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किस राजनेता ने की थी जगद्गुरू रामभद्राचार्य की आंखों के इलाज की पेशकश, जानिए क्यों ठुकराया प्रस्ताव

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 26 अगस्त 2025 (14:02 IST)
rambhadracharya podcast :  जगद्गुरु रामभद्राचार्य, जो इन दिनों संत प्रेमानंद महाराज पर दिए गए अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में हैं, उन्होंने एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में अपनी जिंदगी से जुड़ी एक चौंकाने वाली बात बताई है। उन्होंने खुलासा किया कि कैसे उनकी आँखों की रोशनी के इलाज की पेशकश कई बार की गई, लेकिन उन्होंने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। आइये जानते हैं इस विषय में विस्तार से :
 
जब इंदिरा गांधी ने दिया इलाज का प्रस्ताव

पॉडकास्ट में जब रामभद्राचार्य जी से पूछा गया कि क्या कभी उनकी इच्छा संसार को देखने की नहीं होती, तो उन्होंने बताया कि उनकी आँखों के इलाज के लिए कई बार प्रस्ताव आए थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 1974 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके इलाज की पेशकश की थी। इसके अलावा, प्रसिद्ध उद्योग समूह मफतलाल ग्रुप ने भी उनकी आँखों का इलाज करवाने की पेशकश की थी। लेकिन उन्होंने इन सभी प्रस्तावों को साफ इनकार कर दिया।

क्यों ठुकराया प्रस्ताव
रामभद्राचार्य ने अपने इनकार की वजह बहुत बताते हुए कहा कि उनकी इच्छा इस संसार को देखने की बिल्कुल नहीं होती क्योंकि उनका मानना है कि इस दुनिया में कुछ भी देखने लायक नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया सिर्फ छल, कपट और स्वार्थ से भरी हुई है। उनकी दृष्टि भौतिक संसार से हटकर आध्यात्मिक संसार पर केंद्रित हो गई है। उनके लिए, संसार को आँखों से देखना उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना कि ज्ञान आँखों से देखना।

बिना आँखों के ही कंठस्थ कर लिए शास्त्र
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। जब वे सिर्फ दो महीने के थे, तब एक दुर्घटना के कारण उनकी आँखों की रोशनी चली गई। इस घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। लेकिन उन्होंने अपनी नेत्रहीनता को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उनकी सुनने और याद रखने की क्षमता इतनी अद्भुत थी कि उन्होंने अपनी इस कमी को एक असाधारण ताकत में बदल दिया। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपनी अविश्वसनीय याददाश्त के दम पर रामचरितमानस को पूरी तरह से कंठस्थ कर लिया है। वे इसे धाराप्रवाह सुना सकते हैं, जिसमें एक भी शब्द की गलती नहीं होती। सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण, महाभारत, श्रीमद्भागवत, अष्टाध्यायी और कई अन्य धर्म ग्रंथों को भी बिना देखे याद कर रखा है। उनके असाधारण ज्ञान और योगदान के लिए उन्हें कई उपाधियाँ और सम्मान प्राप्त हुए हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया है, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
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