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'मां' और ‘ममता’ की धरती पर क्यों खतरे में है स्त्री की अस्मिता!

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गरिमा मुद्‍गल

, मंगलवार, 1 जुलाई 2025 (16:14 IST)
kolkata law college rape case: पश्चिम बंगाल, एक ऐसा राज्य जहां दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता है, जहां स्त्री को शक्ति और ‘मां’ के रूप में पूजा जाता है। यह वही धरती है जहां की बागडोर एक महिला मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी के हाथों में है। बावजूद इसके, जब हम साल 2024 और 2025 के आंकड़े देखते हैं, तो एक भयावह तस्वीर उभरती है। संदेशखाली में टीएमसी नेताओं द्वारा महिलाओं का यौन शोषण, कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या, और हाल ही में 25 जून 2025 को फिर से कोलकाता के लॉ कॉलेज में छात्रा के साथ दुष्कर्म - ये घटनाएं न केवल शर्मनाक हैं बल्कि कई गहरे सवाल भी खड़े करती हैं। नारी की अस्मिता पर हो रहे ये लगातार हमले हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर हम कहां चूक रहे हैं?

कानून की धीमी चाल और अपराधियों का दुस्साहस
हाल की घटना में मुख्य आरोपी मोनोजीत मिश्रा का पुराना और लम्बा आपराधिक रिकॉर्ड है लेकिन सच्चाई ये है कि पिछले मामलों में उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिस लॉ कॉलेज में घटना हुई है वहां छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार की कई शिकायतें हैं जिन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कॉलेज प्रशासन ने भी अपराधी के इरादों को हवा दी है।

हमारे कानून में भले ही कड़े प्रावधान हों, लेकिन उनकी धीमी गति अक्सर अपराधियों को लाभ पहुंचाती है। कई बार मामलों की जांच में लंबा समय लगता है, अदालती प्रक्रियाएं वर्षों तक खिंचती हैं, और इस दौरान अपराधी या तो जमानत पर बाहर आ जाते हैं या फिर सबूतों से छेड़छाड़ का मौका पा जाते हैं। क्या अपराधी इस बात को भली-भांति समझते हैं कि कानून में अपराधी के बच निकलने के सैंकड़ों रास्ते मौजूद हैं? क्या यही कारण है कि वे लगातार ऐसे जघन्य अपराध करने का दुस्साहस करते हैं? फास्ट ट्रैक कोर्ट की अवधारणा होने के बावजूद, ऐसे मामलों में त्वरित न्याय मिलना अभी भी एक बड़ी चुनौती है।

क्या राजनीति स्त्री अस्मिता पर भारी पड़ रही है?
यह एक कड़वी सच्चाई है कि कई बार राजनीति और सत्ता का खेल स्त्री अस्मिता की रक्षा से भी बढ़कर हो जाता है। संदेशखाली इसका जीता जागता उदाहरण है, जहां राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगे और अपराधियों को दंडित करने में देरी हुई। क्या वोटों की राजनीति ने अपराधियों को बेखौफ कर दिया है? क्या राजनीतिक दलों का महिलाओं की सुरक्षा के प्रति ढुलमुल रवैया अपराधियों को और बढ़ावा दे रहा है? यह एक बड़ा सवाल है कि जब सत्ताधारी दल के भीतर से ऐसे मामले सामने आते हैं, तो क्या कानून का राज सही मायने में स्थापित हो पाता है?

समाज की दोहरी मानसिकता: स्त्री सुरक्षा पर हावी पुरुषवादी सोच
आज समाज ने महिलाओं को पढ़ने की आज़ादी दी है, उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दिए हैं, लेकिन क्या सच में हमारी मानसिकता बदल पाई है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी हम एक पुरुषवादी मानसिकता की गुलामी से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाए हैं। महिलाएं भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हों, महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हों, लेकिन सड़कों से लेकर कार्यस्थलों तक, उन्हें आज भी असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। छेड़खानी, यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसी घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि हमारी सोच में एक गहरा विरोधाभास है। हम एक तरफ स्त्री को देवी मानते हैं, तो दूसरी तरफ उसे वस्तु समझते हैं।

दुर्गा मां और ममता की धरती पर हो रहे ये अपराध हमें आत्मचिंतन करने पर मजबूर करते हैं। यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि हमारी सामाजिक और नैतिक चेतना का भी सवाल है। हमें न केवल कानूनों को मजबूत करना होगा, बल्कि उनके त्वरित और प्रभावी क्रियान्वयन को भी सुनिश्चित करना होगा। सबसे बढ़कर, हमें अपनी पुरुषवादी सोच को बदलना होगा और हर कीमत पर नारी की अस्मिता की रक्षा करनी होगी। जब तक समाज का हर वर्ग, हर व्यक्ति इस दिशा में मिलकर काम नहीं करेगा, तब तक ऐसे सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलेगा।
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