मैसूर के सुल्तान टीपू को लेकर इस वक्त विवाद चल रहा है। केंद्रीय मंत्री अनंतकुमार हेगड़े के बयान ने टीपू सुल्तान के इतिहास को विवादों की फेहरिस्त में खड़ा कर दिया है। हेगड़े टीपू को बलात्कारी, क्रूर और हिंदुओं का दुश्मन बताया। उन्होंने उसे मंदिरों को तोड़ने वाले आक्रांता कहा। जबकि टीपी के समर्थक कहते हैं कि यह सब गलत है। दरअसल, वे देशभक्त थे और उन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़कर इस देश की रक्षा की थी। दक्षिण भारत के इस मुस्लिम शासक ने फ्रांसिसियों की मदद से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। टीपू सुल्तान दअरसल एक शिया मुसलमान था।
हालांकि एक लेखक मिन्हाज मर्चेंट के अनुसार टीपू सुल्तान ने भारत की मदद करने के लिए ब्रिटेन से लड़ाई नहीं लड़ी थी। दक्षिण भारत में वो अपनी सल्तनत बचाने के लिए लड़ रहा था। ये एक घुसपैठिए की दूसरे घुसपैठिए से लड़ाई थी। इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि 18वीं सदी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान न तो स्वतंत्रता सेनानी थे और न ही तानाशाह।
टीपू ने फ्रांसिसियों की मदद ली थी। फ्रांसिसी भी भारत में अंग्रेजों की तरह ही थे जिन्होंने पुडुचेरी और अन्य क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा था। दूसरी ओर मराठों एवं निजाम ने अंग्रेजों का साथ देना अपनी मजबूरी समझी थी। देखा जाए तो दोनों ही पक्ष एक विदेशी शासक का साथ दे रहे थे।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक राकेश सिन्हा कहा, ''एक पत्र में टीपू सुल्तान स्वयं कहते हैं कि मैंने 4 लाख हिंदुओं का धर्मांतरण कर लिया है। दूसरे पत्र में कहते हैं कि अल्लाह के आशीर्वाद से कालीकट के तमाम हिंदुओं का धर्मांतरण कर लिया है। टीपू सुल्तान के सैकड़ों पत्र हैं, अपने पत्रों में ही दावा करता है कि वो किस तरह का व्यवहार हिंदू और ईसाई महिलाओं से करता था। कैसे उसकी सेनाएं जबर्दस्ती करती थी। जो शासक मंदिरों और चर्च को तोड़ने के लिए गर्व महसूस करता है क्या इतिहास में उसकी व्याख्या महान शासक के तौर पर की जानी चाहिए।'' टीपू के कुर्ग अभियान के वक्त तकरीबन एक हजार हिंदुओं को जबरन इस्लाम में धर्मान्तरित करने का किस्सा विलियम लोगान की किताब 'वॉयजेज़ ऑफ़ द ईस्ट' में मिलता है।
इतिहासकार इरफान हबीब के अनुसार, ''टीपू सुल्तान ने मालाबार में हुई बगावत का दमन किया था और इस बगावत को दबाने के लिए जुल्म भी हुए थे। लेकिन हबीब ने टीपू सुल्तान के मंदिर गिराने और हिंदुओं के धर्मांतरण वाली बात से साफ इंकार किया।...मालाबार में हिन्दू रहते थे और उन पर जुल्म भी हुए लेकिन टीपू का वजीर खुद एक हिन्दू था। ये जुल्म बगावत को दबाने के लिए हुए थे जैसा कि उन दिनों हुआ करता था।''... इतिहास के पन्नों में मैसूर के सुल्तान टीपू की जो कहानी दर्ज है क्या वह तथ्यों के लिहाज से सटीक नहीं है?
