काहिरा। एक प्रमुख खाड़ी देश कतर को लेकर क्षेत्र के अन्य देशों ने उससे राजनयिक संबंध समाप्त कर लिए। अभी तक कई देशों जैसे सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, यमन और लीबिया ने कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए हैं। इतना ही नहीं, सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और बहरीन से कतर के लिए हवाई, जमीनी और समुद्री रास्ते बंद कर दिए गए।
इन देशों ने समवेत सुर में कतर पर आरोप लगाया है कि वह क्षेत्र में कथित इस्लामिक स्टेट और चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है। चार कारणों से अरब देशों ने कतर से संबंध तोड़ लिए हैं, लेकिन कतर ने इस आरोप को खारिज किया है कि वह चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोपों का खंडन करता है।
अब चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले इन आरोपों में कितना दम है, इस सवाल के जवाब में अल जजीरा के पूर्व पत्रकार रुबिन बनर्जी का मानना हैं कि इस तरह के आरोप लगाना मुश्किल काम नहीं है। क्योंकि सभी जानते हैं कि सऊदी अरब से भी तमाम देशों को तरह-तरह की फंडिंग होती है।
कतर के पास बहुत सारा पैसा है और यह पैसा यह अलक़ायदा को या फिर तालिबान को दे रहा है, इस बात को पूरे विश्वास के साथ कहा नहीं जा सकता है। इसलिए माना जा रहा है कि प्रतिबंध लगाने के पीछे क्षेत्रीय राजनीति एक बड़ा कारक है।
सऊदी अरब, अन्य देशों ने जिस तरह से कतर से राजनयिक संबध तोड़े हैं इसकी तात्कालिक वजह क्या रही, इसे कोई भी नहीं जानता है। इसके पीछे चरमपंथ का मुद्दा है या अन्य दूसरे कारण भी हैं। पाकिस्तानी पत्रकार राशिद हुसैन कहते हैं, 'तात्कालिक वजह तो कतर के शेख का वह विवादित संदेश है जिसमें वे कहते हैं कि क्षेत्र में स्थिरता के लिए ईरान का साथ बेहद जरुरी है।'
हालांकि बाद में कतर ने बाद में सफाई देते हुए कहा कि ये उनकी आधिकारिक टिप्पणी नहीं है। इसके बाद प्रतिबंध लगाना इन 6 मुस्लिम देशों का जवाब है। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब क़तर से इस्लामी दुनिया के देशों ने संपर्क तोड़े हों।
इससे पहले 2014 के मार्च महीने में भी सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने क़तर पर उनके आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाते हुए अपने राजदूत वापस बुला लिए थे। इस संबंध में यह जानना जरूरी होगा कि कतर पहले से ही ईरान का समर्थक रहा है। ईरान से सउदी अरब की असुरक्षा की भावना अब सामने आ रही है और वह अपने क्षेत्रीय ताकतों से दबाव की राजनीति को इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन अरब देशों का यह फैसला तब सामने आया जब खाड़ी देशों और ईरान के बीच तनाव बढ़ रहा है।
हाल में अरब यात्रा पर पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान पर चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगाए थे। लेकिन इस बार प्रतिबंधों का परिणाम यह हुआ है कि इस घटना से अमेरिका के साथ नजदीकी रखने वाले दोस्त खाड़ी देशों के बीच एक बड़ी दरार आ गई हैं।
कतर पहले भी इस तरह के प्रतिबंधों का सामना कर चुका है जिनका कोई ज्यादा असर नहीं हुआ है क्योंकि ना तो कतर इन देशों पर निर्भर है और ना ही ये देश कतर के सहयोगी हैं। लेकिन ईरान के खिलाफ जिन 54 अरब देशों को एकजुट करने की कोशिश हो रही थी, वह जरूर असफल हो गई है।
क्या है संकट का समाधान ? : इस्लामी देशों के राजनयिक संपर्क तोड़ने और तमाम प्रतिबंधों के बाद क्या वाकई कतर दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा। कतर के पास क्या विकल्प हैं और इस संकट का भविष्य क्या है?
इस सवाल के जवाब में रुबिन बनर्जी कहते हैं कि ये संकट जल्द सुलझ जाना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा ना हुआ और ईरान के साथ कतर ने रणनीतिक साझेदारी कर ली तो खाड़ी देशों के लिए दिक्कतें बढ़ जाएंगी। अगर क़तर ने चीन के साथ साझेदारी कर ली तो फिर अमेरिका, सउदी अरब के साथ मिलकर भी क्या करेगा?
लेकिन कतर और सऊदी अरब के बीच इस संकट को हल करने का प्रयास लगातार जारी है और इसके लिए कुवैत के अमीर इन देशों के बीच मध्यस्थता का नेतृत्व कर रहे हैं। उम्मीद की रही है कि यह संकट भी थोड़े दिनों बाद सुलझ जाएगा।