Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दीपावली की 5 पौराणिक कथाएं...

हमें फॉलो करें दीपावली की 5 पौराणिक कथाएं...
कौस्तुभ हृदय माहेश्वरी
दीपावली भारतीय पर्वों में सबसे प्रमुख पर्व है और वर्तमान में ही नहीं बल्कि युगों से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, जिसका प्रमाण इन कथाअों में मिलता है। पढ़ें दीपावली से जुड़ी पांच पौराण‍िक कथाएं... 


1 सतयुग की दीपावली -  सर्वप्रथम तो यह दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकटे। इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आरंभ होता है।
 
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को। तत्पश्चात इसी महामंथन से देवी महालक्ष्मी जन्मीं और सारे देवताओं द्वारा उनके स्वागत में प्रथम दीपावली मनाई गई। 
2 त्रेतायुग की दीपावली - त्रेतायुग भगवान श्रीराम के नाम से अधिक पहचाना जाता है। महाबलशाली राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 वर्ष वनवास में बिताकर राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपमालिकाओं से सजाई गई और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।

3 द्वापर युग की दीपावली - द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा और दीपावली में दो महत्वपूर्ण आयाम जुड़ गए। पहली घटना कृष्ण के बचपन की है। इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियान्वित कर श्रीकृष्ण ने स्‍थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता।
webdunia

वैसे भी कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं। उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है। 
 
4  द्वापर युग की दीपावली 2 - दूसरी घटना कृष्ण के विवाहोपरांत की है। नरकासुर नामक राक्षस का वध एवं अपनी प्रिया सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने की घटना दीपोत्सव के एक दिन पूर्व अर्थात रूप चतुर्दशी से जुड़ी है। इसी से इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।

अमावस्या के तीसरे दिन भाईदूज को इन्हीं श्रीकृष्ण ने अपनी बहिन द्रौपदी के आमंत्रण पर भोजन करना स्वीकार किया और बहन ने भाई से पूछा- क्या बनाऊं? क्या जीमोगे? तो जानते हो, कृष्ण ने मुस्कराकर कहा- बहन कल ही अन्नकूट में ढेरों पकवान खा-खाकर पेट भारी हो चला है इसलिए आज तो मैं खाऊंगा केवल खिचड़ी। हां, क्यों न हो, सारे संसार के स्वामी ने यही तो संदेश दिया था कि- तृप्ति भोजन से नहीं, भावों से होती है। प्रेम पकवान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। 
webdunia

 
5 कलियुग की दीपावली - वर्तमान कलियुग दीपावली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद के निर्वाण के साथ भी जोड़ता है। भारतीय ज्ञान और मनीषा के दैदीप्यमान अमरदीपों के रूप में स्मरण कर इनके पूर्व त्रिशलानंदन महावीर ने भी तो इसी पर्व को चुना था अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए। जिनकी दिव्य आभा आज भी संसार को आलोकित किए है प्रेम, अहिंसा और संयम के अद्भुत प्रतिमान के रूप में। 
साभार - देवपुत्र 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दीये व रंगोली से प्रसन्न होंंगी लक्ष्मी, पढ़ें कथा