले में मौत की सजा का यह पहला उदाहरण है।
अपराधियों ने एक परिवार के 3 लोगों की हत्या कर दी थी जिसमें 2 महिलाएं शामिल थीं। उन लोगों ने पहले महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया फिर उनके गुप्तांग में कीटनाशक के इंजेक्शन दिए। उसके बाद लाठी और पत्थर से पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी। इस मामले की सुनवाई कर 13 अप्रैल को उन्हें मौत की सजा दी गई।
सिर्फ ओडिशा में ही नहीं, बल्कि झारखंड, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, असम, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में भी ऐसे मामलों के कई उदाहरण हैं, जहां डायन के संदेह में महिलाओं को नंगा कर बड़ी ही बेरहमी से उनकी हत्या करने की बात सामने आई है।
अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो सन् 2000 से 2016 के बीच भारत में जादू-टोने से संबंधित होने के संदेह में 2,500 लोगों के कत्ल हुए। इस क्रूरता के खिलाफ सबसे पहले कोई विधेयक लाने वाला राज्य बिहार है। 1999 में बिहार में 'प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिसेज एक्ट' पारित किया गया, वहीं झारखंड ने इस अमानवीय व्यवहार से महिलाओं की रक्षा के लिए 2001 में जादू-टोना के खिलाफ अधिनियम 'एंटी विचक्राफ्ट एक्ट' बनाया, साथ ही इससे शिकार लोगों को कानूनी सहायता प्रदान की।
सन् 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार ने टोनही (डायन) के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए 'छत्तीसगढ़ टोनही प्रतमा बिल' नामक एक विधेयक पारित किया। राजस्थान सरकार ने 2006 में 'राजस्थान वीमेन प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन फ्रॉम एट्रोसिटीज' नामक विधेयक के तहत जादू-टोना से संबंधित हिंसा को रोकने की पहल की। महाराष्ट्र में 'एंटीसुपरस्टीशन एंड ब्लैक मैजिक एक्ट' (2013) पारित हुआ। ओडिशा ने भी 2013 में 'प्रिवेंशन ऑफ विच हंटिंग बिल' के माध्यम से इस तरह की हिंसा को रोकने की पहल की है।
डायन या काला जादू करने के संदेह में किसी मासूम पर अत्याचार रोकने के लिए कानून बनाए जाने के बावजूद कई बार दोषी को सजा नहीं मिल पाती। इसकी सबसे बड़ी वजह है अपराधियों के खिलाफ सबूत की कमी। इतनी भयानक हिंसा के बाद लोगों के मन में इतना डर बैठ जाता है कि कोई भी कोर्ट में गवाही नहीं देना चाहता।
राष्ट्रीय स्तर पर काला जादू विरोधी कानून न होने की वजह से आए दिन सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी इस नृशंसता का शिकार हो रहे हैं। इस मामले में भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न धाराओं के अनुसार दोषी को दंड दिया जाता है। इसलिए समाज से इस घृणित अंधविश्वास को खत्म करने के लिए उचित कानून की आवश्यकता है, क्योंकि यह केवल किसी पर हिंसा का ही मामला नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति की सुरक्षा का अधिकार, जीवन का अधिकार, क्रूर और अमानवीय उपचार से मुक्त सभ्य जीवन जीने का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार छीनने का भी मामला है।
प्रचलित कानूनों का सही तरह से कार्यान्वयन न होने की वजह से भी लोगों के मन में इस क्रूरता के खिलाफ भय नहीं है। जिन राज्यों में इससे संबंधित कानून लागू किए गए हैं, वे प्रभावी नहीं हैं। इसीलिए राज्य स्तर पर मौजूद कानून को प्रभावशाली बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ठोस कानून बनाने की आवश्यकता है।
(यह लेख एनएफआई फैलोशिप कार्यक्रम के तहत लिखा गया है।)