कार्तिक माह की त्रयोदशी से शुक्ल द्वितीया तक दीपोत्सव का त्योहार मनाया जाता है जिसमें कार्तिक माह की अमावस्या को मुख्य दीपावली पर्व होता है। इससे पूर्व और बाद में कई तरह के रीति रिवाज़ होते हैं। सभी का विधिवत रूप से पालन करने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है।
1.लिपाई-पुताई और नए कपड़े : इस त्योहार के आने के कई दिन पहले से ही घरों की लिपाई-पुताई, सजावट प्रारंभ हो जाती है। मान्यता अनुसार लक्ष्मीजी इन दिनों में विशेषरूप से विचरण करती है अत: जहां ज्यादा साफ-सफाई और साफ सुधरे लोग नजर आते हैं वहीं वह रम जाती है। इसीलिए लक्ष्मीजी के आगमन में चमक-दमक की ज्यादा जरूरत होती है।
2.घर की सजावट : इन पांच दिनी महोत्सव में घर को लाइट, वंदनवार, फूलों की माला और आम के पत्तों से सजाया जाता है।
2.सोना, बर्तन या चांदी खरीदना : धरतेरस पर नए-नए बर्तन, सोना, चांदी, आभूषण इत्यादि खरीदने का रिवाज है। इस दिन वणिक लोगों को अपने बहिखाते बदलना चाहिए। इस दिन घी के दिये जलाकर देवी लक्ष्मी का आहवान किया जाता है।
3.देवी और देवताओं की पूजा : इन पांच दिनों में पहले दिन धनवंतरि और यम, दूसरे दिन शिव, हनुमान, वामन, यम, कृष्ण और काली, तीसरे दिन लक्ष्मी, कुबेर और गणेश, चौथे दिन यम, गोवर्धन, कृष्ण और वामन, पांचवें दिन यम और चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। सभी की विधिवत कथा सुनकर पूजा करेंगे तो लाभ मिलेगा।
4.रंगोली या मांडना : दिपावली के पांच दिनी उत्सव में रंगोली और मांडना बनाना 'चौंसठ कलाओं' में से एक है जिसे 'अल्पना' कहा गया है। रंगोली और मांडनों को श्री और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह माना जाता है कि जिसके घर में इसका सुंदर अंकन होता रहता है, वहां लक्ष्मी निवास करती है। मांडना में चौक, चौपड़, संजा, श्रवण कुमार, नागों का जोड़ा, डमरू, जलेबी, फेणी, चंग, मेहंदी, केल, बहू पसारो, बेल, दसेरो, सातिया (स्वस्तिक), पगल्या, शकरपारा, सूरज, केरी, पान, कुंड, बीजणी (पंखे), पंच कारेल, चंवर छत्र, दीपक, हटड़ी, रथ, बैलगाड़ी, मोर, फूल व अन्य पशु-पक्षी आदि बनाया जाता है।
5.मजेदार पकवान : आजकल त्योहारों से गायब हो रहे हैं पारंपरिक व्यंजन। अब लोग बनी बनाई मिठाई और पकवान ले जाते हैं और बांट देते हैं जो कि अनुचित है। इसी दिन पारंपरिक पकवान और मिठाइयां बनाई जाती हैं। हर प्रांत में अलग-अलग पकवान बनते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर गुझिये, शक्करपारे, लड्डू, आलू की पूड़ी, चटपटा पोहा चिवड़ा, कुरकुरी नमकीन चकली, मावे की करंजी, नमकीन चना दाल, कद्दू के पेड़े, अनारसे, भाखरबड़ी, गुंजे, काजू कलिंगा,काजू कतली और काजू अनार, बाम्बे और कश्मीरी पेड़ा, बेसन की बर्फी, मूंग की दाल के छोटे समोसे, मालपुआ, मूंग की दाल का हलवा, केसरिया श्रीखंड, बालूशाही, गुलाब जामुन, जलेबी, पूरनपोली, खीर, पूड़ी, भजिये, कलाकंद, मैसूर पाक आदि सैंकड़ों मिठाईयां बनाई जाती है।
5.दीपक जलाना : आज कल लोग नकली दीये या लाइट वाले दीये लगाते हैं जोकि परंपरा के विरुद्ध और अनुचित है। कुछ लोग तो दीयों की जगह मोमबत्ती लगाने लगे हैं वह भी अनुनिच है। तेल के दीये का महत्व जानना जरूरी है। असंख्य दीपों की रंग-बिरंगी रोशनियां मन को मोह लेती हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है।
6.पटाखे और फुलझड़ियां : पटाखे छोड़ने और फुलझड़ियां जलाने की परंपरा कब से शुरू हुई यह तो हम नहीं बता सकते, लेकिन दीपावली के दिन पटाखे छोड़ने के प्रचलन अब अपने चरम पर है। संपूर्ण देख में करोड़ों रुपए के पटाखे जला दिए जाते हैं। पटाखों को बहुत ही सावधानी से छोड़ना चाहिए। यह देखा गया है कि घातक किस्म के पटाखों से बच्चों की मौत तक हो गई है और कुछ लोग जीवनभर के लिए अपंग तक हो गए हैं तो किसी की आंखें चली गई है। पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएं।
7.जुआ खेलना : अन्नकूट महोत्सव के दौरान शगुन के रूप में जुआ खेलने की परंपरा है। मान्यता अनुसार अन्नकूट महोत्सव के दिन जुआ खेला जाना चाहिए लेकिन कई लोग जानकारी नहीं होने के कारण दीपावली के दिन ही खेल लेते हैं। अन्नकूट पर्व को द्यूतक्रीड़ा दिवस भी कहते हैं। महाभारत काल में भी पांडव और कौरवों के बीच में इसी दिन जुए का खेल हुआ था और पांडव इसमें कौरवों के छल कपट के आगे हार गए थे।