राक्षसराज रावण ने भी इन गायकों के साथ ऋषभ, गांधार, घैवत, निषाद, मध्यम और कैशिक रागों में भगवान बुद्ध की स्तुति की। इन स्तुतियों में लंकाधिपति ने भगवान से अनुरोध किया कि 'मलय पर्वत के ठीक नीचे विशाल समुद्र की विचलित उमड़ती हुई लहरों की तरह इस संसार के प्राणियों के चित्त भी विचलित हैं अतः हे भगवन! आपने जो अपने अंतःकरण में सत्य का पूर्ण रूप से अनुसंधान किया है वही सत्य लंकापुरी में पधारकर हम सभी प्रजाजन को बतलाएं।