Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पूर्वी दुनिया के राजनीतिक रंगमंच पर दो महत्वपूर्ण घटनाएं

हमें फॉलो करें पूर्वी दुनिया के राजनीतिक रंगमंच पर दो महत्वपूर्ण घटनाएं
webdunia

शरद सिंगी

, रविवार, 29 अक्टूबर 2017 (12:59 IST)
दीपावली के तुरंत बाद विश्व मंच पर दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं जिसमें दो राष्ट्राध्यक्षों ने अपने राजनीतिक कद को बुलंद किया। ये दोनों ही राजनेता आने वाले वर्षों में भारत सहित विश्व की कूटनीतिक व्यवस्था और उसकी दिशा को प्रभावित करेंगे।
 
पहली घटना थी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का राष्ट्रपति के रूप में पुन: निर्विरोध निर्वाचन। इस निर्वाचन से उन्हें दूसरी अवधि में राष्ट्रपति बने रहने का अवसर तो मिला किंतु जिस भारी समर्थन के साथ उनका निर्वाचन हुआ उसके अनुसार अब उनके हाथों में चीन की सत्ता का पूर्ण केंद्रीकरण हो चुका है।
 
विशेषज्ञों की मानें तो शी जिनपिंग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओ-त्से-तुंग से भी शायद अधिक शक्तिशाली हो चुके हैं और स्थिति यह है कि उनका विरोध कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध माना जाएगा या दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्र का विरोध माना जाएगा।
 
यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि पार्टी के संविधान में उनके विचारों और उनके नाम को मार्गदर्शक के रूप में शामिल कर लिया गया है। यह सम्मान अभी तक केवल माओ और देंग जियाओपिंग को ही प्राप्त था। इसका अर्थ यह है कि अब वे आजीवन एक शक्तिशाली नेता के रूप में चीन की साम्यवादी पार्टी को प्रभावित करते रहेंगे।
 
शी जिनपिंग को चुनौती देने वालों को भ्रष्टाचार के आरोपों में या तो जेलों में डाल दिया गया है या उन पर केस चल रहे हैं। पार्टी के संविधान के अनुसार कोई व्यक्ति दो अवधि तक ही राष्ट्रपति बना रह सकता है। किंतु संकेत हैं कि ये आगे भी बने रह सकते हैं या आगे बनने वाले राष्ट्रपति के अधिकार इनसे कम रहेंगे। ध्यान रहे चीन में एक पार्टी तंत्र है और वहां साम्यवादी पार्टी से बड़ा कुछ नहीं है।
 
दूसरी घटना रही जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का पुन: निर्वाचन। जापान में चुनाव इस वर्ष नियत नहीं थे किंतु शिंजो आबे ने एक दांव खेला और नियत समय से लगभग 1 वर्ष पूर्व ही चुनाव करवा लिए। उनका यह राजनीतिक दांव सफल रहा और आबे की पार्टी दो-तिहाई बहुमत से विजयी हुई।
 
आश्चर्य की बात यह रही कि कुछ महीनों पूर्व तक उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरने की खबरें आ रही थीं किंतु उत्तरी कोरिया के तानाशाह ने उन्हें एक नया अवसर दे दिया। शिंजो आबे एक राष्ट्रवादी नेता हैं और जैसा हम जानते हैं कि युद्ध की स्थिति में राष्ट्रवाद अपने तूफान पर होता है। उत्तरी कोरिया द्वारा जापान पर मिसाइलें दागने से उपजे राष्ट्रवाद का लाभ आबे को मिला।
 
पाठकों को स्मरण होगा कि जापान के संविधान की एक विशेषता है कि इसमें सेनाओं को किसी अन्य देश पर आक्रमण करने की अनुमति नहीं है और जापान की जनता इसे गौरव का विषय मानती है। उत्कृष्ट और आधुनिक सेना होने के बावजूद उसे अन्य देश द्वारा आक्रमण की स्थिति में मात्र अपने देश की रक्षा करने की अनुमति है। किंतु चीन और उत्तरी कोरिया के खतरे को देखते हुए शिंजो आबे संविधान में बदलाव चाहते हैं।
 
इन चुनावों में वे दो-तिहाई बहुमत भी पा चुके हैं, जो संविधान संशोधन के लिए जरूरी है। उत्तरी कोरिया से युद्ध की स्थिति में आबे अमेरिका के साथ अपनी सेनाएं भी भेजना चाहेंगे, जो संविधान के संशोधन के बिना संभव नहीं था। इस विजय से उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के ऊपर खतरे की घंटी बज चुकी है।
 
अब देखना यह है कि इन दो विश्व नेताओं के बढ़े हुए कद भारत पर क्या प्रभाव डालेंगे? अंदरुनी चुनौतियों को समाप्त कर सारे अधिकार अपने हाथों में केंद्रित करने के पश्चात शी जिनपिंग विश्व में चीन की भूमिका और प्रतिष्ठा को लेकर अधिक आक्रामक और महत्वाकांक्षी हो सकते हैं तथा अमेरिका के समक्ष चुनौती पेश कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में अमेरिका, भारत के साथ सहयोग के दायरे में विस्तार करना चाहेगा। अमेरिका के पास चीन को रोकने के लिए भारत को सामरिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं है। उसी तरह शिंजो आबे, भारत के बहुत घनिष्ठ मित्रों में से हैं और उनका बढ़ता कद निश्चय ही भारत के हित में रहेगा।
 
चीन की महत्वाकांक्षाओं की वजह से जापान के साथ उसके रिश्ते कभी अच्छे नहीं हो सकते। अत: चीन से सटी अन्य देशों की सीमाओं पर चीन की आक्रामक नीतियों के विरुद्ध अमेरिका, भारत और जापान एक शक्तिशाली त्रिकोणीय गठबंधन बनाते हैं। डोकलाम विवाद पर जापान का भारत के समर्थन में बेझिझक खड़ा होना इसका प्रमाण है। आने वाले समय में इस गठबंधन में निश्चय ही हम और अधिक मजबूती देखेंगे।
 
इस लेखक का यह भी कहना शायद अतिशयोक्ति न हो कि गत वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक चहल-पहल और दूरदृष्टिपूर्ण विश्व-शक्तियों से संबंधों में सुधार की कवायदें अब अपने अच्छे परिणाम दिखाएंगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पाकिस्तान के लिए जल्द ही 'बोझ बन जाएगा चीनी कोरिडोर'