-जयदीप कर्णिक
लोग धरती को सींचने के नए तरीके ढ़ूँढ़ रहे थे .... और हमने बादलों पर पैर रक्खे हुए थे। हम आसमान में खेती कर रहे थे…..सब हँस भी रहे थे..... यहाँ धरती सोना उगल रही है और ये वहाँ आसमान में सपनों की खेती कर रहे हैं!!! .....सच, सपना ही तो था .... सचमुच का सपना ... जागती आँखों से देखा एक ख़ूबसूरत ख़्वाब ..... एक तसव्वुर ... एक ख़याल कि अपनी भाषाओं का नाम भी इस इंटरनेट के आसमान पर लिखा होगा ... सुनहरे हर्फों में.. अ, आ, ई से सजा हुआ...।
तब तकनीक और इंटरनेट की दुनिया में अपनी वर्णमाला और अक्षरों को बा-आसानी देख पाना एक ख़्वाब ही था। उन टूटते-हाँफते हर्फों को देखकर ये लगता था कि ये दुनिया अंग्रेज़ी के लिए ही बनी है। अपनी भाषा में देखे हुए ख़्वाब अब हमें इंटरनेट पर तो अंग्रेज़ी में ही समझने-देखने पड़ेंगे। ... पर कुछ जुनूनी थे जो अपना की-बोर्ड और माउस लेकर अपने सपनों को अपनी ही भाषा में साकार करने के लिए बादलों पर जा चढ़े थे... उनकी मेहनत से उन्होंने बादलों में अपने सपनों के बीज भी बो दिए... दिक्कतें भी कई आईं ... तेज़ हवाओं ने बादलों समेत उन बीजों को उड़ा ले जाने की कोशिश भी की..... पर उन बीजों में इरादों का फौलाद भरा था ..... इसीलिए तो वो सपना आज पूरे 18 साल का लहलहाता पेड़ बनकर खड़ा है। शान और स्वाभिमान के साथ... ।
इन 18 सालों में क्या कुछ नहीं देखा और बदला .... अलग-अलग की-बोर्ड से लेकर यूनिकोड तक। माइक्रोसॉफ़्ट और ब्रिटैनिका के अनुवाद से लेकर एमएसएन और याहू तक...। पोर्टल जहाँ आठ भाषाओं में चल रहा है वहीं अनुवाद की टीम दुनिया की 60 से अधिक भाषाओं में काम कर बड़े से बड़े उत्पाद पर अपनी छाप छोड़ रही है।
दूसरी और तकनीकी टीम ने भी देश-विदेश के बड़े-बड़े संस्थानों को अपनी तकनीकी सेवाएँ देकर वेबदुनिया के कौशल का झंड़ा बुलंद कर रखा है। वेबदुनिया के भाषा-तकनीक-स्थानीयकरण की त्रिवेणी मिलकर एक ऐसा ख़ूबसूरत संगम रचती है जो नयनाभिराम है, अद्वितीय है, बेमिसाल है। इसमें डुबकी लगा पाने वाला हर व्यक्ति सौभाग्यशाली है। ये शब्द के ब्रम्ह स्वरूप का साक्षात दर्शन भी है और माँ शारदा का पुण्य प्रताप भी।
आज तो ख़ैर इंटरनेट पर भाषाई सपनों के वो बादल ज़मीन पर उतर आए हैं। उनको छूना-महसूसना आसान है। इतना ही नहीं अब तो हर कोई उन्हीं सपनों की खेती करना चाहता है..... क्योंकि आज उसके लिए ज़मीन भी हासिल है और वो बहुत उर्वर भी दिखाई दे रही है...पर उस सपने को धरती पर उतार लाने का बिरला रोमांच तो वेबदुनिया को ही हासिल है। आसमान की टोकरी से इन सुनहरे ख्वाबों को निकाल लेने के लिए जो हौसला और हुनर चाहिए वो व्यवसाय और सफलता के लिए निर्धारित मापदंडों से नहीं आता। ज़िद भी चाहिए, जुनून भी और जज़्बा भी।
आज के समय में तो वेबदुनिया जैसे प्रकाश-स्तंभों की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है। एक ऐसे समय में जब डिजिटल मीडिया बस एक जुमला बन गया है और विचारों के जहाज अतिवाद की पाल बाँधकर चट्टानों से टकराने को आतुर हैं ... ऐसे में ऐसी रोशन इमारतों की ज़रूरत कहीं ज़्यादा हैं, जहाँ पक्षधरता की बजाय विचारों के तेल से बाती जलाई जाती हो....।
वेबदुनिया के इस स्वप्न बीज को सींचने में कई-कई लोगों का ख़ून-पसीना शामिल है। आप पाठक-दर्शकों-श्रोताओं का भी उतना ही योगदान है। दरअसल वेबदुनिया को लिखने और पढ़ने वाले दोनों ही इसको गढ़ने में बराबरी के हिस्सेदार हैं। ये एक बहुत विशाल कुनबा है जिसके सदस्य दुनिया के हर कोने में फैले हुए हैं। ये ही इसकी प्राणवायु भी हैं।
उम्मीदों का ये कारवाँ यों ही आगे बढ़ता रहे.... कोई राहगीर हो और कोई हमसफर.... निगाहें बस उस नए आसमान की तरफ टिकी रहें ... जहाँ से हमें फिर सुनहरे ख़्वाब चुरा कर लाना है...।