टीपू सुल्तान को 'शेर-ए-मैसूर' इसलिए कहा जाता हैं। 1782 से लेकर 1799 तक मैसूर के सुल्तान रहे टीपू का 20 नवम्बर 1750 ईस्वीं को मृत्यु 4 मई 1799 ईस्वीं हुई थी। टीपू सुल्तान का पूरा नाम फ़तेह अली टीपू था। उसके पिता का नाम हैदर अली उर्फ हैदर नाइक था। एक फ्रांसीसियों की मदद से हैदर अली तोप, बन्दूक़ों और संगीनों से लैस नियंत्रित सिपाहियों की टुकड़ी का गठन किया। हैदर अली ने 1749 में मैसूर में स्वतंत्र कमान प्राप्त की। बाद में उसने प्रधानमंत्री नंजराज की जगह ले ली। फिर लगभग 1761 में वह मैसूर का शासक बन गया। राजा कृष्णराज वाडियार द्वितीय और मैसूर सरकार पर हावी कर उसने बहुत जल्दी ही बदनौर, कनारा तथा दक्षिण भारत की छोटी-छोटी रियासतों को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। टीपू ने गद्दी पर बैठते ही हिन्दु बहुल राज्य को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया था।
हालांकि इन सभी विवादों के बीच टीपू सुल्तान के कुछ कार्यों की प्रशांसा भी की जाती है। आओजो जानते हैं टीपू के ऐसा ही 10 कार्य जिन्हें जानकर आप चौंक जाएंगे।
1.रॉकेटमैन : कहते हैं कि टीपू सुल्तान दुनिया का पहला मिसाइलमैन था। लंदन के मशहूर साइंस म्यूज़ियम में टीपू के कुछ रॉकेट रखे हैं। ये उन रॉकेट में से थे जिन्हें अंग्रेज़ अपने साथ 18वीं सदी के अंत में ले गए थे। उनके इस रॉकेट की वजह से ही भविष्य में रॉकेट बनाने की नींव रखी थी। भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब 'विंग्स ऑफ़ फ़ायर' में लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी।
असल में टीपू और उनके पिता हैदर अली ने दक्षिण भारत में दबदबे की लड़ाई में अक्सर रॉकेट का इस्तेमाल किया। उन्होंने जिन रॉकेट का इस्तेमाल किया वो बेहद छोटे लेकिन मारक थे. इनमें प्रोपेलेंट को रखने के लिए लोहे की नलियों का इस्तेमाल होता था। ये ट्यूब तलवारों से जुड़ी होती थी। ये रॉकेट करीब दो किलोमीटर तक मार कर सकते थे। माना जाता है कि पोल्लिलोर की लड़ाई (आज के तमिलनाडु का कांचीपुरम) में इन रॉकेट ने ही खेल बदलकर रख दिया था।
2.राम नाम की अंगुठी : टीपू 'राम' नाम की अंगूठी पहनते थे, उनकी मृत्यु के बाद ये अंगूठी अंग्रेजों ने उतार ली थी और फिर इसे अपने साथ ले गए। श्रीरंगपट्टनम में हुई जंग में टीपू की मौत के बाद उनकी राम नाम की खूबसूरत अंगुठी ब्रितानी फोजें इंग्लैंड ले गई थी। माना जाता है कि अंग्रेजों ने टीपू की मौत के बाद उनकी अंगुली काटकर ये अंगूठी निकाल ली थी।
3.टीपू की तलवार : टीपू सुल्तान की तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ था। बताया जाता हैं कि टीपू की मौत के बाद ये तलवार उसके शव के पास पड़ी मिली थी। टीपू सुल्तान की तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम है। आज के समय में टीपू की तलवार की कीमत लगभग 21 करोड़ रुपए हैं।
4.टीपू के वंशज : कहते हैं कि टीपी सुल्तान के 12 बच्चों थे जिसमें से सिर्फ दो बच्चों के बारे में पता चल पाया है, जबकि 10 बच्चों की जानकारी आज भी किसी के पास नहीं हैं। टीपू के बेटे गुलाम मोहम्मद शाह के वंशज कोलकाता में रहते हैं। अली प्रिंस मूनीरुद्दीन के वंशज हैं जो कि टीपू सुल्तान के बेटों में से एक थे। टीपू सुल्तान के अन्य वंशज शाहिद आलम हैं।
