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ब्‍लॉग-चर्चा

बेजी जैसन की कठपुतलियाँ और दृष्टिकोण

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jitendra

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आज ब्‍लॉग-चर्चा में हम बात करेंगे, कुछ रंगों और कविताओं की। कुछ निजी अनुभूतियों और कुछ बेतरह सुंदर स्‍वप्‍नों की।

आज हिंदी ब्‍लॉग मेरी कठपुतलियाँ और दृष्टिकोण के बारे में कुछ बातें।

दुबई में रह रही बेजी जैसन पेशे से तो डॉक्‍टर हैं, लेकिन मन उनका कवियों वाला है। वो गद्य भी लिखें तो उसमें कविता के सुर होते हैं। कविता जैसी लय और प्रवाह होता है।

बेजी जैसन का ब्‍लॉग ‘मेरी कठपुतलिया’ कविताओं को ही समर्पित है, जहाँ जीवन के विविध रूपों को, ढेरों अनुभूतियों को बहुत सहज-सरल ढंग से शब्‍दों में पिरोया गया है।

इस ब्‍लॉग की सबसे ताजा कविता पर एक नजर :
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आँगन में गिर
एक एक किर
उठाती ग
सोचा शाय
धूप ही पिरो लूँग

समय की सूई क
आँख में स
एक लम्ह
निकाल आ

किरणों की कता
ताज़ा उन्माद लि
झिलमिलाती धू
सी ही लग रही थ

पर कब तक.....

साँझ तक त
मुरझा ही जाएगी.....


ऐसी ही एक बहुत खूबसूरत-सी कविता है - क्‍या लाए पिया।

क्या लाए पिया...??
सिंदूरी शाम से थोड़
सिंदूर ले आत
बादल के झोले स
नमी ले आत
हवा से तितलियों क
पदचिन्‍ह ले आत
मेरे गाँव से थोड़
बारिश ले आत
बाबुल की खिड़की स
बूँदों की माला ले आत
पलों को सँजोने को
ताला ले आते...

अप्रैल, 2006 में उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग की शुरुआत की थी। वैसे तो उनके कई सारे ब्‍लॉग हैं, लेकिन मेरी कठपुतलियाँ और दृष्टिकोण क्रमश: पद्य और विचारात्‍मक आलेखों को समर्पित है। बेजी की कविताओं में एक खास तरह की तरलता और सहजता है। कविताओं के विषय बहुत गूढ़-गंभीर नहीं हैं। धूप, बारिश, हवा, फूल और पत्तियाँ और जीवन की छोटी-छोटी-सी बातें, हर बारीक अनुभूति के सजीव बिंब उनकी कविताओं में दिखते हैं। यही तरलता और सजीवता उनके गद्य में भी है। उनके गद्य को पढ़ते हुए भी कविताओं की अनुभूति होती है।

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उनके अपने ब्‍लॉगों और हिंदी ब्‍लॉग की वर्तमान स्थिति और उसके भविष्‍य आदि सवालों पर वेबदुनिया से उनकी लंबी बातचीत हुई। इस बातचीत को हम यहाँ बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के ज्‍यों-का-त्‍यों प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

हिंदी ब्‍लॉग - वर्तमान और भविष्य
बेजी जैसन से वेबदुनिया की बातचीत


आपने ब्‍लॉग की शुरुआत कब और कैसे की। हिंदी में ब्‍लॉग शुरू करने का ख्‍याल कैसे आया।

26 अप्रैल, 2006 को अपने जन्मदिन के दिन मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया। ब्लॉग, मेरा भाई जो अमेरिका में है, उसने बनाया था। उसी ने कहा कि जो लिखती हो, उसे यहाँ वहाँ ड़ालने की जगह व्यवस्थित एक जगह पर रखो। मैंने रोमन में ही लिखना शुरू किया था। और कौन लिख रहा है, इसका कोई अंदाज़ा नहीं था। मैं किसी के लिये नहीं लिख रही थी। अपने जीवन में दौड़ते-दौड़ते रुकी थी... पलटकर देखना चाहती थी, कहाँ से आई हूँ, कहाँ जा रही हूँ। इस दौरान बहुत से ऐसे लोग, जो पीछे छूट गए थे उनसे मिली। पुरानी अनुभूतियों को हिन्दी में ही महसूस किया, अपने व्‍यक्तित्‍व का एक भूला हुआ हिस्सा याद आ गया। रोमन में पढ़ते हुए कई बार अर्थ खो जाता। तभी देवनागरी लिपि की तलाश शुरू की। इन्स्टॉल किया और लिखना शुरू किया। एक दिन (करीबन लिखना शुरू करने के छह महीने बाद) नेट पर प्रतीक का चिट्ठा मिला। वहाँ से प्रतीक ही एग्रीगेटर तक पहुँचा आया

