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'नशामुक्त पंजाब' का नारा कैसे बनेगा हकीकत?

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उमेश चतुर्वेदी

पंजाब में बढ़ती नशाखोरी और उसके पीछे सूबे के मौजूदा सरकारी तंत्र के हाथों के साथ को आम आदमी पार्टी ने बड़ा मुद्दा बनाया है। आए दिन पंजाब की गर्वीली धरती पर दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के नेताओं के दौरे इस मसले को लगातार उछालने की ही कवायद है। इसमें कोई शक भी नहीं है कि पंजाब में नशे और ड्रग के कारोबार ने एक पूरी पीढ़ी को चपेट में ले लिया है। इससे वहां का आम आदमी हलकान है। 
अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी की इसी भावना को राज्य के अगले विधानसभा चुनावों में भुनाने की कोशिश में है, लेकिन उसी आम आदमी पार्टी के दिल्ली के राज में शराबनोशी को बढ़ावा देने का खुलासा हुआ है। आम आदमी पार्टी वैसे तो दिल्ली की राजनीति की पारंपरिक पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर आए दिन रहती ही है। 
 
लेकिन आम आदमी पार्टी के राज में दिल्ली में बढ़ती शराबनोशी का खुलासा केजरीवाल के ही सहयोगी और एक दौर में फ्रेंड-फिलॉसफर-गाइड रहे आनंद कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की अगुआई वाले स्वराज अभियान ने किया है। 
 
स्वराज अभियान की एक आरटीआई से पता चला है कि आप सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान दिल्ली में 595 शराब के ठेके थे जिनसे करीब 8 अरब 30 करोड़ 48 लाख 13 हजार की आय हुई। लेकिन केजरीवाल के दूसरे कार्यकाल में शराब के ठेकों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। सिर्फ लगभग सवा साल यानी 14 फरवरी 2015 से लेकर 4 जून 2016 के ही बीच दिल्ली में 58 शराब के ठेकों के नए लाइसेंस दिए गए। 
 
यहां यह जानना जरूरी है कि केजरीवाल सरकार की नई आबकारी नीति के अनुसार स्थानीय विधायक की इजाजत के बिना कोई भी ठेका नहीं खुल सकता। दिलचस्प यह है कि सिर्फ सवा साल में सिर्फ एल-6, एल-7 और एल-10 श्रेणी के ठेकों से शराब की खपत में भारी बढ़ोतरी हुई और राज्य सरकार ने 15 अरब से ज्यादा की कमाई कर ली है।
 
दिलचस्प यह है कि आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में 61वें नंबर पर खुलकर दिल्ली की जनता से वादा किया था कि वह दिल्ली को नशामुक्त बनाने का प्रयास करेगी। इतना ही नहीं, उसने यह भी वादा किया था कि वह इलाके में शराब का ठेका शुरू करने के लिए स्थानीय जनता की राय भी लेगी। बात-बात में जनता की राय लेने का दावा करने वाली सरकार ने क्या सचमुच 58 ठेके खोलने के लिए जनता की सलाह ली? 
 
इससे भी हैरतअंगेज बात यह है कि दिल्ली सरकार के मद्य निषेध विभाग ने शराब से दूर रहने के विज्ञापनों पर सिर्फ 7.76 लाख रुपए ही इस दौरान खर्च किए हैं। जो सरकार अपनी उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए 526 करोड़ का भारी-भरकम बजट रख सकती है, उस सरकार की तरफ से अपने ही वादे को पूरा करने के लिए अगर ऐसा रुख दिखेगा तो जाहिर है कि सवाल उठेंगे ही। इसका जवाब अभी तो स्वराज अभियान ने ही मांगा है। लेकिन यह सवाल निश्चित तौर पर पंजाब में कांग्रेस उठाएगी। 
 
भारतीय जनता पार्टी हो सकता है कि अकाली गठबंधन की मजबूरियों के चलते इस सवाल से कन्नी काटे, लेकिन यह तय है कि पंजाब कांग्रेस इस मसले पर अरविंद केजरीवाल की सरकार और उनकी पार्टी को घेरने की कोशिश करेगी। वह जनता को यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि पंजाब को नशामुक्त बनाने का दावा करने वाले खुद इस मसले पर कितने पाक-साफ हैं। 
 
ऐसे में पंजाब के चुनाव मुकाबलों में आम आदमी पार्टी के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाए तो हैरत नहीं होनी चाहिए। चूंकि वह हर तरह के सवालों से मुठभेड़ करने के लिए अपने नायाब तर्क गढ़ लेती है। लिहाजा देखना होगा कि आम आदमी पार्टी की सरकार इस मसले पर अपने बचाव में किस तरह का तर्क गढ़ती है।

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