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पहलगाम के आगे

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अवधेश कुमार

, शुक्रवार, 2 मई 2025 (14:20 IST)
पहलगाम हमले के बाद संपूर्ण देश का सामूहिक मानस वैसी कार्रवाई, प्रतिरोध और प्रतिशोध का है जिससे भारत को दोबारा ऐसी भयानक घटना का सामना न करना पड़े। यह स्वाभाविक है। एक समय जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं आम थी और तब भी लोगों के अंदर क्रोध पैदा होता था लेकिन आम मानस यह था कि इसे रोकना अभी संभव नहीं। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद माहौल बदला, आतंकवादी घटनाओं में व्यापक कमी आई है। 
 
जम्मू के साथ-साथ कश्मीर घाटी भी धीरे-धीरे आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक शैक्षणिक गतिविधियों में देश के सामान्य राज्य की तरह काफी हद तक पटरी पर लौट गया है। ऐसे माहौल में एक साथ हिंदू होने के कारण 26 हिंदुओं तथा एक गैर मुस्लिम का उनका विरोध करने के कारण हत्या के बाद उबाल स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने भी आंतरिक और सीमा पार आतंकवाद के समूल नाश का सक्रिय संकल्प दिखाया है। 
 
मोदी सरकार ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक तथा 2018 में पुलवामा हमले के बाद हवाई बमबारी जैसी भारत की दृष्टि से अकल्पनीय माने जाने वाली कार्रवाई करके देश का विश्वास प्राप्त किया है। प्रधानमंत्री ने स्वयं 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी की आमसभा में केवल आतंकवादी नहीं उनको प्रायोजित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध भी ऐसी कार्रवाई की घोषणा की जिसकी कल्पना नहीं की गई होगी। बिहार की भूमि पर उन्होंने कुछ मिनट अंग्रेजी में भाषण दिया जो विश्व के लिए संदेश था कि आतंकवाद के विरुद्ध भारत कमर कस चुका है और कार्रवाई करेगा। इस भाषण से दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया गया और इसका असर भी है। 
 
कोई देश सार्वजनिक संकल्प दिखाते हुए समानांतर कदम उठाता है और उसकी पृष्ठभूमि आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहिष्चुता की हो चुकी है तो विश्व समुदाय को भी सोच और व्यवहार को उसके अनुरूप बदलना पड़ता है। हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ एक देश नहीं खड़ा है। वे मुस्लिम देश, जो सामान्यतः जम्मू कश्मीर पर इस्लामिक सम्मेलन संगठन या ओआईसी में उसका साथ देते थे, हिम्मत नहीं दिखा रहे। 
 
अमेरिकी विदेश विभाग की ब्रीफिंग में एक पाकिस्तानी पत्रकार के प्रश्न की विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हिकारत के भाव से उपेक्षा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इस पर भारत के साथ हैं। सच है कि काश पटेल के नेतृत्व में अमेरिका की एफबीआई तथा तुलसी गवार्ड के निर्देशन में नेशनल इंटेलिजेंस आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत के साथ खड़ा है।

यूरोपीय देशो ने स्पष्ट रूप से भारत का समर्थन किया है। पाकिस्तान ने यद्यपि इस्लामाबाद में 26 देश के राजनयिकों को बुलाकर अपनी दृष्टि से ब्रीफिंग की किंतु कोई उससे प्रभावित है ऐसा लगता नहीं। प्रश्न है कि भारत क्या कर सकता है, क्या करेगा और कैसी संभावनाएं हैं? 
 
