भारत-पाक के बीच बेहतर रिश्तों को लेकर हर बार भारत ही एक कदम बढ़ाता है। प्रत्यक्ष तौर पर तीन-तीन आक्रमण और करगिल जैसे विश्वासघात के साथ ही पहले पंजाब और बाद में कश्मीर में छाया युद्ध करने वाले पाकिस्तान की तरफ जब भी भारत की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ता है, एक खास तरह के बौद्धिक तबकों को राहत और सुकून मिलता है। लेकिन आम जनता का एक बड़ा हिस्सा यह समझ नहीं पाता कि आखिर आक्रामक और बदनीयत पाकिस्तान को लेकर भारत हर बार नरमी का रुख क्यों दिखाता है।
भारतीय इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है, जब उसके किसी महत्वपूर्ण राजनीतिक और शासन की हस्ती ने पाकिस्तान की धरती पर जाकर खरी-खरी सुनाई है। पाक की धरती पर हुए दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन यानी सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने जिस तरह कठोर शब्दों में उसकी आतंकपरस्त नीति की आलोचना की, उसके संकेत साफ हैं। संकेत यह कि भारत की पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति में बदलाव हो सकता है। यानी भारत कठोर कार्रवाई भी कर सकता है।
निश्चित तौर पर पाकिस्तान के लिए भारत के रुख में यह बदलाव हैरानी और परेशानी की वजह है। उसकी परेशानी और हैरानी इसलिए भी ज्यादा बढ़ सकती है, क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सबसे पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को ही न्योता दिया था। इतना ही नहीं, उनकी पोती की शादी के मौके पर अचानक ही पाकिस्तान पहुंच गए थे। भारत की तरफ से पाकिस्तान को दोस्ती का इससे बड़ा और क्या संकेत हो सकता था। लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा की तरह सब किए-धरे पर पानी फेर दिया।
कश्मीरी आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद उसे शहीद का दर्जा दिया और 19 जुलाई को काला दिवस मनाया। ऐसे में भारत कब तक चुप रहता। लिहाजा राजनाथ ने सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में पाकिस्तान पहुंचकर उसे खरी-खरी सुना दी। उन्होंने सवाल उठा दिया कि आखिर कोई आतंकवादी शहीद कैसे हो सकता है। इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अहमद से कायदे से हाथ तक नहीं मिलाया। और तो और, उन्होंने वहां आयोजित आधिकारिक भोज में हिस्सा भी नहीं लिया और बिना खाए-पिए भारत लौट आए। और इस तरह पाकिस्तान की धरती पर दिलेरी दिखाने वाले वे पहले नेता बन गए।
इससे भारत में जहां राजनाथ का कद ऊंचा हुआ है, वहीं पाकिस्तान को नहीं सूझ रहा है कि भारत के इस हमले का जवाब कैसे दे। बेहतर बात यह रही कि पाक प्रायोजित आतंकवाद से न सिर्फ उसका पड़ोसी अफगानिस्तान भी कराह रहा है, बल्कि बांग्लादेश में भी कट्टरतावाद बढ़ रहा है और आए दिन वहां की भी धरती खून से रंग रही है।
इसलिए राजनाथ की बात का अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने भी समर्थन किया। चूंकि इन देशों के अलावा सार्क में श्रीलंका, भूटान, मालदीव और नेपाल ही सदस्य हैं, लिहाजा माना जा सकता है कि आधे देश पाकिस्तान के खिलाफ हैं। इससे सार्क की अंदरूनी राजनीति में भी आतंकवाद के चलते पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है।
बेशक भारत सरकार ने अभी तक पाकिस्तान में राजनाथ सिंह के साथ हुई बदसलूकी को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन इससे यह साबित नहीं हो जाता कि पाकिस्तानी धरती पर हुई बदसलूकी से भारत को कोई फर्क नहीं पड़ा है। पाकिस्तान को डर था कि राजनाथ क्या बोल सकते हैं। इसलिए उसने ना सिर्फ राजनाथ के भाषण के प्रसारण को रोक दिया, बल्कि उसका मीडिया कवरेज भी नहीं करने दिया। भारत से गई मीडिया टीमों को भी अलग रखा गया।
इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान खुद अपनी पोल खुलने से डर रहा था। किसी चुने हुए देश के गृहमंत्री के खिलाफ आतंकवादी संगठन प्रदर्शन करें, यह भी लोकतांत्रिक देश में अब तक संभव नहीं हुआ है, लेकिन पाकिस्तान में ऐसा हुआ। राजनाथ के खिलाफ आतंकी संगठनों ने प्रदर्शन किया और पाकिस्तान चुप बैठा रहा। चूंकि इन कामों से पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है, लिहाजा उसका अंतरराष्ट्रीय राजनय में सिर उठा पाना आसान नहीं होगा।