जब लाशों को अस्पतालों और मर्च्युरी से सफेद प्लास्टिक में लपेटकर किसी उत्पाद की तरह श्मशानों तक पहुंचाया जा रहा हो, जब कोई बेटी एक एक सांस के लिए लड़ रहे अपने पिता के लिए बदहवास होकर अस्पताल में डॉक्टर और ऑक्सीजन ढूंढ रही हो, जिस त्रासदी में कहीं दफनाने के लिए जमीन कम पड़ गई हो और कहीं शवों को जलाने के लिए लकड़ियां खत्म हो गई, जहां विद्युत शवगृह की भटिट्या पिघल रही हैं, जहां लाशों का कोई नाम न बचा हो, वहां अगर कोई संक्रमण को भूलकर हिंदू-मुस्लिम का आलाप गाए और महामारी का राजनीतिक फायदा उठाए तो यह तय माना जाना चाहिए कि इस दौर में तो क्या उसे विभीषिका के किसी भी दौर में इंसान होने का हक हासिल नहीं हो सकेगा और होना भी नहीं चाहिए। वो कयामत के वक्त में भी कभी इंसान नहीं हो सकेगा।
धर्म और राजनीति के नशे में आकंठ डूबे हुए लोगों को सिर्फ एक छोटी सी बात समझ नहीं आ रही है कि यह लानत-मलानद तभी हो सकेगी जब हम जिंदा होंगे। आपके शिकवे शिकायत तभी तक हैं जब तक आप जिंदा हैं। होम आइसोलेशन से जूझते परिवारों को हमदर्दी के बोल चाहिए न कि सामाजिक बहिष्कार। रहम करें, व्हाट्सअप पर फिजूल का ज्ञान देना बंद करें, नकारात्मक वीडियो फॉर्वर्ड करने से पहले दस बार सोचें।
याद रखें, कोविड संक्रमण की इस विपदा में जब हर कोई अपने लिए और अपनों के जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है, इतना सबकुछ करने के बाद भी अंत में कई लोग अपने प्रियजनों की लाशों को छू नहीं पा रहे हैं, देख नहीं पा रहे, ऐसे में उसे सिर्फ आपके साहस, संबल की जरूरत है, क्योंकि उसके प्रियजन को बचाने के लिए इस वक्त न तो राजनीति काम आ रही है और न ही धर्म।
अपनों की जान बचाने के लिए बदहवास होकर अस्पतालों में चक्कर काटते हुए बेबस परिजन या अपनी जान की परवाह किए बगैर संक्रमित लोगों के बीच 24 घंटे गुजार कर मरीजों की जान बचाने की जद्दोजहद में भिड़े डॉक्टर, नर्स हों या कोई वार्ड ब्वॉय से लेकर अपने बच्चों और परिवार को ईश्वर के भरोसे घर छोड़कर दिन रात सड़कों पर ड्यूटी देने वाला कोई पुलिसकर्मी, प्रशासनिक कर्मचारी यहां तक की सफाईकर्मी ही क्यों न हो।
ये सब आपसे साहस, संबल के दो बोल चाहते हैं, ताकि इन्हें इस विपदा और इस घातक शत्रु से लड़ने का जज्बा मिल सके। जीने की ऊर्जा मिल सके। इन्हें आपके छद्म तर्कों से ज्यादा आपके सलाम, भरोसे और आपके स्नेह की जरूरत है। साहस और संबल का हर एक शब्द इन्हें जीने का और अपनो को जिंदा रखने का हौसला देगा। मौत से लड़ने और उसे हराकर घर भेजने की जिंदादिली देगा।
इसलिए अपने घर में किसी सुरक्षित कोने में बैठकर सोशल मीडिया में अपने कुतर्कों से पहले से जूझती और सुलगती हुई इन जिंदगियों का मनोबल तोड़ने की बजाए कम से कम उनके जीने के, लड़ने के हौसले को तो नीचे मत गिराइए। इतना करेंगे तो भी मानव धर्म को बनाए रखने में यह आपका योगदान ही होगा।
इस खतरनाक संक्रमण के काल में हमें इतना तो याद रखना ही होगा कि धर्म या राजनीतिक तौर पर जीतने हारने के लिए, लड़ने-झगड़ने के लिए और अपने तर्कों को सही साबित करने के लिए आपको अपने आसपास जिंदा लोगों की जरूरत होगी, अगर आपके आसपास कोई जीवित ही नहीं होगा तो लाशों से कौन से और क्या तर्क करोगे। और अगर आप इन लाशों के बीच भी ऐसा ही करते हो, तो आप भी सिर्फ एक जिंदा लाश हैं। इसलिए बेहतर होगा आप अपने जीवित होने का सबूत दीजिए, जो संघर्ष कर रहे उन्हें साहस और संबल दीजिए, उन्हें सलाम कीजिए।
शहर बंद करने में भला किस जिलाधीश या मुख्यमंत्री को खुशी होगी, क्यों कोई सरकार लॉकडाउन लगाकर आम आदमी के पेट पर लात मारेगी, शारीरिक दूरी, मास्क, सेनेटाइजेशन या लॉकडाउन जैसे नियम आपकी सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। महामारी से लड़ने में अब तो सरकार भी हम से मदद मांग रही है, मुश्किल वक्त है, हम सब एक ही विपत्ति से लड़ रहे हैं, मिल-जुलकर इस मुश्किल वक्त में एक दूसरे का सहारा बनें, मदद के लिए आगे आएं...