घटना के दूसरे दिन गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू कश्मीर से लौटने के बाद मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति ने तत्काल प्रभाव से पाकिस्तानियों को दिए हर तरह का वीजा रद्द करने, उन्हें देश छोड़ने, पाकिस्तानी उच्चायोग से रक्षा और सैनिक विभाग के अपने समकक्षों को इस्लामाबाद से बुलाने तथा संख्या कम करने का अदम उठाया। इसके साथ सिंधु जल संधि स्थगित करने का अभूतपूर्व कदम उठाया।

पाकिस्तान ने इसकी प्रतिक्रिया में सीनेट में प्रस्ताव पारित किया तथा आतंकवादी घटना से स्वयं को अलग करते हुए भारत पर ही बदनाम करने का आरोप लगाया। पाकिस्तान का सबसे बड़ा वक्तव्य है कि सिंधु जल समझौते को रद्द करना युद्ध जैसा कदम है। उसने 1972 के शिमला समझौता को समाप्त करने की धमकी दी।
 
पाकिस्तान की दुर्दशा देखिए कि रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने स्काई न्यूज़ को दिए साक्षात्कार में आतंकी संगठनों के वित्त पोषण, प्रशिक्षण और समर्थन के इतिहास संबंधी प्रश्न पर स्वीकार किया कि हम अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों के लिए ऐसा करते रहे हैं और हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हम अगर सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान युद्ध या 9/11 में साथ नहीं होते तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड साफ रहता। तो इतना उन्होंने स्वीकार किया।

यह भी वास्तविक सच को इस मायने में झूठलाना है क्योंकि स्थिति का लाभ उठाते हुए जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पाकिस्तान ने अपनी ओर से प्रायोजित किया और उसका पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जो एक हद तक अभी भी कायम है। विश्व के प्रमुख देशों की सूचना में ये सारी बातें हैं। इसलिए भारत ने जब 2018 में हवाई बमबारी की तो एक भी देश ने उसका विरोध नहीं किया। उस समय भी डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के और व्लादिमीर पुतिन रूस के राष्ट्रपति थे। 
 
निःसंदेह, संपूर्ण देश में पाकिस्तान के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई या युद्ध का माहौल बना हुआ है। इस दृष्टि से देखें तो सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई बमबारी किया जा चुका है तथा इसके प्रभाव भी पड़े। स्वाभाविक ही इससे बड़ी कार्रवाई की स्थिति सामने है। तो आगे क्या? जम्मू कश्मीर के लिए आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता थी जो हो रही है। 
 
पहलगाम के बाद उसको पूर्णता तक ले जाना अपरिहार्य हो गया है। भारत ने आंतरिक रूप से सबसे पहले पहलगाम हमले के आतंकवादी अनंतनाग के बरा स्थित आदिल ठोकर उर्फ आदिल कुड़ी के घर को ध्वस्त किया तथा दूसरे आतंकवादी जैश ए मोहम्मद के आसिफ शेख का मकान तलाशी के दौरान स्वयं ध्वस्त हो गया। इसके साथ आतंकवाद से जुड़े सात अन्य के घर भी ध्वस्त किये जा चुके हैं। यह आतंकवादियों को सीधा संदेश है कि भारत बदल चुका है। सच यही है कि जम्मू कश्मीर के संदर्भ में न केवल भारत बदला है बल्कि जम्मू कश्मीर तथा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी बदला हुआ है। 
 
यह पहली बार है जब आतंकवादी घटना के विरुद्ध कम या ज्यादा संख्या में संपूर्ण जम्मू कश्मीर से लोग सड़कों पर आए हैं, कैंडल मार्च और छोटे-मोटे धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। हालांकि यह सब गृह मंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे के बाद ही आरंभ हुआ। अमित शाह के साथ बैठक में मुख्यमंत्री के रुप में उमर अब्दुल्ला भी उपस्थित थे और वहां कुछ बातें हुई होगी।

उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस ने पहली बार जिले-जिले में विरोध प्रदर्शन किया और महबूबा मुफ्ती जैसी आतंकवाद की समर्थक और पाकिस्तान के प्रति नरम नीति अपनाने वाली नेत्री को भी सड़क पर उतरना पड़ा। कश्मीर में जहां आतंकवादी हमले के बाद सुरक्षा कार्रवाई के विरुद्ध नारे लगाते थे, पत्थरबाजी होती थी और किसी तरह आतंकवादियों के निकल भागने का रास्ता तैयार किया जाता था उसके विपरीत यह दृश्य निश्चित रूप से महत्वपूर्ण बदलाव का संदेश है।
 
