18 अप्रैल: महान क्रांतिवीर तात्या टोपे का बलिदान दिवस, जानें 15 अनसुने तथ्य
महान क्रांतिकारी तात्या टोपे के बारे में जानें
HIGHLIGHTS
• तात्या टोपे का बलिदान दिवस आज।
• तात्या टोपे के बारे में जानें।
• तात्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था।
Tatya Tope: महान क्रांतिवीर तथा भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में प्रमुख रूप से साहसिक कार्य करने वाले तात्या टोपे का आज पुण्यतिथि मनाई जा रही है। 18 अप्रैल को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। तात्या टोपे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक गिने जाते हैं। ऐसे महान क्रांतिकारी तात्या टोपे ने आजादी की जंग अंग्रेजों को धूल चटाई थी।
आज उनके बलिदान दिवस पर जानते हैं 15 खास बातें-
1. भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। बता दें कि देश की आजादी के क्रांतिकारी वीर योद्धा तात्या टोपे को 18 अप्रैल को फांसी दी गई थी।
2. रामचंद्र पाण्डुरंग राव/ तात्या टोपे का जन्म 16 फरवरी 1814 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में नासिक, महाराष्ट्र के नजदीक येवला में हुआ था। उनके पिता का पांडुरंग राव तथा माता का नाम रुक्माबाई था। तात्या टोपे/ रामचंद्र आजीवन अविवाहित थे।
3. तात्या टोपे को बचपन से ही युद्ध और सेनानी कार्यों में अधिक रुचि थी, चूंकि पिताजी पेशवा बाजीराव के यहां पर बड़े पद पर आसीन थे। लेकिन बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों से युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और अपना राज्य, क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा।
4. इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के कानपुर बिठूर में जाकर बस गए। उन्हीं के पीछे-पीछे तात्या टोपे का परिवार भी बिठूर में जाकर बस गया।
5. तात्या टोपे दिमाग से बहुत तेज थे। वह हर युद्ध की रणनीति बखूबी तरीके से बनाते थे। हालांकि कई बार उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन वह कभी अंग्रेजों के चुंगल में नहीं फंसे।
6. अंग्रेजी लेखक रहे सिलवेस्टर ने लिखा कि, तात्या टोपे का हजारों बार पीछा किया लेकिन वह कभी किसी के हाथ नहीं आए। कभी तात्या टोपे को पकड़ने में सफलता हासिल नहीं हुई।
7. तात्या टोपे ने ईस्ट इंडिया कंपनी में भी काम किया। बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में काम किया था, लेकिन हमेशा उनका अंग्रेजों से छत्तीस का आंकड़ा रहा।
8. उनका असली नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, लेकिन सभी प्यार से उन्हें तात्या कहकर पुकारते थे।
9. तात्या टोपे के इस नाम के पीछे दो कहानी है। पहली वह किसी तोपखाने में नौकरी करते थे इसलिए उन्हें टोपे कहा जाने लगा था। दूसरी कहानी है बाजीराव द्वितीय ने उन्हें एक बेशकीमती टोपी थी, जिसे वह बड़े ठाठ-बाट के साथ पहनते थे। हालांकि किसी पर रौब नहीं जमाते थे। लेकिन इस टोपी के बाद से उन्हें तात्या टोपे कहा जाने लगा।
10. 1857 की क्रांति के दौरान रानी लक्ष्मीबाई का तात्या टोपे ने भरपूर साथ दिया था। उनके साथ मिलकर अंग्रेजों को हराने की पूरी नीति बनाई थी।
11. तात्या टोपे ने अपने संपूर्ण जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध पूरी वीरता के साथ लड़े थे। इस दौरान युद्ध में उन्होंने करीब 10 हजार सैनिकों को मार गिराया था। विशेष कर सन् 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले तात्या टोपे के प्रयासों को आज भी याद किया जाता है।
12. उनकी युद्ध करने की नीति और चतुराई से वह अक्सर अंग्रेजों के चुंगल में आने से बच जाते थे।
13. एक जगह से युद्ध में नाकामयाब होने पर वह दूसरे युद्ध की तैयारी में जुट जाते थे। उनके इस रवैये से अंग्रेजों का नाक में दम निकल गया था। अत: 15 अप्रैल को तात्या टोपे का कोर्ट मार्शल किया गया था। जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
14. तात्या टोपे को 18 अप्रैल को सायं पांच बजे भारी भीड़ के बीच बाहर लाया गया। अंग्रेजों ने सैंकड़ों की तादाद में मौजूद लोगों के बीच उन्हें फांसी की सजा दी गई। हालांकि फांसी के दौरान तात्या के टोपे के चेहरे पर किसी तरह की शिकंज या निराशा के भाव नहीं थे। फांसी के दौरान भी उनके चेहरे पर दृढ़ता का भाव था।
15. अपनी फांसी से पहले 'भारत माता की जय' का नारा लगाने वाले और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और अमर क्रांतिकारी तात्या टोपे के बलिदान दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन।
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