- अजय कुमार, लखनऊ
26 जनवरी और 15 अगस्त आम हिन्दुस्तानी के लिए विशेष दिवस भर नहीं है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो 26 जनवरी 1950 को संविधान बनाकर तय किया गया कि देश को कैसे चलाया जाएगा?
यहां हम बात 15 अगस्त की कर रहे हैं। यह दिन देश की आन-बान और शान के लिए कुर्बानी देने वालों को याद करने का मौका होता है। याद उन शहीदों को किया जाता है, जिनके शौर्य की वजह से देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिली।
हम अगर आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं तो इसका पूरा श्रेय देश की आजादी के लिए जान निछावर करने वाले शूरवीरों को जाता है जिनकी गाथाओं से इतिहास पटा पड़ा है तो ऐसे शूरवीरों की भी संख्या कम नहीं है जिन्हें इतिहास के पन्नों में भले ही जगह नहीं मिल पाई हो, लेकिन उनका सम्मान कभी किसी हिन्दुस्तानी के दिल में कम नहीं रहा।
तमाम ऐसे जाने-अनजाने आजादी के मतवालों को याद करना हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है जिससे किसी भी तरह से बचा नहीं जा सकता है। चाहे हमारा कोई धर्म, कोई भाषा, कोई क्षेत्र हो, लेकिन देश के लिए जान देने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानी सबके लिए पूजनीय और वंदनीय होना चाहिए।
देश के लिए कुर्बानी देने वालों का सम्मान के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता है। उनकी याद में कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम और राष्ट्रगान बज जाए, यही बहुत होता है। परंतु जब ऐसा करने में भी कुछ लोगों को परहेज होने लगे तो प्रश्न उठना तो लाजिमी है। सवाल यही है कि क्या हम अपने शहीदों को वह सम्मान दे पाते हैं जिसके वे हकदार हैं?
बात 15 अगस्त की हो या फिर गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की, कई वर्षों से अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि कुछ शैक्षिक और सामाजिक संस्थाएं राष्ट्रीय पर्वों को मनाने में भी गुरेज करती थीं। कभी धर्म की आड़ में, तो कभी विचारधारा के नाम पर राष्ट्रीय पर्वों से किनारा करने वालों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को हमेशा नजरअंदाज किया जाता रहा। सिर्फ इसलिए, क्योंकि सत्ता में बैठे दलों को लगता था कि अगर ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई तो उनकी पार्टी का वोट बैंक नाराज हो जाएगा। कई बार राष्ट्रविरोधी तत्वों की ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कुछ जिम्मेदार लोगों ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया, मगर कभी सरकारी रुख के लचीलेपन के कारण तो कभी धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिकता के नाम पर ऐसे लोगों की आवाज दबा दी गई।
ऐसी राष्ट्रविरोधी शक्तियों का विरोध अगर किसी दल और संगठन ने किया तो वह भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा अन्य कुछ हिन्दूवादी संगठन शामिल थे। इसकी इन्हीं कीमत भी चुकानी पड़ी। दरअसल, हमारे देश की यह विडंबना रही है कि यहां का हिन्दू कभी वोट बैंक नहीं बन पाया। जब भी उसे वोटिंग करने का मौका मिला, उसने अपने विवेक का इस्तेमाल किया जबकि देश का मुसलमान हमेशा से अपने विवेक की जगह फतवों और धर्मगुरुओं की मंशा के अनुरूप ही वोटिंग करने वालों के रूप में जाना जाता रहा।
यह सिलसिला आजादी के 70 साल बाद भी बदस्तूर जारी है। इसका फायदा लंबे समय तक कांग्रेस और उसके बाद मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, मायावती जैसे जातिवाद की राजनीति करने वाले नेताओं ने खूब उठाया। मुसलमानों को बीजेपी का भय दिखाकर अपने पाले में खड़ा करने में कामयाब रहने वाले नेताओं के कारण देश का मुसलमान अपनी मूल समस्याओं से कभी बाहर ही नहीं निकल सका। आज भी देश का मुसलमान अन्य बिरादरियों से शैक्षिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। तीन तलाक, हलाला जैसी बुराइयां उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं जिसने मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रख दिया है।
यह देश का दुर्भाग्य है कि यहां की 20 प्रतिशत आबादी के एक धड़े में आज तक देशप्रेम की भावना नहीं जागी है। धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं और धर्म को सबसे ऊपर मानते हैं। इस्लाम की आड़ में तमाम गुनाहों पर पर्दा डालने की साजिश रची जाती है इसीलिए तो इन लोगों को राष्ट्रगान गाने में शर्म लगती है।
