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Dussehra 2025: दशहरा पर क्यों करते हैं अपराजिता देवी की पूजा, जानिए पूजा विधि

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WD Feature Desk

, बुधवार, 1 अक्टूबर 2025 (08:29 IST)
02 अक्टूबर 2025 गुरुवार के दिन देश में धूमधाम से दशहरा मनाया जाएगा। इस दिन अपराजिता देवी की पूजा, शमी पूजा, दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ ही शस्त्र पूजा भी की जाती है। इसी दिन रावण दहन और शमी के पत्तों को स्वर्ण रूप में एक दूसरे को देते लेते हैं। आओ जानते हैं कि दशहरा पर क्यों करते हैं माता अपराजिता की पूजा, जानिए पूजा विधि। 
 
|| 02 अक्टूबर 2025 गुरुवार विजयादशमी दशहरा मुहूर्त ||
दशमी- 01-10-2025 को शाम 07:01 को प्रारंभ।
दशमी- 02-10-2025 को शाम 07:10 को समाप्त।
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ- 02-10-2025 को सुबह 09:13 तक।
श्रवण नक्षत्र समाप्त- 03-10-2025 को सुबह 09:34 तक।
शुभ चौघड़िया: प्रात: 06:15 से 07:43 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:46 से 12:34 तक।
शस्त्र पूजा मुहूर्त: दिन में 11:46 से 12:34 तक।
वाहन खरीदी मुहूर्त: सुबह 10:41 से दोपहर 01:39 के बीच। 
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:06 से 06:30 तक।
रावण दहन मुहूर्त: प्रदोष काल में।
नोट: दशहरा अबूझ मुहूर्त है इसमें पूरे दिन और रात ही रहता है शुभ मुहूर्त। इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं रहती है।
 
क्यों करते हैं देवी अपराजिता की पूजा?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। अपराजिता आश्विन शुक्ल दशमी को पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है। अपराजिता का अर्थ है 'जो कभी पराजित न हो'। यह देवी शक्ति की संहारकारी और रौद्र शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। शस्त्र पूजा से पहले अपराजिता देवी की पूजा करते हैं। यह देवी हमें युद्ध सहित अन्य कई क्षेत्रों में विजय दिलाती है। इसीलिए दशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा होती है। जब देवी दुर्गा ने नव दुर्गाओं के रूप में दानवों का संपूर्ण विनाश किया, तो वह अपनी मूल शक्ति, आदिशक्ति अपराजिता के रूप में हिमालय में अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद श्रीराम ने उनकी आराधना की तो देवी ने उन्हें विजयी होने का वरदान दिया।
 
अपराजिता देवी की पूजा विधि: 
-यह पूजा अपराह्न काल में की जाती है।
-इस पूजा के लिए घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें। 
-यह स्थान किसी मंदिर, गार्डन आदि के आसपास भी हो सकता है। 
-पूजन स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (8 कमल की पंखुड़ियां) बनाएं। 
-अपराजिता के नीले फूल या सफेद फूल के पौधे को पूजन में रखें। 
-पुष्प और अक्षत के साथ देवी अपराजिता की पूजा के लिए संकल्प लें।
- अक्षतादि के अष्ट दल पर मृतिका की मूर्ति स्थापना करके 'ॐ अपराजितायै नम:' (दक्षिण भाग में अपराजिता का), 'ॐ क्रियाशक्तयै नम:' (वाम भाग में जया का), ॐ उमायै नम: (विजया का) आह्वान करते हैं।
-इसके उपरांत 'अपराजिताय नम':, 'जयायै नम:' और 'विजयायै नम:' मंत्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें।
-अब प्रार्थना करें।
-विसर्जन मंत्र- अब निम्न मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
-'हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम।'
- अंत में आरती करें।
 
 

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