थोड़ी गहराई और व्यापकता से विचार करें तो निष्कर्ष आएगा कि सीमा पर सैन्य कार्रवाई को छोड़कर किसी देश के विरुद्ध जितने कदम उठाए जा सकते थे लगभग भारत ने एक बारगी उठा लिया है। इसका अर्थ है कि भारत समग्रता में दीर्घकालिक समाधान की दृष्टि से बहुपक्षीय कार्रवाई की ओर अग्रसर है।

सिंधु जल संधि पर भारत ने 25 अप्रैल को स्पष्ट किया कि वह एक-एक बूंद पानी रोकेगा और उसके लिए तात्कालीक, मध्यवर्ती और दीर्घकालिक उपाय के संकेत दिए गए। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह काफी हद तक संभव है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का पहला दौरा हुआ जहां उन्होंने श्रीनगर, अवंतीपुरा और अन्य इलाकों का दौरा किया, दो प्रमुख सैन्य मुख्यालयों विक्टर फोर्स और चिनार कोड जाकर वरिष्ठ कमांडरों से बातचीत की तथा दूसरी ओर अचानक नियंत्रण रेखा पर सीमा पार से हुई गोलीबारी को भी समझा।
 
इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि हमारी सेना का तीनों अंग हर तरह की स्थिति को सफलतापूर्वक निपटने में सक्षम है। लेकिन किसी भी सैन्य कार्रवाई या युद्ध के पहले पूरी तैयारी करनी होती है और एक लक्ष्य होता है। सेना को लक्ष्य दिया जाता है और उसके अनुरूप रणनीति बनाते हुए संघर्ष करती है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जैसा बाद में जनरल मानेक शा ने बताया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें मई-जून में सैन्य कार्रवाई के लिए कहा। लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत में आ रहे थे और मुक्ति संघर्ष के सेनानी मदद मांग रहे थे। किंतु मानेक शा ने तैयारी के लिए लगभग 6 महीने का समय लिया और दिसंबर में भारत ने सैन्य हस्तक्षेप किया।
 
यह समझना होगा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर ने 17 अप्रैल के अपने भाषण में न केवल पाकिस्तान सेना, वहां के सुरक्षा बल और आतंकवादी बल्कि आम मुसलमान को भी जेहाद के लिए पूरी तरह उकसाया है। इस बात के यहां मायने नहीं रखने कि आसिफ मुनीर स्वयं सेना में अपने विरुद्ध असंतोष, इमरान खान की पार्टी को नियंत्रित करने, अफगानिस्तान के साथ तनाव का सफलतापूर्वक सामना करने एवं देश के अंदर सेना पर भ्रष्टाचार, काहिली, विफलता और अय्याशी के लग रहे आरोपों का खंडन करने में विफल साबित हुए हैं। वैसे भी आतंकवाद के हथियार से संघर्ष करने के लिए राजनीतिक-आर्थिक स्थिरता तथा शक्तिशाली व संपन्न होना बिल्कुल आवश्यक नहीं। 
 
पाकिस्तान ने परोक्ष रूप से न्यूक्लियर हथियार का भी हवाला दे दिया है। मोदी सरकार की पहले की दो कार्रवाइयों से पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी की हवा निकल चुकी है। अगर पाकिस्तान की विचारधारा से जुड़े हुए मुसलमानों का एक समूह के अंदर भी जम्मू कश्मीर को इस्लामी जिहाद का भाग बनाने की भावना पैदा कर दी गई तो उस सोच से निपटने के तरीके भी हमको तलाशने होंगे।

इनमें सही तरीके का सूचना युद्ध भी शामिल है। प्रमुख मुस्लिम देशों को इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान द्वारा भाईचारे में साथ देने के भाव को भी विफल करने की आवश्यकता है। इन सबके समानांतर अपने देश के अंदर प्रभावी इकोसिस्टम अभी से सरकार ही नहीं संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था के विरुद्ध नैरेटिव खड़ा करने में लगा है उसका भी प्रभावी रूप से सामना करना होगा।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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