वंदे मातरम् का तराना गाकर आजादी के समय कई मुस्लिम क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी थी, लेकिन आज वंदे मातरम् सांप्रदायिक हो गया है। समझ में नहीं आता कि पहले वाले सही थे या आज वाले मुलसमान सही हैं? यह छोटी सी हकीकत है, जबकि बड़ी हकीकत यह है कि तमाम मदरसों में हर साल पहले से आजादी से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है।
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दुख की बात यह है कि देश की बड़ी आबादी के एक छोटे से धड़े की राष्ट्रविरोधी सोच के कारण इस बार भी 15 अगस्त विवादों में घिरा रहा, लेकिन अबकी बार निजाम का मिजाज बदला हुआ था इसलिए इन लोगों (राष्ट्रगान गाने से परहेज करने वालों की) की मनमानी अबकी से इनके ऊपर भारी पड़ती दिख रही है।
गौरतलब हो, हाल ही में योगी सरकार ने सर्कुलर जारी किया था जिसके अनुसार सभी शैक्षणिक संस्थाओं और मदरसों को 15 अगस्त के कार्यक्रम धूमधाम से आयोजित करने थे जिसमें शहीदों के बारे में छात्र-छात्राओं को जानकारी देने के अलावा राष्ट्रगान गाना भी जरूरी था। यह भी कहा गया था कि सभी शैक्षणिक संस्थाएं कार्यक्रम की वीडियोग्राफी कराएंगी, लेकिन योगी सरकार का इकबाल सब जगह काम नहीं आया और उत्तरप्रदेश के कुछ मदरसों में न तो राष्ट्रगान हुआ और न ही शहीदों को याद किया गया। कई जगह तो इसको लेकर बवाल भी हुआ जिसके छींटें सियासी दलों पर भी पड़े।
सहारनपुर के ग्राम मर्वीकला स्थित मदरसे में राष्ट्रध्वज फहराए जाने एवं राष्ट्रगान गाने को लेकर मदरसा कमेटी और सपा नेता आपस में भिड़ गए। आरोप है कि सपा नेता एवं एक शिक्षक ने अपने दर्जनों साथियों के साथ मिलकर मदरसे में मौजूद लोगों पर फायरिंग कर दी जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए। ये लोग ध्वजारोहण कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे। हालात ज्यादा बिगड़ने पर पुलिस को मदरसा कमेटी के उपाध्यक्ष हाजी यामीन की तहरीर पर आरोपी सपा नेता सहित 21 लोगों के खिलाफ राष्ट्र गौरव अपमान एवं बवाल का मामला दर्ज करना पड़ा।
इसी प्रकार योगी सरकार के आदेश के खिलाफ 12 अगस्त को बरेली शहर के काजी मौलाना असजद रजा खान ने जिले के मदरसों को फरमान जारी कर दिया था कि 15 अगस्त को राष्ट्रगान न गाया जाए। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में भी आरोपी मौलाना ने कहा कि राष्ट्रगान गाना या न गाना उनका निजी मामला है। हालांकि अब रजा खान का राष्ट्रविरोधी फरमान अदालत की चौखट तक पहुंच गया है, जहां अंतिम फैसला होगा।
इसके अलावा कानपुर, बरेली समेत कई जिलों के कुछ मदरसों में राष्ट्रगान न गाकर इकबाल का तराना 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां' हमारा गाया गया। लखनऊ के कुछ मदरसों में भी राष्ट्रगान से परहेज किया गया। हालांकि अंबेडकर नगर, श्रवस्ती, अमेठी, गोंडा, बहराइच, फैजाबाद और रायबरेली के मदरसों में ध्वजारोहण के साथ ही राष्ट्रगान गाया गया, लेकिन कानपुर के अधिकांश मदरसों में ये कहकर वीडियोग्राफी भी नहीं कराई गई कि हमें देशभक्ति का प्रमाण देने की जरूरत नहीं है।
बरेली मंडल के मदरसों में तिरंगा फहराने के बाद इकबाल का तराना गाया गया। कई जगह पुलिस ने वीडियोग्राफी कराने की कोशिश की तो विरोध आड़े आ गया। दरगाह आला हजरत के फरमान का असर सुन्नी मदरसों में दिखा। इनमें राष्ट्रगान नहीं हुआ, हालांकि शिया और देवबंदी मसलक के मदरसों में राष्ट्रगान हुआ। दरगाह ने दावा किया कि वाराणसी, गोरखपुर, गाजियाबाद, बदायूं, मुरादाबाद से लेकर देशभर के सुन्नी मदरसों में राष्ट्रगान के बजाय तराना गूंजने की रिपोर्ट पहुंची है।
इस सबके बीच अच्छी खबर यह आई कि स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाने वाले दारूल उलूम में 40 साल के बाद तिरंगा फहराया गया। इस अवसर पर मदरसा छात्रों ने देशभक्ति के तराने पेश कर वतन से मोहब्बत का इजहार किया। हां, योगी के आदेश ने राजनीतिक दलों को जरूर सियासत चमकाने का मौका दे दिया। सपा, बसपा और कांग्रेस एक सुर में योगी सरकार पर हमलावर हो गईं।
लब्बोलुआब यह है कि योगी सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस कैसे मनाया जाए, इसको लेकर शैक्षणिक संस्थाओं के लिए जारी किए गए फरमान को कुछ मदरसों ने ठेंगा दिखा दिया। ऐसे मदरसों की हठधर्मी, योगी सरकार के आदेश पर भारी पड़ती दिखी। अब गेंद योगी सरकार के पाले में है। वे क्या कदम उठाते हैं? फिलहाल, ऐसा लगता नहीं है कि योगी सरकार अपने कदम पीछे खींचेगी। सरकार का रुख भांपकर तमाम जिलों के प्रशासन ने स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाने वाले मदरसों की सूची तलब की है।
देखना होगा कि सरकार का फरमान नहीं मानने वाले मदरसों के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई होती है?