आपके कौन-कौन से ब्‍लॉग हैं

मैंने छह ब्लॉग खोले हैं। इरादा साहित्य में योगदान देने का नहीं था। अपने जीवन के अलग-अलग पहलू, जो धुँधले पड़ गए थे, उसे शब्दों में सँभालने का था

मेरी कठपुतलिया
यह कविताओं के लिये बनाया गया था। यहाँ कच्ची अनुभूतियाँ हैं, जिन्हें मैंने संपादित नहीं किया। किसी एक पल को पूरी ईमानदारी से शब्द देने की कोशिश है। यह मेरी पसंदीदा साइट है। यहाँ कई बार मुझे भी मुझे भी बहुत कुछ नया जानने को मिलता है।
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दृष्टिको
मोहल्ला विवाद के समय सारा को चिट्‍ठी मेरी कठपुतलियाँ में ही डाली थी। फिर महसूस किया कि गद्य लिखने के लिये यह जगह उपयुक्त नहीं है। कविताएँ मुझे लिखती हैं और गद्य मैं लिखती हूँ। इस फर्क को सहेजने के लिये दृष्टिकोण की शुरुआत की

My friend….my soulmate
Angels in cradle
Down the Memory Lane

जीवन-साथी, बच्चों और भाई के साथ के कुछ लम्हों को सहेजने की कोशिश अँग्रेजी के इन तीन ब्‍लॉगों में है।

Pearls of Wisdom
कुछ महान लोगों की कही हुई बातें इस ब्‍लॉग में हैं, जिसने मेरे जीवन को भी दिशा दी है

ब्‍लॉग पर लिखते हुए आप किन्‍हीं खास विषयों पर ही लिखती हैं। आप अपने विषय का चुनाव किस आधार पर करती हैं

ब्लॉग पर लिखते हुए कोई भी अनुशासन अपने ऊपर नहीं डाला है। कब, कहाँ, कैसे, कितना...कोई बंदिश नहीं है। भावनाओं के स्तर पर बात उठती है तो कविताओं से, विचार के स्तर पर बात दृष्टिकोण के माध्यम से कह देती हूँ। विषय कुछ भी हो सकते हैं। इनका चुनाव करने का तरीका भी आसान है। हाल में मैं अपने जीवन में कहाँ हूँ। कई बार दुनिया के अहम पहलुओं से मेरा कोई नाता नहीं होता और कई बार छोटी-से-छोटी बात भी बहुत मायने रखती है।

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आपके पसंदीदा हिंदी ब्‍लॉग कौन-से हैं
यह सवाल कठिन है। यह बदलता भी रहता है। इसीलिये मेरे ब्लॉग पर कोई लिंक्स नहीं है।
जिन ब्लॉग्स को नियमित देखती हूँ, उनमें से कुछ है
प्रत्यक्ष
रवीशजी का कस्ब
अनामदा
अज़द
घुघूति बासूति
और भी कई ब्‍लॉग पसंद हैं, जैसे अनिल रघुराज जी का ब्लॉग एक हिंदुस्‍तानी की डायरी। आस्तीन का अजगर और रजनीगंधा

पसंद पर भी कोई बंदिश नहीं है। कभी भी किसी पर भी मन आ जाता है

वर्तमान में हिंदी ब्‍लॉगिंग की जो स्थिति है, उसके बारे में आपकी क्‍या राय है
हिन्दी ब्लॉगिंग एक क्रांति के जैसी है। अधिकतर लोग, जो इससे जुड़े हुए हैं, वह एक पुरानी संस्कृति और नई संस्कृति के बीच का अहम जुड़ाव है। यह वे लोग हैं, जो हिन्दी में सोचते हैं और की-बोर्ड तक की पहुँच हासिल कर चुके हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग से अपने डेस्टिनेशन को गंतव्‍य में बदल रहे हैं।

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यहाँ आत्मविश्वास की खेती हो रही है और इस संभावना की तलाश हो रही है कि क्या विचार, भाव और विशुद्ध ज्ञान (अँग्रेजी के बिना) पर्याप्त है, समाज को आगे ले जाने के लिए। हो सकता है कि यही लोग अँग्रेजों की बरसों पहले दी गई गुलाम मानसिकता को बदलने में सक्षम हो जाएँ अँग्रेजी एक भाषा और हिन्दी हमारी अभिव्यक्ति बन जाए

