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अनूठे विज्ञान की एक अद्भुत कहानी

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शरद सिंगी

पौराणिक कथाओं में हमने सुना था कि कुछ ऋषियों के पास ऐसी सिद्धि होती थी जिसका उपयोग कर वे एक ही समय में दो स्थानों पर एकसाथ प्रकट हो सकते थे या दो स्थलों पर एकसाथ उपदेश दे सकते थे। ईसाई धर्म में ऋषि पद की मान्यता तब ही मिलती थी, जब कोई धर्मगुरु दो जगह एकसाथ दिखाई दे।
 

ये कथाएं कितनी काल्पनिक थीं या कितनी सच्ची? इसकी जांच के लिए अब न तो हमारे पास कोई साक्ष्य उपलब्ध है और न ही कोई गवाह। अत: अपनी अपनी सोच और भावनाओं के अनुसार इन कथाओं को व्यक्तिगत रूप से मान्य अथवा अमान्य किया जाता रहा है।
 
किंतु बात यहीं नहीं रुकती। हम अपने पाठकों को बता दें कि जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ये कथाएं पुन: जीवंत हो रही हैं। विज्ञान अब इन संभावनाओं को तलाशने में जुट गया है कि एक ही क्षण में एक व्यक्ति का दो स्थानों पर दिखना क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव है?
 
 
जैसा कि हम भी जानते हैं कि ब्रह्मांड के रहस्यों को जानना वैसा ही है, जैसे समुद्र में गोता लगाकर मछलियों को गिनने की कोशिश करना। इसके बाद भी वैज्ञानिक और खगोलशास्त्री हिम्मत नहीं हारते हैं। उन्होंने विशाल आकाशीय गतिमान पिंडों को नियमों में बांधने की कोशिश की और पाया कि ये ग्रह, नक्षत्र एक निर्धारित गति, दिशा और मार्ग पर एक निश्चित नियम में बंधे चल रहे हैं अत: उनकी स्थिति का आकलन विज्ञान और पंचांग दोनों कर लेते हैं।
 
 
ये तो हुई विशाल पिंडों की बात किंतु अब यदि हम सूक्ष्म कणों की बात करें तो इनकी चाल और गति अभी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बनी हुई है। यह एक तथ्य है कि पूरा ब्रह्मांड बहुत ही सूक्ष्म कणों से निर्मित है जिसमें हम और आप भी शामिल हैं। इन सूक्ष्म कणों में अणु, परमाणु और परमाणु के केंद्र में बसने वाले अति सूक्ष्म कण शामिल हैं। इन सूक्ष्म कणों की गति और दिशा को लेकर वैज्ञानिक अपने बाल खींच रहे हैं, क्योंकि ये विज्ञान के नियमों का अनुसरण नहीं करते। इनके नियम और व्यवहार भिन्न हैं। कभी तो ये एक कण की तरह व्यवहार करते हैं, तो कभी एक तरंग की तरह। इनके अध्ययन को 'क्वांटम फिजिक्स' नाम दिया गया है, जो 100 वर्ष पुराना होते हुए भी नवजात माना जाता है।
 
 
हमारे घर के बिजली के तारों में जो करंट दौड़ता है वह इलेक्ट्रॉन्स का बहाव है, जो एक तरंग की तरह होता है। उसी तरह प्रकाश में भी सूक्ष्म कणों का बहाव होता है जिसे फोटॉन्स कहा जाता है। ये इलेक्ट्रॉन्स या फोटॉन्स बहुत ही विचित्र कण हैं। सामान्य तौर पर ये एक तरंग या पानी में उठी लहर की तरह चलते हैं किंतु जैसे ही इन्हें मालूम पड़ जाता है कि इन्हें कोई देख रहा है तो वे तुरंत कण बन जाते हैं और अनुशासित बच्चों की तरह एक सीधी रेखा में चलने लगते हैं।
 
