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युद्ध या आतंकवाद, सबसे ज्यादा घातक कौन?

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अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 20 मई 2025 (14:58 IST)
War And Terrorism: पिछले 1500 वर्षों में मजहब की लड़ाई में करीब 8 मिलियन यहूदी, 10 मिलियन ईसाई, 15 मिलियन मुस्लिम और 80 मिलियन से भी अधिक हिंदू, बौद्ध और पारसी मारे गए हैं, जिसमें हिंदुओं की संख्या ज्यादा है। ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और हिंदुस्तान सहित कई देशों में हिंदुओं का सबसे ज्यादा नरसंहार हुआ क्योंकि हिंदू सहिष्णु, दया और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सदियों से यह समझता रहा कि शायद लोग उसकी बातों को समझ जाएंगे। हिंदू पिछले 1500 वर्षों से युद्ध से बचता रहा, युद्ध जीतने के बाद बंधकों को छोड़ता रहा या फसाद वाली जगहों से पलायन करके सुरक्षित स्थान ढूंढता रहा और सबसे बड़ी बात की वह युद्ध जीतने के बाद टेबल पर हारता रहा। छल-कपट का शिकार होता रहा।ALSO READ: पाकिस्तान से युद्ध क्यों है जरूरी, जानिए 5 चौंकाने वाले कारण
 
युद्धों में कभी नहीं हारे हम डरते हैं छल-छंदों से।
हर बार पराजय पायी है अपने घर के जयचंदों से।।
 
सबसे ज्यादा हिंदू क्यों मारे गए?
एक दौर था जबकि मध्य एशिया में यहूदियों की संख्या ईसाई और मुस्लिमों से ज्यादा थी। फिर एक ऐसा दौर आया जबकि इस क्षेत्र में ईसाइयों की संख्या अधिक हो चली थी। इसके बाद इस्लाम के उदय के बाद अब यहां पर मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है। यह सोचने वाली बात है कि इसके बावजूद दुनिया में युद्ध और आतंकवाद के चलते यहूदी कम मरे, ईसाई और मुस्लिम ज्यादा मारे गए और सबसे ज्यादा हिंदू मारे गए। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
 
आखिर ऐसा क्यों हुआ?
जितने भी आतंकवादी संगठन है वे खुद को आतंकवादी नहीं मानते हैं। वे जिहादी या मुजाहिदीन है। विद्वानों अनुसार धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, इन तीनों तरह के शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं। अब इसे अंग्रेजी में होली वार कहा जाता है अर्थात पवित्र युद्ध। ईसाई इसे अब आधुनिक तरीके से लड़ते हैं और मुस्लिम वही अपने जिहादी तरीके से।
 
धर्मयुद्ध: हिंदू धर्म में धर्म युद्ध किसी धर्म या मजहब के खिलाफ लड़े जाने वाला शब्द नहीं है। यह अधर्म के खिलाफ लड़ाई है। अधर्म अर्थात सत्य, अहिंसा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के विरुद्ध जो खड़ा है उसके खिलाफ युद्ध ही विकल्प है। महाभारत में जिस धर्मयुद्ध की बात कही गई है वह किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं बल्कि अधर्म के खिलाफ युद्ध की बात कही गई है।
 
क्रूसेड: क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए युद्ध। यह तब शुरू हुआ जब इस्लामिक जिहाद ने चुनौती खड़ी की। ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच 7 बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। युद्ध अभी भी जारी है लेकिन उसका स्वरूप और नाम बदल गया है।
 
जिहाद: जिहाद या जेहाद अरबी में इसके दो अर्थ हैं- सेवा और संघर्ष। जिहाद तो मोहम्मद सल्ल. के समय से ही जारी है, किंतु 11वीं सदी की शुरुआत में क्रूसेडर्स ने जब यरुशलम के लिए मोर्चाबंदी की तो मुसलमानों को जिहाद के लिए इकट्ठा किया गया। यहीं से जिहाद के पवित्र मायने बदल गए। इसमें जिहाद के माध्यम से दुनिया की रह भूमि को दारुल इस्लाम बनाना शामिल हो गया। 632 ईसवी में हजरत मुहम्मद सल्ल. की वफात के बाद तक लगभग पूरा अरब इस्लाम के परचम के तले आ चुका था। इसके बाद इस्लाम ने यहूदियों को अरब से बाहर खदेड़ दिया। वे इजरायल और मिस्र में सिमटकर रह गए।
 
