चारों वोदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। गीता ही प्रमुख धर्मग्रंथ है। गीता में कहा गया है कि शुक्ल पक्ष में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति वापस नहीं लौटता और कृष्ण पक्ष में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति वापस लौट आता है अर्थात उसे फिर से जन्म लेना होता है। उल्लेखनीय है कि भीष्म ने अपना शरीर तब तक नहीं छोड़ा था जब तक की उत्तरायण का शुक्ल पक्ष नहीं आ गया था।
लाखों लोग हैं जो शुक्ल पक्ष में मरते हैं और लाखों ऐसे लोग भी हैं जो कृष्ण पक्ष में मरते हैं तो क्या शुक्ल पक्ष में मरने वाले सभी लोगों को मोक्ष मिल जाता है? क्या वह वापस धरती पर नहीं लौटते हैं? दरअसल, गीता में यह बात उन लोगों के लिए कही गई है जो कि ध्यानी, योगी या अनन्य भक्त हैं। आम व्यक्ति को मरने के कुछ ही समय बाद दूसरा जन्म ले लेता है लेकिन जो पाप कर्मी है उसे दूसरा जन्म लेने में कठिनाई होती है। मतलब यह कि वह भूत, प्रेत या पिशाच योगी भोगने के बाद ही जन्म लेगा। यह भी हो सकता है कि वह मनुष्य योनी को छोड़कर निचले स्तर की योनी में चला जाए। मतलब यह कि उसका डिमोशन (Demotion) हो जाए।
पढ़िए कृष्ण का शुक्ल और कृष्ण मार्ग का ज्ञान:-
यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! जिस काल में (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम 'सृति', 'गति' ऐसा कहा है।) शरीर त्याग कर गए हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूँगा॥23॥
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥
भावार्थ : जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। ॥24॥
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥
भावार्थ : जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है॥25॥
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ॥
भावार्थ : क्योंकि जगत के ये दो प्रकार के- शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।)- जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी।) फिर वापस आता है अर्थात् जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है॥26॥
क्या है कृष्ण और शुक्ल पक्ष?
हिन्दू माह में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्र के घट-बढ़ के अनुसार 15-15 तिथियों में बांटा गया है। चंद्र जब बढ़ने लगता है तो उस काल को शुक्ल पक्ष और जब घटने लगता है तो उस काल को कृष्ण पक्ष कहते हैं। शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या होती है। शुक्ल पक्ष को देवताओं का दिन और कृष्ण पक्ष को पितरों का दिन कहते हैं। इसी तरह उत्तरायण को देवताओं का काल और दक्षिणायन को पितरों का काल कहते हैं।