 
वैज्ञानिक वर्षों से इस रहस्य को लेकर व्याकुल हैं और परेशान हैं कि इनके तरंग में चलने वाले गुण का निरीक्षण किस प्रकार किया जाए? वे सफल नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि कोई भी मापक यंत्र चालू करते ही वे कणों में तब्दील हो जाते हैं और अपना लहर में चलने का गुण त्याग देते हैं। जिस तरह ग्रहों के बारे में ठीक तौर से बताया जा सकता है कि वे किस समय कहां पर होंगे, फोटॉन्स के बारे में केवल अंदाज लगाया जा सकता है वह भी प्रतिशत में। जैसे 25 प्रतिशत संभावना है कि यह कण इस समय इस स्थिति में होगा इत्यादि। रहस्य यहीं नहीं रुकता।
 
 
महानतम वैज्ञानिक आइंस्टीन को क्वांटम भौतिकी का जनक माना जाता है, क्योंकि फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव पर उनके शोध पत्र के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था। यही शोध क्वांटम फिजिक्स का आधार बना। उन्होंने अपने गणितीय आकलन से जो परिणाम निकाले, उनको देखकर वे स्वयं अचंभित हो गए और अपनी ही खोज के परिणामों का मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा- 'इस सृष्टि की रचना करने वाला सृष्टि के साथ पांसे नहीं खेल सकता', जो अब एक प्रसिद्ध उक्ति बन चुकी है किंतु आज उनका गणितीय आकलन प्रयोगशाला में सिद्ध होकर वास्तविकता बन चुका है। 
 
क्वांटम भौतिकी की सबसे रहस्यमयी धारणा है आपस में उलझे हुए कणों की। इसको समझने के लिए फुटबॉल का उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कि सामने दो गोल पोस्ट हैं। जिस गोलपोस्ट के सामने से सीधी रेखा में गेंद दागी जाएगी, गेंद उसी गोलपोस्ट में अंदर जाएगी। अब गेंद की जगह फोटॉन लें। यहां संभावनाएं बदल जाती हैं। इसको दागने के बाद फोटॉन किसी भी गोलपोस्ट के अंदर जा सकता है। और तो और, दोनों गोलपोस्टों के अंदर एकसाथ जाता हुआ भी दिखाई दे सकता है। कभी ये दो बन गए और दूर भी चले गए, परंतु आपस में किसी ऐसे विचित्र तरीके से जुड़े रहेंगे, जैसे जुड़वां हो। इस विचित्र व्यवहार को आइंस्टीन ने नाम दिया 'भूतों वाला डरावना व्यवहार', जो वैज्ञानिकों की समझ के परे है। एक के साथ छेड़छाड़ करो तो हजारों मील दूरी पर बैठे दूसरे कण को तत्क्षण मालूम पड़ता है। मजे की बात यह है कि उनके बीच संचार का कोई साधन नहीं है। 
 
इस तरह हमने देखा कि दो मूल स्वरूप एकसाथ या अलग-अलग स्थानों पर रह सकते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहां कोई डुप्लीकेट या प्रतिरूप नहीं है। यही आचरण एक विलक्षण कल्पना को जन्म देता है कि चूंकि मनुष्य का शरीर भी तो सूक्ष्म कणों से बना है अत: उसके स्वरूप को भी दो मूल भागों में विभक्त किया जा सकता है। यानी जिस तरह एक शरीर के साथ दो हाथ जुड़े होते हैं उसी तरह एक काल्पनिक सुपर शरीर के दो पूरे-पूरे अलग शरीर हों और नियंत्रक एक ही हो। 
 
यदि ऐसा होता है तो एक ही व्यक्ति दो अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देगा। दूरी उनके बीच की हजारों मील की ही क्यों न हो, नियंत्रक एक सुपर काल्पनिक शरीर होगा। पुलाव अभी खयाली है किंतु चावल तो मंदी आंच पर रख दिए गए हैं, देखते हैं कब पकते हैं?

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