Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

राम हमारी आस्था के केंद्र थे.. हैं...और रहेंगे....

Advertiesment
हमें फॉलो करें Ram
webdunia

डॉ. प्रवीण तिवारी

मेरे पिता वामपंथी विचारक हैं और उनके लेख और बातें हमेशा ही संघ और बीजेपी के प्रति तल्ख रहती हैं। एक इंटर स्कूल भाषण प्रतियोगिता के लिए जाना था और विषय था... अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए या नहीं? मैं 7वीं कक्षा का विद्यार्थी था और जाहिर तौर पर इस विषय पर मुझे कोई जानकारी नहीं थी। पिताजी अच्छे वक्ता हैं ही और उनके लिखे भाषण रट-रटकर हमारे भी इनाम तय ही माने जाते थे। 
मेरे पुराने स्कूलों में लगातार तीन वर्षों तक ऐसी प्रतियोगिताओं को जीतकर लाई गई रजत वैजयंती आज भी शोभायमान हैं। पिताजी के वामपंथी विचारक होने का जिक्र इसलिए किया क्‍योंकि आप राम मंदिर के विषय पर उनके निजी विचारों का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं। आपके अंदाजे के विपरीत उन्होंने इस भाषण प्रतियोगिता के लिए मुझे इस विषय पर पक्ष में बोलने के लिए कहा। साथ ही इस विषय पर पूरा भाषण लिखा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण क्‍यों होना चाहिए?
 
मुझे प्रतियोगिताओं के बाद भाषण याद रखने की जरूरत नहीं होती थी और जैसे परीक्षा के बाद आप अपने कोर्स और रटी हुई बातों को भूल जाना चाहते हैं, मैं भी पांच-छह दिन की उस मेहनत को भूलने में बहुत सुकून महसूस करता था। लेकिन इस भाषण के तीन वाक्य मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा, क्‍योंकि आज भी जब उस समय को याद करता हूं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। मुझे याद है पिताजी ने पुरजोर अंदाज के साथ इस बात को कहकर सुनाया था। मैंने भी भाषण के दौरान एक छोटा सा अंतराल लेकर पूरी ताकत से ये तीन वाक्य कहे थे..
 
राम हमारी आस्था के केंद्र थे..
राम हमारी आस्था के केंद्र हैं...
और राम हमारी आस्था के केंद्र रहेंगे...
 
इसके बाद उस हॉल में मौजूद लोगों का जोश देखते ही बनता था। मैं भी उस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था। हक्का-बक्का सा लगातार तालियों की गूंज सुनता रहा। बीच में कुछ लोगों ने आकर कंधे पर भी उठा लिया। इस सब में आगे का बचा भाषण न भूल जाऊं.. की जद्दोजहद भी दिमाग में चलती रही। आखिर पैरा की पहली लाइन को कसकर पकड़े रखा और जैसे ही ये उत्साह थमा, अपने भाषण पर आगे बढ़ गया। नतीजा आने के पहले जानता था कि प्रतियोगिता अपनी हो चुकी है।
 
इस घटना को कभी नहीं भूला। समय बदलता गया, खुद भी टूटा-फूटा लिखना सीख लिया, लेकिन पिताजी के आसपास भी पहुंचना संभव नहीं। हम दोनों की विचारधारा में बहुत फर्क है, यही वजह है कि कई मुद्दों पर बहस लगभग झगड़े की नौबत तक जा पहुंचती है। इस विरोधाभास के बावजूद मन में कई बार प्रश्न आया कि आखिर उन्होंने मंदिर निर्माण के पक्ष में भाषण क्‍यों लिखा था? राम की समझ तो छोड़िए, बहुत अरसे तक तो मुझे राम की राजनीति की भी समझ नहीं थी। इस वाक्य से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं 'राम की समझ' को ज्यादा दूर की कौड़ी मानता हूं.. हां, राम नाम में आस्था हमेशा से रही। 
 
पिताजी ने जवाब दिया प्रतियोगिता में अपने विचार तुम पर थोपने से ज्यादा जरूरी ये था कि प्रतियोगिता तुम जीतो। राम सचमुच हर भारतीय की आस्था के केंद्र हैं और रहेंगे। ऐसे में आस्था के केंद्र का मंदिर बनना चाहिए या नहीं बनना चाहिए का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। वहां मौजूद हर व्यक्ति के मन की बात यही थी कि मंदिर बने और इसे जानने के लिए कोई सर्वे कराने की जरूरत नहीं थी। तुम्हें उस वक्त लोगों का जो उत्साह देखने को मिला वो आश्चर्य का विषय नहीं था। राम के प्रति लोगों के मन में आस्था हमेशा अजर-अमर रहेगी। इसके बाद वो इसके राजनीतिक पहलुओं पर आए और फिर बहस एक अलग दिशा में चली गई। वो सब आप उनके लेखों में पढ़ सकते हैं।
 
राम के प्रति आस्था का ज्ञान नेताओं को भी रहा और उन्होंने इस आस्था को भुनाया भी। बकायदा आस्था के प्रतीक स्वरूप मंदिर बनाने का ऐलान भी हो गया लेकिन अब ये प्रश्न जरूर सामने है कि इसे बनाने की मंशा सचमुच है या नहीं? एक बार फिर यूपी में चुनाव हैं और फिर राम नाम की गूंज है। बीजेपी का तो ये हमेशा से मुद्दा रहा ही है, इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने भी रामायण सर्किट की सौगात देकर राम भक्तों को रिझाने की कोशिश की है। राम मंदिर को अपने मैनिफेस्टो का अहम हिस्सा बताने वाली बीजेपी की राम मंदिर बनाने को लेकर ज्यादा जिम्मेदारी है लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर बीजेपी निशाने पर ही रही है। 
 
मंदिर से शुरू हुए और म्यूजियम तक पहुंचे के आरोप भी बीजेपी पर लगने लगे हैं। बीजेपी के कई नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपने तेवर तल्ख कर लिए हैं। विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ने के साथ उत्तर प्रदेश में 'भगवान राम' एक बार फिर राजनीति का केंद्र बनने को तैयार नजर आ रहे हैं। म्यूजियम हो या मंदिर या फिर सिर्फ राम नाम की गूंज हो, इसकी अहमियत का अंदाजा आप भाषण के तीन वाक्यों पर लोगों में भर आए जोश से लगा सकते हैं। 
 
राम राजनीतिक दलों को इसीलिए याद आते हैं, क्‍योंकि वो सचमुच सभी की आस्था के केंद्र हैं। राम नाम की महिमा पर तो ज्ञानियों ने बहुत कुछ कह दिया है लेकिन सियासत में भी राम के नाम की अहमियत लोगों के मन में बसे राम की वजह से ही है। मंदिर बने या सियासत होती रहे एक बात तो साफ है राम हमारी आस्था के केंद्र थे, हैं और रहेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मुश्किल है किसी का अम्मा हो जाना