7वीं सदी की शुरुआत में इसने भारत, रशिया और अफ्रीका का रुख किया और मात्र 15 से 25 वर्ष की जिहादी जंग के बाद आधे भारत, अफ्रीका और रूस पर कब्जा कर लिया गया। इस जंग में सबसे ज्यादा नुकसान बौद्ध, पारसी और हिन्दुओं को झेलना पड़ा जो यह नहीं जानते थे कि सामने वाला युद्ध के किसी भी नियम को नहीं मानकर लूटपाट और आम जनता की हत्या से परहेज नहीं करता है। ईरान में जहां खलीफाओं ने पारसियों को कत्ल किया गया वहीं उन्होंने इस्लाम के नाम पर अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि हिन्दूकुश से लेकर सिंधु के मुहाने तक बौद्ध और हिन्दुओं के खून से धरती लाल रंग से रंग दी गई। 
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युद्ध या आतंकवाद, सबसे ज्यादा घातक कौन?
एक महायुद्ध या आमने-सामने का युद्ध किए बगैर जिहादियों, मुजाहिदीनों या आतंकवादियों ने दुनिया में करीब 57 मुस्लिम देशों को जन्म दिया। इस्लामिक सेना युद्ध और आतंकवाद दोनों का उपयोग करके जो लक्ष्य हासिल करना चाहती है वह करने में कामयाब होती जा रही है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान के जिहादियों का मकसद भारत से जीतना या भारत से हारना नहीं है। उनका मकसद कश्मीर से हिंदुओं को भगाना था जो पूरा हो गया। अब जम्मू से भगाए जाने की योजना पर काम चल रहा है। इसी तरह देश के उन हिस्सों के आसपास से गैर मुस्लिमों को भगाना है जहां पर मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। 
 
इस्लामिक स्टेट इन सीरिया एंड इराक (ISIS), अलकायदा, तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, बोको हराम, अल-नुसरा फ्रंट सीरिया, जेमाह इस्लामिया, अल कायदा इन अरेबियन पेनिनसुला, अबू सय्याफ फिलीपींस, हमास, ब्रदरहुड, अंसार अल इस्लाम, चेचन्या विद्रोही गुट रशिया, उइगर इस्लामिक मूवमेंट चीन, हिज्बुल्ला, हमास, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, अल शबाब अफ्रीका, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, दुख्तरान-ए-मिल्लत, इंडियन मुजाहिदीन, मुजाओ अंसार, अलशरीया, साइंड इन ब्लड बटालियन आदि सभी इसी काम में लगे हैं।
 
एक और जहां मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, यहूदी, पारसी, हाजरा, अहमदिया, कुर्द, यजीदी, काकई, सबाईन-मंडाईन, बहाई आदि अल्पसंख्यकों पर हमले करके उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा है वहीं दूसरी और गैर-मुस्लिम मुल्कों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दहशत और आतंक का माहौल बनाकर वहां से भी गैर-मुस्लिमों, ईसाइयों, बौद्धों, शियाओं, अहमदियों आदि को खदेड़े जाने के लिए ही आतंकवादी हमले लगातार पिछले कई वर्षों से जारी है।
 
हिंसक और अहिंसक में कौन जीतेगा?
यदि आप सभी तरह के नियमों का पालन करते हैं, सत्य के मार्ग पर चलते हैं, ईश्‍वर भक्त है, अहिंसा और सहिष्णुता जैसे विचार आपके मन में है फिर भी कुछ आतंकवादी आपको मार देते हैं, तो सोचने वाली बात है। जैसा कि हमने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में देखा और इससे पहले हमने 7 अक्टूबर, 2023 को इजरायल में देखा।
 
इजराइल में हमास के आतंकवादियों ने निर्दोष 1,200 पर्यटकों की बेरहमी से हत्या कर दी। इसके बदले के रूप में इजरायल ने जो सैन्य ऑपरेशन चलाया उसमें गाजा के दो तिहाई से अधिक आतंकी संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया और जिसमें 30,000 से अधिक लोगों की जान चली गई। इसके अलावा 7 लाख से अधिक लोगों का पलायन हो गया। इजराइल का ऑपरेशन अभी भी जारी है।
 
इसे इस तरह समझें कि कोई एक नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति बाइक चला रहा है पूरे ट्रैफिक नियमों के साथ और फिर भी कार वाला उसको टक्कर मारकर चला जाता है तो इसे आप क्या कहेंगे? क्या यह समय ऐसा है जबकि हम एक हिंसक जानवर के सामने अहिंसा की बात करके बच जाएंगे? इस कलयुग में अब जीओ और जीने दो का सिद्धांत व्यर्थ सिद्ध हुआ है। इसलिए महाभारत में श्रीकृष्ण ने जब देखा कि कौरवों ने अभिमन्यु को बेरहमी के साथ मारकर युद्ध के सारे नियम तोड़ दिए गए हैं तो फिर श्रीकृष्ण ने भी युद्ध के नियमों का पालन करना छोड़ दिया।
 
"जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर जो उससे डरते हैं।
वह उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं।।
 
 

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