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आखिर पांडव और श्रीकृष्ण को क्या हासिल हुआ महाभारत का युद्ध लड़ने से?

हमें फॉलो करें आखिर पांडव और श्रीकृष्ण को क्या हासिल हुआ महाभारत का युद्ध लड़ने से?

अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019 (08:00 IST)
इस युद्ध में कौरवों ने 11 अक्षौहिणी तथा पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर लड़ाई लड़ी थी। कुल अनुमानित 45 लाख की सेना के बीच महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- कौरव के कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। हालांकि इतिहास के कुछ पन्नों के अनुसार महाभारत के युद्ध में 39 लाख 40 हजार योद्धा मारे गए।
 
 
पांडवों का कुछ नहीं बचा : मात्र पांच गांव के खातिर लड़े गए इस युद्ध से आखिर पांडवों को क्या हासिल हुआ? पांडव वंश में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के उत्तरा के गर्भ में पल रहा उनका एक मात्र पुत्र बचा था जिसे श्रीकृष्ण ने बचाया था। इसका नाम परीक्षित था। पांडव युद्ध जीतने के बाद भी हार ही गए थे क्योंकि फिर उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। प्रत्येक पांडव के 10-10 पुत्र थे लेकिन सभी मारे गए।
 
 
श्रीकृष्ण का कुल नष्ट हो गया : श्रीकृष्ण की नारायणी सेना और कुछ यादव महाभारत के युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी मौसुल युद्ध में श्रीकृष्ण के कुल का नाश हो गया था। मौसुल युद्ध में श्रीकृष्‍ण के सभी पुत्र और पौत्र मारे गए थे। कुल में जो महिलाए और बच्चे बचे थे, उन्हें अर्जुन अपने साथ लेकर मथुरा जा रहे थे तो रास्ते में वे बचे हुए लोग भी लुटेरों के द्वारा मारे गए। श्रीकृष्ण के कुल का एकमात्र व्यक्ति जिंदा बचा था जिसका नाम धा वृहद्रथ।
 
 
अन्य लोग : गांधारी, कुंती, धृतराष्‍ट्र, विदुर, संजय आदि सभी जंगल चले गए थे। जंगल में धृतराष्‍ट्र और गांधारी एक आग में जलने से मर गए। ऐसी लाखों महिलाएं विधवा हो गई थी जिनके पतियों ने युद्ध में भाग लिया था। उनमें कर्ण, दुर्योधन सहित सभी कौरवों की पत्नियां भी थीं।
 
 
अंत: में युद्ध के बाद युधिष्ठिर संपूर्ण भारत वर्ष के राजा तो बन गए लेकिन सब कुछ खोकर। किसी भी पांडव में राजपाट करने की इच्छा नहीं रही थी। सभी को वैराग्य प्राप्त हो गया था। यह देखते हुए युधिष्ठिर ने राजा का सिंहासन अर्जुन के पौत्र परीक्षित को सौंपा और खुद चल पड़े हिमालय की ओर, जीवन की अंतिम यात्रा पर। उनके साथ चले उनके चारों भाई और द्रौपदी आदि। उनसे पहले ही धृतराष्ट्र और गांधारी हिमालय चले गई थे। वहीं सभी का अंत हो गया था।
 

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