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कैसे मुड़ा पाकिस्तान आत्मघात की ओर?

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शरद सिंगी

आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान की छवि संसार में एक उद्दंड, अनुशासनहीन, आतंकवादी, बर्बर और सिरफिरे राष्ट्र की है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में वह एक बदनाम राष्ट्र है, जो पड़ोसियों से भी तिरस्कृत है और मध्य-पूर्व के सहधर्मी देशों से भी। संसार में उसके इस प्रकार लांछित और एकाकी हो जाने के पीछे विगत 50 वर्षों का इतिहास है। 
हमारे आचार्यों से हमने सीखा है कि राष्ट्र का वर्तमान उसके इतिहास के गर्भ से निकलता है, किंतु कभी आश्चर्य होता है कि भारत और पाकिस्तान का इतिहास तो सहस्रों वर्षों का साझा इतिहास रहा है तो फिर ऐसा क्यों कि उसका वर्तमान हमारे वर्तमान से भिन्न है? मात्र 70 वर्षों पूर्व ही तो हम अलग हुए हैं।
 
हम यह भी जानते हैं कि इंसान का चरित्र उसके पूर्वजों की सोच और उनके आचरण की धरोहर है तो फिर हमारे पूर्वज एक होने के बावजूद पाकिस्तान का चरित्र और प्रकृति, हमारे चरित्र और प्रकृति से विपरीत क्यों है? हमने उन अनेक पश्चिमी यात्रियों के बारे में सुना है, जो शांति की तलाश में भारत आते हैं किंतु ऐसा क्यों है कि पश्चिम से कई लोग पाकिस्तान जाते हैं आतंकी बनने?
 
बचपन में एक कथा पढ़ी थी कि एक महात्मा पत्थरों के बीच फंसे बिच्छू को निकालने का प्रयास करते हैं किंतु बिच्छू उन्हें डंस लेता है। वे प्रयास करना नहीं छोड़ते। हर बार वे कोशिश करते हैं और हर बार बिच्छू उन्हें डंस लेता है। पास खड़ा व्यक्ति जो बड़े आश्चर्य से महात्मा के इस प्रयास को देख रहा था आखिर पूछ ही बैठा, महात्मा इस प्राणी को बचाने के लिए आप इतने उद्यत क्यों हैं, जो हर बार आपको हानि पहुंचा रहा है? महात्मा बोले- वत्स, वह अपनी प्रकृति नहीं छोड़ रहा और मैं अपना धर्म। 
 
ऐसी अनेक बोधकथाएं, आचार संहिताएं, गुरुवाणियां हमने सुनी और जीवन में उतारी हैं। भारतीय साहित्य ऋषियों, मनीषियों तथा फरिश्तों की अमर वाणियों से सिंचित है। यह कथा भारत और पाकिस्तान के वर्तमान संदर्भों में मौजूं लगती है। भारत बार-बार मित्रता के हाथ बढ़ाता रहा और हर बार उसे हानि उठानी पड़ी। अंत में सब्र का बांध टूटा और सौ सुनार की चोटों पर लुहार की एक भारी-भरकम चोट लगानी पड़ी। 
 
खैर, हम बात कर रहे थे भारतीय संस्कृति की। भारत में मुस्लिम धर्म में भी कई दीन हैं, जैसे शिया, सुन्नी, अहमदिया, तैयबी इत्यादि। किंतु पंथ कोई भी हों, भारतीय इस्लाम ने कभी अपनी भारतीयता का त्याग नहीं किया, वह अपनी मिट्टी से जुड़ा रहा और अपनी जमीन को सदैव मादरे वतन कहा। यही वजह है कि इन पंथों में वैचारिक मतभेद होने के बावजूद सारे त्योहार साझा मनाए जाते हैं। 
 
सभी पंथों द्वारा मुहर्रम मनाना या एक-दूसरे के इबादतघरों का आदर करना इसका उदाहरण है। यहां धर्मस्थलों में बम नहीं फोड़े जाते। आम नागरिक को वैचारिक मतभेदों से न कोई सरोकार है और न ही उनमें कोई दिलचस्पी है। क्षणिक आवेग में हिंसा के कुछ अपवादों को छोड़ दें तो मतभेदों को सुलझाने के लिए हमारे यहां हिंसा का सहारा नहीं लिया जाता। भारतीय संस्कृति जब अहिंसा, संयम और समभाव पर आधारित है तो फिर वही प्रश्न उठता है कि पाकिस्तान की अवाम की दिशा और चाल भारत से विपरीत कैसे हो गए?
 
भारत में हम अपने पूर्वजों द्वारा दर्शाए मार्ग पर चलते रहे किंतु पाकिस्तान ने अलग होने के साथ ही अपने साझे इतिहास से भी संबंध विच्छेद कर लिया। अपने पूर्वजों के आदर्शों को छोड़ उसने कासिमों, तैमूरों और गजनवियों को अपना हीरो बनाया। हमने अपने इतिहास को सहेजकर रखा और पाकिस्तान ने अपना अतीत गुसलखाने में धो दिया। इस जिद में उसने अपने इतिहास को ऐसी सभ्यताओं के इतिहास से जोड़ने की कोशिश की जिनमें मारकाट और युद्ध के अतिरिक्त कोई दर्शन (फिलॉसॉफी) नहीं है। 
 
मजे की बात यह रही कि जिनके साथ इन्होंने अपने को जोड़ने की कोशिश की उन्होंने इन्हें अपनाया ही नहीं। फिर उन्होंने अपने आपको धर्म से जोड़ने की कोशिश की और इंसानियत को नकार दिया। धर्मोपदेशक के नाम पर हाफिज सईद जैसे आतंकी हों तो कौन सिखाएगा कि जन्नत का रास्ता जहन्नुम से होकर नहीं गुजरता है। ऊपर से गलतफहमी यह कि भारत का मुसलमान इनकी सोच और आचरण से प्रभावित है। 
 
भारतीय मुस्लिम समाज को अपनी जमीन और अपने इतिहास पर गर्व है और न ही उन्होंने कभी अपनी जड़ें उखाड़ने का सोचा। वे अपने वतन की रक्षा के लिए हर कुरबानी देने को तैयार हैं किंतु यह बात पाकिस्तानियों की समझ से परे है, क्योंकि यदि बलूचों और पख्तूनों को छोड़ दें तो बाकियों को अपनी मिट्टी की खुशबू की पहचान ही नहीं है तो फिर कोई क्यों पराई मिट्टी पर कुरबान होगा।
 
पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया से अपनी जड़ें तो खोद लीं और पश्चिम एशिया में उन्हें रोपने की कोशिश भी की किंतु पश्चिम एशिया ने उसे तिरस्कृत कर दिया। इस तरह वे न तो दक्षिण एशिया के रहे और न ही पश्चिम एशिया के। अत: अब जड़ें जमीन के भीतर न होने से यह पेड़ परजीवी बन चुका है। मिट्टी और पानी के बिना पलने वाले इस राष्ट्र से उपज क्या होगी, हम समझ सकते हैं। जमीन से उखड़े वृक्ष की जिंदगी कितने दिनों की? यही कारण है कि भारत का वर्तमान, पाकिस्तान के वर्तमान से भिन्न है। 

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