Savitribai Phule Death Anniversary
HIGHLIGHTS
• 10 मार्च को सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि।
• वे भारत की पहली महिला शिक्षका थीं।
• सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था।
जन्म- 3 जनवरी 1831
निधन- 10 मार्च 1897
Savitribai Phule 2024: वर्ष 2024 में रविवार, 10 मार्च को भारत की प्रथम टीचर सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। कहा जाता है कि जब वे लड़कियों को पढ़ाने जाती थीं तो लोग उन पर गोबर फेंकते थे, किंतु सावित्रीबाई फुले एक ऐसी महान शिक्षिका थी, जो उन लोगों से कभी नहीं डरी और निरंतर अपना कार्य करती रहीं। वे एक महान समाज सुधारिका तथा समाज फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली क्रांतिज्योती थीं। इतना ही नहीं सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं। भारतीय इतिहास में उनका विशेष स्थान है।
आइए जानते हैं सावित्रीबाई फुले के बारे में 5 खास बातें-
1. सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। सावित्रीबाई फुले के पिता का नाम खंडोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले भारत की ऐसी महान हस्ती तथा पहली महिला शिक्षिका थीं, जिन्हें दलित लड़कियों को पढ़ाने पर लोगों द्वारा फेकें गए पत्थर और कीचड़ का सामना भी करना पड़ा। एक कवयित्री, महान समाज सुधारक और भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं।
2. सावित्रीबाई फुले का विवाह मात्र 9 वर्ष की उम्र में 12 वर्ष के ज्योतिराव फुले के साथ सन् 1840 में हुआ था। ज्योतिराव क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, बुद्धिमान एवं महान दार्शनिक थे। उन्होंने अपना अध्ययन मराठी भाषा में किया था। ज्योतिबा भी समाजसेवी थे, अत: सावित्रीबाई फुले ने उनके साथ मिलकर सन् 1848 में बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी।
3. उस जमाने में दलितो और नीच जाति के लोगों का गांवों के कुंए पर पानी लेने जाना उचित नहीं माना जाता था, यह बात उन्हें बहुत परेशान करती थी, अत: उन्होंने दलितों के लिए एक कुंए का निर्माण किया, ताकि उन्हें आसानी से पानी मिल सकें। उनके इस कार्य का भी खूब विरोध हुआ, लेकिन सावित्रीबाई ने अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का अपना कार्य जारी रखा।
4. सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले की कोई संतान नहीं थी, अत: उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंत राव को गोद लिया था, जिसका उनके परिवार ने काफी विरोध किया, तब उन्होंने अपने परिवार वालों से सभी तरह के संबंध समाप्त कर लिए।
5. अपने जीवन काल में सावित्रीबाई ने महिला अधिकारों के लिए काफी संघर्ष किया तथा विधवाओं के लिए एक केंद्र की स्थापना की, वहीं उनके पुनर्विवाह को लेकर भी प्रोत्साहित किया। उस जमाने में जब लड़कियों की शिक्षा पर सामाजिक पाबंदी बनी हुई थी, तब सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने वर्ष 1848 में मात्र 9 विद्यार्थियों को लेकर एक स्कूल की शुरुआत की थी।
उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में बहुत कार्य किए। फुले दम्पति को महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए सन् 1852 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित किया था तथा उनके सम्मान में डाक टिकट तथा केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने उनकी स्मृति में कई पुरस्कारों की स्थापना भी की है। सावित्रीबाई फुले का निधन पुणे में हुआ था, जब वे लोगों का प्लेग रोग के इलाज करने में व्यस्त थींल तथा उस दौरान वे खुद भी प्लेग से पीड़ित हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई थी। सावित्रीबाई फुले भारतीय इतिहास में वह खास शख्सियत हैं, जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया था।
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