हमारे समाज के बहुत समर्थ हिन्दी भाषी लोग अभी भी की-बोर्ड से दूर हैं। कोई पहल, जो इन लोगों को ब्‍लॉगिंग से जोड़ सके, हिन्दी ब्लॉगिंग को चरम सीमा तक पहुँचा सकती है


हिंदी ब्‍लॉगिंग के भविष्‍य को आप किस रूप में देखती हैं
हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य का विस्तार बहुत अधिक है। यह जिस तरह से बढ़ रहा है, इसके कद के बारे में कोई सवाल नहीं बचता। परंतु यह समय अहम है। हर जल्दी बड़ी होती चीज़ की तरह यह अपनी मनमानी दिशा में विस्तृत हो रही है। इसे सही दिशा देना जरूरी है। नहीं तो किसी नियोजन के बिना यह बड़े हुए शहर-सी हो जाएगी, जहाँ अच्छी सड़कें और साँस लेने के लिए हरियाली नहीं होगी

इंटरनेट युग के इस नए आविष्‍कार के बारे में आपका क्‍या विचार है
ब्लॉगिंग का महत्व ग्लोबलाइजेशन जितना है। अपने घर बैठकर मैं अमेरिकन, इराकी और चीनी जीवन बहुत करीब से देख सकती हूँ। इनसे अपनी बुनियादी समानता और फर्क को समझ सकती हूँ। भाषा की कोई बंदिश न होने की वजह से कच्चे चिट्ठे बिना संपादन के अपने कुदरती रंगों में कभी भी खोलकर पढ़े जा सकते हैं। इतने तेज़ और गतिमान आविष्कार के सामने मैं नतमस्तक हूँ


क्‍या आपको लगता है कि ब्‍लॉगिंग से हिंदी भाषा का विकास होगा
मुझे लगता नहीं है, यह एक सच्चाई है। हिन्दी के कई भूले हुए शब्द साहित्य के पन्नों से निकलकर आम इन्सान की बोली में घुलने लगे है। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है। जब तक भाषा का व्यावहारिक जिंदगी में असर न हो, किसी बदलाव का कोई मतलब नहीं है

आपके विचार से हिंदी ब्‍लॉगिंग में क्‍या कमियाँ हैं, जो दूर होनी चाहिए
कौन लोग हैं, जो हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे हैं। आप छह-सात ब्लॉग भी निकालकर देखें तो आराम से इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि एक किस्‍म की बेचैनी इन सभी ब्लॉगर्स में एकसमान है। अधिकतर किसी तलाश में निकले हैं और अपनी बेचैनियों को शब्द दे रहे हैं। अगर अलग शब्दों में बयान किया जाए तो बहुत कम संयत, सफल और समवृत्ति वाले लोग ब्लॉग्स लिख रहे हैं। इसी वजह से समाज की पूरा अनुप्रस्थ काट (क्रॉस सेक्शन) उपलब्ध नहीं है। और यही इसकी अहम कमज़ोरी है। आगे जाने के लिए समाज के हर भाग से प्रतिनिधित्व आवश्यक है

बहुत विषयों पर लिखा जा रहा है, किन्तु वैज्ञानिक क्षेत्रान्मुखता का अभाव है। साहित्य और पत्रकारिता के हिसाब से ब्लॉगिंग फिर भी परिपक्व है, किंतु बाकी क्षेत्रों में संभावनाओं कि गुंजाइश बहुत है

हिंदी ब्‍लॉगिंग में किन विषयों पर नहीं लिखा जा रहा है, जिन पर लिखे जाने की जरूरत है।

व्यवसाय कैसे चुने, बच्चों के लिए, नए शोधों के परिणाम, शिक्षा, सेहत, दफ्तर, रसोई, फैशन, देश-विदेश, सिलाई-बुनाई, कृषि, होमवर्क आदि विषयों पर भी लिखा जाना चाहिए

जैसाकि पहले भी कहा कि जो आम लोग अपने जीवन से संतृप्त हैं, संयत हैं और खुशी-खुशी जीवन निर्वाह कर रहे हैं, हिन्दी ब्लॉग्स में उनके आगमन का इंतज़ार है।

मेरी कठपुतलियाँ - http://bejijaison.blogspot.com/
दृष्टिकोण - http://beji-viewpoint.blogspot.com/
माय फ्रेंड माय सोलमेट - http://jaisonsbeji.blogspot.com/
डाउन द मैमोरी लेन - http://memoriesofsoul.blogspot.com/
पर्ल्‍स ऑव विजडम - http://whatguidesme.blogspot.com/

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