खान सर की बेगम के घूंघट पर क्यों हुआ बवाल? पर्दा बन गया बड़ा सवाल!
, बुधवार, 4 जून 2025 (12:29 IST)
khan sir wedding reception wife appearance: मौका तो खुशी का था। जब से देश के सबसे चर्चित टीचर्स में से एक खान सर ने अपनी शादी का ऐलान किया लोग उनकी पत्नी को लेकर उत्सुक थे। हों भी क्यों ना लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके खान सर ने अपनी जीवन संगिनी के रूप में किसे चुना है हर किसी के मन में इस बात को लेकर कौतुक लाजमी था। 2 जून को जब खान सर ने शादी का रिसेप्शन दिया तो लोगों की निगाहें मिसेस खान पर ठहर गईं। बताया जा रहा है कि 5 हजार लोगों ने खान सर की शादी के रिसेप्शन में शिरकत की और इधर पूरी दुनिया जुटी थी खान सर की दुल्हनिया के दीदार के लिए। नए जोड़े के हाथों में हाथ लेकर रिसेप्शन में एंट्री ली। देश के दिग्गजों, राजनीतिज्ञों, सेलेब्रिटीज स्टेज पर दंपत्ति को बधाई देने पहुंचे। श्रीमती खान लाल जोड़े में सजी-धजी घूंघट में शर्माती-लजाती मुस्कुराती रहीं पर पूरे जलसे के दौरान घूंघट नहीं उतारा।
यहीं से शुरू हुआ विवाद!
पूरे जलसे के दौरान, श्रीमती खान का घूंघट नहीं उतरा। यह बात कुछ नेटिज़न्स को रास नहीं आई, और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। लोगों ने खान सर की अब तक की शिक्षा और उनके आधुनिक विचारों का हवाला देते हुए उन्हें "दकियानूसी" कहना शुरू कर दिया। उनकी बेगम के घूंघट की आड़ में उनकी सोच को बेपर्दा करने की कोशिश की गई, और देखते ही देखते खान सर ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए।
घूंघट की आड़ में सही और गलत पर छिड़ी बहस
यह घटना भारतीय समाज में पर्दा या घूंघट की प्रथा पर एक नई बहस छेड़ गई है। एक ओर जहाँ कई लोग इसे धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे महिला सशक्तिकरण और समानता के खिलाफ मानते हैं।
घूंघट एक निजी पसंद या सामाजिक प्रगति में बाधक
खान सर के मामले में, यह सवाल और भी बड़ा हो जाता है क्योंकि वे खुद लाखों युवाओं को शिक्षा और ज्ञान के माध्यम से सशक्त करने का काम करते हैं। ऐसे में उनकी निजी जिंदगी में घूंघट का दिखना, कई लोगों के लिए विरोधाभासी लग रहा है। फिलहाल, खान सर ने इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह घटना निश्चित रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक बहस का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गई है।
लेकिन जरा इस पर भी गौर करें
भारतीय समाज में शादी जैसे पवित्र संस्कार के नाम पर पिछले कुछ समय में जो पतन देखने को मिला है क्या उसे देख कर इस परंपरा का तिस्कार होते देख कोई सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए। वरमाला से लेकर फेरों तक शादी के नाम पर शालीनता के धज्जे उड़ाते युवा जोड़े जो भावनाओं और पवित्र रस्मों को जीने से ज्यादा मोमेंट केप्चर करने को लेकर बौराए नजर आते हैं, क्या वो शोभनीय लगता है। फैशन के नाम पर पारंपरिक परिधानों का जो आधुनिकरण हुआ है वहां घूंघट की बात तो बड़ी बेमानी लगाती है, लेकिन विशेषकर महिलाओं में अपनी ही शादी में देह-प्रदर्शन की जो आतुरता दिखाई देती है क्या वहां सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए?
भारतीय समाज में कहां से हुई पर्दा या घूंघट की शुरुआत?
घूंघट की प्रथा का इतिहास काफी पुराना है और यह विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग रूपों में मौजूद रही है। भारत में, इसका प्रचलन मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में देखा जाता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। माना जाता है कि इसकी शुरुआत सुरक्षा, मर्यादा और सामाजिक स्थिति को दर्शाने के लिए हुई थी। कुछ इतिहासकार इसे आक्रमणकारियों से महिलाओं की रक्षा से भी जोड़ते हैं, जबकि कुछ इसे पितृसत्तात्मक समाज की देन मानते हैं।
वैसे यदि इतिहास खंगालें तो भारत में वेद पुराण या अन्य किसी भी धार्मिक ग्रंथ में महिलाओं के लिए पर्दा या घूंघट जैसे किसी आवरण का उल्लेख नहीं मिलता। हिंदू समाज में पहले से घूंघट जैसी किसी प्रथा के न होने को लेकर एक तर्क ये भी दिया जाता है कि चाहे खजुराहों के मंदिरों में मूर्तियां हों या एलोरा की गुफाएं, महिलाओं के घूंघट का चित्रण नहीं है। वहीं इस्लाम की इस परंपरा के अनुसार, महिलाएं ऐसा पोशाक पहनती हैं, जिसमें शरीर और चेहरे को ढका जा सके।
आधुनिक युग में, जहाँ महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, ऐसे में घूंघट जैसी प्रथाओं पर सवाल उठना लाज़मी है। पर क्या यह व्यक्तिगत पसंद का मामला भी हो सकता है, या यह पारिवारिक मर्यादा और सामाजिक दबाव का परिणाम है? क्या यह परंपराओं का सम्मान है, या यह महिलाओं की प्रगति में बाधा है? सवाल तो हैं और जब दुनिया करे सवाल तो खान सर क्या देंगे जवाब, ये तो वक्त ही बताएगा।
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