5. मंदिरों में दान : टीपू द्वारा कई हिंदू मंदिरों, संस्थाओं और तीर्थों के संरक्षक के लिए दान देना का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि वह हिंदू मंदिरों को भेटें भेजता था और हिंदू मंदिरों में विभिन्न संप्रदायों के बीच चल रहे विवादों में मध्यस्थ की भूमिका भी निभाता है। उसके राज्य में राज्य द्वारा संरक्षित मंदिरों की देखभाल के लिए एक पद सृजित है, जिसे श्रीमतु देवास्थानादसिमे कहा जाता था। इसका प्रमुख कुप्पया नामक एक ब्राह्मण था। इन मंदिरों में सेरिन्गापट्टनम का रंगनाथ मंदिर, मेलुकोट का नरसिम्हा मंदिर, मेलुकोट का ही नारायणस्वामी मंदिर, कलाले का लक्ष्मीकांत मंदिर और नंजनगुड का श्रीकंतेश्वारा मंदिर उल्लेखनीय हैं।
6.शंकराचार्य को खत : टीपू द्वारा प्रख्यात श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य को खत भी लिखे जाते थे जिसमें वह उन्हें विश्व गुरु कहकर संबोधित करता था। यहां सुलतान द्वारा मठ के स्वामी को लिखे एक पत्र से उसके हिंदू धर्म और उसके धार्मिक संस्थानों के प्रति रुख का पता चलता है. 1793 के एक पत्र में टीपू लिखता है, आप जगद्गुरु हैं, विश्व के गुरु, आपने सदैव समस्त विश्व की भलाई के लिए और इसलिए कि लोग सुख से जी सकें कष्ट उठाए हैं। कृपया ईश्वर से हमारी समृद्धि की कामना करें। जिस किसी भी देश में आप जैसी पवित्र आत्माएं निवास करेंगी, अच्छी बारिश और फसल से देश की समृद्धि होगी।
7.टीपू की तोप : टीपू के राज्य में योरतीय तोपची होते थे। उनके यहां की तोप बेमिसाल होती थी। साल 2010 में जब टीपू सुल्तान के शस्त्रागार की नीलाम हुई तो उसमें तलवार और बंदूकों के साथ 3 लाख पाउंड से अधिक में निलाम हुई एक दुर्लभ तोप भी नीलाम की गई थी। इस तोप की लंबाई ढाई मीटर से ज्यादा थी।
8.ब्रिटिश दुश्मनों की लिस्ट में टीपू : 18वीं सदी के मैसूर ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तारवाद को सबसे कठिन चुनौती दी थी। पहले हैदर अली और उसके बाद टीपू सुल्तान ने मद्रास की ब्रिटिश फैक्ट्री को बार-बार हराया था। इस हार के ही चलते ब्रिटिशों ने टीपू के अपने सबसे बड़े 10 दुश्मनों की लिस्ट में शामिल कर रखा था।
9. टीपू की हार : 18 वर्ष की उम्र में ही टीपू एक कुशल यौद्ध बन गया था। उसने अपने शासनकाल में ईस्ट इंडिया की बढ़ती ताकत को रोका था। मैसूरी की दूसरी लड़ाई में उन्होंने अंग्रेजों को शिकस्त देने में अपने पिता हैदर अलगी की मदद की थी। जब अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर टीपू पर चौथी बार हमला किया तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा और वे मारे गए।
10.टीपू के कार्य : टीपू को मैसूर का शेर कहा जाता है। उन्होंने सैंकड़ों निर्माण कार्य किए थे। जिसमें सड़कें बनवाना, सिंचाई के लिए व्यवस्था करना जिसमें कृष्णराज सागर बांध को मजबूत बनाना, लाल बाग परियोजना को सफलतापूर्वक अंजाम देना और आधुनिक कैलेण्डर के अलावा नई भूमि राजस्व व्यवस्था को लागू करना इत्यादि प्रमुख कार्य थे।