त्रिभाषा और डिलिमिटेशन पर केंद्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच क्यों हो रहा टकराव
भारत में त्रिभाषा नीति और डिलिमिटेशन को लेकर केंद्र सरकार और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं
Controversy over delimitation for Lok Sabha seats: भारत में भाषा और राजनीतिक पुनर्संरचना को लेकर केंद्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच कई बार मतभेद उभरते रहे हैं। हाल ही में त्रिभाषा नीति और लोकसभा सीटों के परिसीमन (Delimitation) के मुद्दे पर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच टकराव गहरा गया है। यह विवाद संसद में भी दिखाई दिया, जहां तीखी बहस और हंगामे के बीच केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी ने इसे और उग्र बना दिया। आइए जानते हैं इस पूरे मुद्दे को आसानी से।
क्या हो रहा है? (What?) : भारत में त्रिभाषा नीति और डिलिमिटेशन को लेकर केंद्र सरकार और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं। तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच इस विषय पर तीखी बहस हो रही है, जिससे संसद में भी हंगामा देखने को मिला।
यह विवाद क्यों हो रहा है? (Why?) : यह विवाद मुख्यतः दो प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित है :
नवीन शिक्षा पद्धति (त्रिभाषा फॉर्मूला) : केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने की बात कही गई है। इस नीति के तहत छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि, तमिलनाडु जैसे राज्य इस नीति का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वे हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में थोपे जाने के खिलाफ हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों का मानना है कि यह उनकी भाषाई स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
डिलिमिटेशन (सीमांकन) 2026 : डिलिमिटेशन का अर्थ संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण है, जो जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। भारत में पिछली बार डिलिमिटेशन 1976 में हुआ था, जिसके बाद इसे 2026 तक स्थगित कर दिया गया था। अब 2026 में होने वाले नए परिसीमन से उत्तर भारतीय राज्यों को अधिक संसदीय सीटें मिल सकती हैं, क्योंकि वहां की जनसंख्या वृद्धि दर अधिक रही है। इसके विपरीत, दक्षिण भारतीय राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के कड़े उपाय अपनाए हैं, जिससे उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत स्थिर रही है। ऐसे में, यदि जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का पुनर्वितरण किया जाता है, तो दक्षिण भारतीय राज्यों को नुकसान होगा और उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है।
त्रिभाषा नीति : केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) में त्रिभाषा प्रणाली लागू करने की योजना पर तमिलनाडु सरकार ने आपत्ति जताई है। डीएमके सरकार का मानना है कि यह राज्य की भाषाई पहचान और स्वायत्तता के खिलाफ है।
डिलिमिटेशन (सीमांकन) : जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों के पुनर्वितरण से दक्षिण भारतीय राज्यों को नुकसान होने की आशंका है। इन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय अपनाए हैं, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों की बढ़ती जनसंख्या के कारण उनकी संसदीय सीटों में बढ़ोतरी हो सकती है। हाल ही में त्रिभाषा नीति और डिलिमिटेशन के मुद्दे पर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच टकराव और भी गहरा गया है। यह विवाद संसद में भी दिखाई दिया, जहां तीखी बहस और हंगामे के बीच केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी ने इसे और उग्र बना दिया।
यह कब शुरू हुआ? (When?) : यह विवाद कई दशकों से चला आ रहा है, लेकिन हाल ही में संसद में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणियों के बाद यह फिर से गरमा गया है। 2024-25 में नई शिक्षा नीति और डिलिमिटेशन की संभावनाओं पर केंद्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों के चलते यह टकराव और बढ़ गया है
त्रिभाषा नीति पर विवाद : राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में त्रिभाषा प्रणाली लागू करने के केंद्र सरकार के प्रयासों का तमिलनाडु सरकार लगातार विरोध करती रही है। डीएमके सरकार का मानना है कि यह नीति दक्षिणी राज्यों की भाषाई पहचान और स्वायत्तता के खिलाफ है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी इस नीति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
संसद में इस मुद्दे पर बहस के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आरोप लगाया कि तमिलनाडु सरकार पीएमश्री योजना पर पहले सहमत थी, लेकिन अब वह इससे पीछे हट रही है। उन्होंने डीएमके नेताओं को अलोकतांत्रिक और असभ्य कहकर संबोधित किया, जिससे हंगामा खड़ा हो गया। इसके जवाब में डीएमके सांसद कनिमोझी ने प्रधान की टिप्पणियों को अपमानजनक बताया और लोकसभा सचिवालय में उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दे दिया।
