भारत में कई तरह का ज्ञान और विधाओं का प्रचलन है लेकिन सभी का हिन्दू वैदिक धर्म से संबंध जोड़ दिया जाता है जबकि अधिकतर उसमें से स्थानीय संस्कृति और परंपरा का परिणाम है। तांत्रिक विद्या, काला जादू आदि तरह के कर्म को वामकर्म करते हैं जिनका वैदिक सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। ऐसे कई लोग हैं तो जल्दी सफलता पाने, किसी को प्रभावित करने या किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए तंत्र, मंत्र, वशिकरण या काला जादू का सहारा लेते हैं। तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है कि यह सभी कौलमार्गी (तांत्रिक, अघोर, बाबा आदि) है जो धर्म विरूद्ध हैं।
वास्तव में टोने और टोटके के बीच पहला और स्पष्ट अंतर है कि टोना केवल बुरा करने के उद्देश्य से किया जाता है जबकि टोटका किसी अच्छे काम को साधने के उद्देश्य से। यानि टोना साध्य को पाने का गलत तरीका है और टोटका साध्य को हासिल करने का पवित्र तरीका है। ज्योतिष के उपाय किसी भी तंत्र या टोने के अंतर्गत नहीं आते हैं। कुछ लोग धन प्राप्ति के लिए या लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए अजीब अजीब टोने करते हैं, उनमें से कुछ सात्विक उपाय या टोटके होते हैं और कुछ टोने या तंत्र। इनमें से अधिकतर का धर्म से कोई संबंध नहीं यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है।
माना जाता है कि दीपावली के पांच दिनों में खास करके धनतेरस, रूप चौदस और दीपावली के दिन कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं। वे कई प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने या तंत्र के कार्य अपनाते हैं।
ऐसा माना जाता है माता लक्ष्मी के वाहन उल्लू को दीपावली की रात पान खिलाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर आपको संपूर्ण सुखों का आशीर्वाद देती है। तंत्र के नाम पर दीपावली की रात अब लोग श्मशान आदि का रुख कम ही करते हैं, लेकिन बाग बगीचे, मंदिर, आश्रम, धर्मशालाएं अधवा एकांत स्थान पर लोग हवन, यज्ञ, जाप या पूजा करते हैं। तांत्रिक लोग इस दिन विशेष श्मशान साधना करते हैं जो कि अनुचित है। बाद में इस तरह के कार्य का बुरा ही फल मिलता है।
दिवाली पर अक्सर उल्लू जैसे पक्षियों की शामत आ जाती है और कई तरह की तांत्रिक वस्तुएं, आंकड़े के पौधे की जड़, जड़ी-बूटियां बाजार में मिलने लगती हैं। बेचारा कछुआ भी आफत में रहता है। टोने के चक्कर में लोग ढूंढते हैं सुअर का दांत, हाथी का दांत, घोड़े की नाल, कबूतर या शेर के नाखून, सांप की केंचुली या फिर काली बिल्ली और उल्लुओं की आंख। यह सभी अंधविश्वास है।
दिवाली के दिन अमावस्या की अंधेरी रात होती है। इस दिन बहुत से लोग तांत्रिक साधना करते हैं। कई कारणों से लोग तांत्रिक साधना करते हैं। पहला तो यह कि वे अपने जीवन में जल्दी से जल्दी सफल होना चाहते हैं और दूसरा यह कि यदि जीवन में कोई संकट है तो उसे समाप्त करना चाहते हैं। ऐसे लोगों में भगवान के प्रति भक्ति नहीं होती है। वे तो बस अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं।
उन्हें उनके स्वार्थ की सिद्धि के एवज में बाद में बहुत कुछ चुकाना भी होता है। ऐसी कई साधनाएं हैं जो कि अवैदिक और अपौराणिक मानी गई है जिनमें से एक है ऐसी तंत्र साधना जिसे अघोर या भयावह कहते हैं। तंत्र साधना वाममार्गी साधना है।
कहते हैं कि अधिकतर तांत्रिक साधना का संबंध देवी काली, अष्ट भैरवी, दस महाविद्या, 64 योगिनी, बटुक भैरव, काल भैरव, नाग महाराज आदि से संबंध रहता है लेकिन उक्त की साधना को छोड़कर जो लोग यक्षिणी, पिशाचिनी, अप्सरा, वीर साधना, गंधर्व साधना, किन्नर साधना, नायक-नायिका साधान, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, गुह्मक, भूत, वेताल, अघोर आदि की साधनाएं करते हैं वे घोर कर्म करते हैं जो कि धर्म विरुद्ध माने गए हैं।
उपरोक्त नामों में से कहीं भी देवी लक्ष्मी का नाम उल्लेखित नहीं है। दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुछ लोग उनके तांत्रिक मंत्र का भी जाप करते हैं। हर देवी-देवता का एक साधारण या वैदिक मंत्र, दूसरा तांत्रिक मंत्र और तीसरा साबर मंत्र होता है। इसमें तांत्रिक मंत्र का जाप करने से पहले किसी योग्य जानकार से पूछ लें तो अच्छा है।
दिवाली पर अक्सर लोग लक्ष्मी स्वरूपा मां तारा की पूजा भी करते हैं और उनके मंत्र का जाप कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। दूसरा, कुछ लोग हरिद्रा तंत्र साधना, नैवेद्य तंत्र साधान, अश्व-जिह्वा तंत्र साधना और अडार तंत्र साधान भी करते हैं, लेकिन साधारण व गृहस्थ व्यक्ति को लक्ष्मी पूजा हेतु वैदिक मंत्र और पूजा का ही सहारा लेकर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहिए यही उचित है। सबसे बड़ी बात यह कि यदि आपमें भक्ति की जगह स्वार्थ है तो फिर आप उचित राह पर नहीं हैं।
टोने के चक्कर में जहां एक ओर प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वहीं पशु और पक्षियों का जीवन भी में संकट में हो चला है। इसके अलावा समाज में इस तरह के अंधविश्वास के चलते ईश्वर पर विश्वास कम टोनों और तांत्रिकों पर विश्वास ज्यादा किया जाने लगा है। कबिलाई संस्कृति तो खत्म हो गई है किंतु आज भी उसके लक्षण देखें जा सकते हैं जो कि धर्म के मर्मज्ञों अनुसार जाहिलाना कृत्य हैं।
अक्सर या देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले तंत्र-गंथों में जो साधना-विधियां लिखी गई है वह मार्ग से भटनाने वाली है। हालांकि ऐसी कई किताबों में दावा किया जाता है कि यह लेखक का सच्चा अनुभव है लेकिन क्या आपने लेखक को देखा और परखा? अंत: दिवाली के पांच दिनी उत्सव को खुशाहाल बनाएं और किसी भी तंत्र, मंत्र या टोने टोटकों के चक्कर में ना पड़े। भक्ति में ही शक्ति होती है यह अच्छे से जान लें।