Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

संविधान के बहाने कांग्रेस को बचाने की जुगत

हमें फॉलो करें संविधान के बहाने कांग्रेस को बचाने की जुगत
webdunia

विभूति शर्मा

मोदी और उनकी सरकार से हर क्षेत्र में मात खाती आ रही कांग्रेस ने अब संविधान को अपने ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयुक्त करना प्रारम्भ किया है। राहुल गांधी ने दिल्ली में संविधान बचाओ रैली का आगाज़ करते हुए हुंकार भरी है कि कांग्रेस संविधान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
 
दरअसल जब से सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया मामले की जांच संबंधी याचिका ख़ारिज की है, तभी से कांग्रेस व्यथित है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि अब वह इस सरकार को किस कटघरे में खींचे? जनता की अदालत में वह लगातार मात खा रही है। उसे लगता है कि मीडिया उसका साथ नहीं दे रहा। कार्यपालिका तो हमेशा सरकार के साथ ही खड़ी दिखाई देती है। विधायिका को वह स्वयं हंगामे की भेंट चढ़ा देते हैं। 
 
लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से अब न्यायपालिका का ही सहारा है, लेकिन कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि न्यायपालिका आशा या आशंकाओं के आधार पर काम नहीं करती, उसे हर मामले में ठोस सबूत चाहिए होते हैं। न्यायपालिका का ध्येय वाक्य ही है- 'भले ही सौ दोषी छूट जाएं, लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए।' 
 
लोया मामले में सुप्रीम कोर्ट से मुंहकी खाकर कांग्रेस को लग रहा है कि संविधान खतरे में है और इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा हैं, इसलिए उसने राज्य सभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू को चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लेन का प्रस्ताव सौंप दिया, हालांकि कानूनविदों के साथ सलाह मशविरे के बाद नायडू ने आशाओं और आशंकाओं पर आधारित प्रस्ताव को स्वीकृति योग्य नहीं माना है। 
 
आज जब देश में चारित्रिक क्षरण अपने चरम पर है, तब हमारे देश के कर्णधारों का कर्तव्य बन जाता है कि वे इस क्षरण को रोकने का हर संभव प्रयास करें। लेकिन इस देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि ये कर्णधार स्वयं इस क्षरण के भागीदार बने हुए हैं। देश की संवैधानिक संस्थाओं में लोगों का भरोसा क्रमशः खोता जा रहा है। उसका कारण राजनीति ही है। 
 
नेता वोट की खातिर विवादास्पद मामलों में कोई भी फैसला लेने से कतराता है और हर छोटे बड़े मामले को अदालत में ले जाने का ट्रेंड उसने बना लिया। वह यह कहकर अपना पल्ला झाड़ने लगा कि कानून अपना काम करेगा। लेकिन अब उसी कानून को कठघरे में खड़ा किया जाने लगा है। अब हालत यह हो गई कि यदि अदालत का फैसला मनमाफिक न आए तो उसे भी बदनाम करने से नहीं चूक रहा है। हाल के दो फैसले इसकी नजीर बन रहे हैं। पहला हैदराबाद विस्फोट मामले में असीमानंद समेत सभी आरोपियों की रिहाई और दूसरा जस्टिस लोया मामले में दायर याचिकाओं का खारिज होना।
 
 
लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से तीन विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया पर तो जनता भी ज्यादा भरोसा नहीं करती, पर इन सबसे ऊपर माने जाने वाले पहले स्तम्भ यानी न्यायपालिका पर अभी तक भरोसा बना हुआ है। राजनीतिक पार्टियां अब उसी पर निशाना साध रही हैं। भारत में संवैधानिक व्यवस्था लागू होने के बाद से पहली बार देश के प्रधान न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग लाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस समेत सात दलों ने इस संबंध में राज्यसभा के सभापति को प्रस्ताव सौंपा था।
 
 
हालांकि कांग्रेस जानती है कि इस प्रस्ताव को स्वीकार कर भी लिया जाता तो इसका क्या हश्र होता, क्योंकि उसके पास इस प्रस्ताव को पारित कराने लायक न तो संख्या बल है और न ही नैतिक बल। लोकसभा में तो उसके पास प्रस्ताव रखने लायक संख्या (सौ) भी नहीं है। इसीलिए प्रस्ताव राज्यसभा में लाया जा रहा है। जबकि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित होना जरूरी है और पारित कराने के लिए दो तिहाई मत चाहिए।
 
 
तो फिर प्रस्ताव लाने का मकसद क्या हो सकता है? इसका तो फिर एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि क्रमशः क्षरण को प्राप्त हो रही कांग्रेस और उसकी कुछ सहयोगी पार्टियां अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए आखिरी जंग लड़ने का प्रयास कर रही हैं।

प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाली पार्टियों के नाम से यह अंदाज लगाना सरल होगा। कांग्रेस के अलावा माकपा, भाकपा, रांकपा, सपा, बसपा और मुस्लिम लीग के नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं। संसद में कांग्रेस के बाद जो भी दूसरे बड़े दल हैं वे सभी इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है। यहां तक कि कांग्रेस के ही कुछ बड़े नेता भी इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। सलमान खुर्शीद ने तो साफ मना कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी किनारा कर गए।

सारी परिस्थितियों के मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ऐसे सलाहकारों से घिरे हुए हैं, जो उनकी और पार्टी की भद्द पिटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। पिछले लोकसभा चुनाव हारने के बाद से अब तक के पूरे घटनाक्रम पर नजर दौड़ने पर यह साफ हो जाएगा। ऐसे ही सलाहकारों की राय पर राहुल गांधी हुंकार भर रहे हैं कि प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में उनके सामने 15 मिनट नहीं टिक सकते। जबकि संसद वे स्वयं नहीं चलने देते। 
 
मेरा मानना है कि महाभियोग जैसी शक्ति का उपयोग अत्यधिक आपात स्थितियों में ही किया जाना चाहिए। या फिर ऐसी स्थितियों में जब आपके साथ संख्या बल हो, कम से कम नैतिक बल तो हो कि लोग आपके साथ जुड़ने की हिम्मत दिखा सकें। लेकिन ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। अपने राजनेताओं की हरकतों के कारण आम जनता को जरूर चारों ओर घटाटोप अंधेरा परिलक्षित हो रहा है। नैतिक क्षरण को प्राप्त ये नेता कभी दंगे में तो कभी बलात्कार में लिप्त बताए जा रहे हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जान बचाने के लिए भागते बब्बर शेर