यह कहां हो रहा है? (Where?) : यह विवाद मुख्य रूप से संसद और तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में केंद्र सरकार के खिलाफ असंतोष के रूप में उभर रहा है।
डिलिमिटेशन को लेकर असहमति : डिलिमिटेशन (सीमांकन) का मुद्दा भी दक्षिण भारतीय राज्यों और केंद्र सरकार के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण बन गया है। जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों के पुनर्वितरण की योजना से दक्षिण के राज्यों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को प्रभावी रूप से लागू किया है। इसके विपरीत, उत्तर भारतीय राज्यों में उच्च जनसंख्या वृद्धि दर होने के कारण संसदीय सीटों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। यह असमानता दक्षिणी राज्यों में असंतोष पैदा कर रही है।
तमिलनाडु सहित कई दक्षिणी राज्यों का तर्क है कि यह नीति उनके राजनीतिक प्रभाव को कमजोर करने का प्रयास है। संसद में इस विषय पर भी तीखी बहस हुई, जिसमें डीएमके समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की नीति का विरोध किया और राज्यसभा में वाकआउट भी किया।
दक्षिण बनाम उत्तर: जीडीपी, जनसंख्या और राजस्व योगदान : यह भी ध्यान देने योग्य है कि दक्षिण भारतीय राज्य, जिनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं, भारत की कुल जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन राज्यों की संयुक्त जीडीपी भारत की कुल जीडीपी का लगभग 30% है। इन राज्यों की संयुक्त जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 20% है।
इसके विपरीत, उत्तर भारतीय राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और पश्चिम बंगाल की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का लगभग 50% है, लेकिन उनकी जीडीपी का योगदान दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश की जीडीपी ₹24.99 लाख करोड़ है, जो महाराष्ट्र और तमिलनाडु से कम है। जीडीपी के मामले में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है।
कौन इसमें शामिल हैं? (Who?) : नई शिक्षा नीति और डिलिमिटेशन लागू करने के पक्ष में है तो तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके और अन्य दक्षिणी राज्यों की पार्टियां, जो इसे दक्षिण भारतीय राज्यों के अधिकारों के खिलाफ मानती हैं। इसके अलावा विपक्षी दल। इस पूरे मामले में जिन पर सर्वाधिक असर पड़ना तय है वो है जनता, दक्षिण भारतीय राज्यों के नागरिक, जिन्हें डर है कि उनकी राजनीतिक शक्ति और भाषाई पहचान कमजोर हो सकती है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और भविष्य की दिशा :
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने धर्मेंद्र प्रधान को अहंकारी राजा कहकर उनकी टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और प्रधानमंत्री से इस पर संज्ञान लेने की मांग की। यह घटना केंद्र और दक्षिणी राज्यों के बीच बढ़ते राजनीतिक और सांस्कृतिक मतभेदों को उजागर करती है।
भविष्य में, यदि केंद्र सरकार दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंताओं को दरकिनार कर अपनी नीतियों को लागू करने का प्रयास करती है, तो यह टकराव और भी गहरा सकता है। इससे देश में संघीय ढांचे को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ सकती है और क्षेत्रीय राजनीति को नया आयाम मिल सकता है। त्रिभाषा नीति और डिलिमिटेशन के मुद्दे पर केंद्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच बढ़ता टकराव यह दर्शाता है कि भारत के संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
इसका समाधान कैसे हो सकता है? (How?) :
संवाद और सहमति : केंद्र सरकार को दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंताओं को गंभीरता से सुनना चाहिए और एक समावेशी नीति बनानी चाहिए।
संघीय ढांचे का सम्मान : नीतियों को लागू करने से पहले राज्यों के साथ उचित परामर्श और उनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक संवेदनशीलताओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
न्यायसंगत संसदीय सीट आवंटन : जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित करने वाले राज्यों को दंडित करने के बजाय उनके योगदान को मान्यता दी जानी चाहिए।
त्रिभाषा नीति और डिलिमिटेशन को लेकर केंद्र और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच बढ़ता टकराव भारत के संघीय ढांचे को चुनौती दे सकता है। यदि इस मुद्दे को समय रहते हल नहीं किया गया, तो यह क्षेत्रीय राजनीति को और जटिल बना सकता है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह समावेशी नीति अपनाए और दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए सार्थक संवाद स्थापित करे, ताकि इन मुद्दों का समाधान लोकतांत्रिक और समावेशी तरीके से निकाला जा सके।