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भयंकर गर्मी से ऐसे बचाएगी सफेद छत

वैज्ञानिक लंबे समय से सफेद छतों का सुझाव देते आए हैं। दुनिया के कई हिस्सों में घरों की छतों को सफेद रंगने के अभियान चल रहे हैं। भारत में भी एक ऐसा भी अभियान चल रहा है, आखिर इसका क्या असर हुआ।

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DW

, मंगलवार, 11 मार्च 2025 (07:45 IST)
गुजरात के अहमदाबाद की कुछ बस्तियों में सैकड़ों छतों को बीते दो महीनों में परावर्तक, सफेद रंग से रंगा गया है। ऐसा इसलिए ताकि साल के सबसे गर्म समय में वहां रहने वालों कुछ राहत पहुंचाई जा सके। इस कोशिश में अहमदाबाद के 400 घर शामिल हैं। यह प्रक्रिया एक वैश्विक वैज्ञानिक परीक्षण का हिस्सा है। परीक्षण का मकसद यह जानना है कि विकासशील देशों में घर के अंदर की गर्मी लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक परिणामों को कैसे प्रभावित करती है और "ठंडी छतें" कैसे मदद कर सकती हैं।
 
हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी में काम कर रहीं महामारी विशेषज्ञ अदिति बुंकर ने कहा, "परंपरागत रूप से घर वह जगह होती है जहां लोग बाहरी परिस्थितियों से बचने के लिए आश्रय और राहत पाते हैं।" अदिति ब्रिटेन स्थित वेलकम ट्रस्ट द्वारा समर्थित इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रही हैं।
 
कैसे फायदेमंद हैं सफेद रंग की छतें
उन्होंने आगे कहा, "अब, हम ऐसी स्थिति में हैं जहां लोग असुरक्षित आवासीय परिस्थितियों में रह रहे हैं, जहां जिस चीज से उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए थी, वही वास्तव में उनकी गर्मी के संपर्क को बढ़ा रही है।"
 
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में गर्मी का मौसम मुश्किलों भरा हो गया है और हाल के सालों में अहमदाबाद जैसे शहरों में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस से पार जाता रहा है।
 
शहर के नारोल इलाके की वंजारा वास बस्ती में 2,000 से अधिक घर हैं, जिनमें से अधिकांश ऐसे हैं जहां ठीक से हवा तक नहीं आती है। यहां ज्यादातर एक कमरे वाले मकान है। इस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे नेहल विजयभाई भील कहते हैं कि उन्हें फर्क महसूस हुआ है।
 
भील के मकान की छत जनवरी में रंगी गई थी। वह कहते हैं,  "मेरा फ्रिज अब गर्म नहीं होता और घर ठंडा लगता है। मैं बहुत अच्छी नींद लेता हूं और मेरा बिजली का बिल भी कम आता है।"
 
जर्नल- एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स- में 2022 में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर में औद्योगिक क्रांति से पहले किसी भी साल में होने वाली हीटवेव की संभावना 10 में से एक थी, जो अब लगभग तीन गुना अधिक हो गई है।
 
गहरे रंग और सफेद रंग की छत का फर्क
छतों पर टाइटेनियम डाइऑक्साइड जैसे अत्यधिक रिफ्लेक्टिव पिगमेंट युक्त सफेद कोटिंग करके बुंकर और उनकी टीम सूर्य के विकिरणों को वायुमंडल में वापस भेज रही है। बुंकर कहती हैं, "इनमें से सामाजिक-आर्थिक लिहाज से निम्न स्तर के बहुत से घरों में, गर्मी को भीतर आने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं है, छतों पर कोई इन्सुलेशन भी नहीं है।"
 
बुंकर के इस प्रयोग में शामिल होने से पहले, आरती चुनारा ने अपने घर की छत पर प्लास्टिक की चादर और घास बिछा दी थी, लेकिन उन्हें और परिवार के बाकी सदस्यों को दिन के ज्यादातर वक्त घर के बाहर ही बैठना पड़ता था, वे उन दो या तीन घंटों के लिए ही घर के भीतर जाते जब गर्मी बर्दाश्त के लायक होती।
 
अहमदाबाद में यह परीक्षण एक साल तक चलेगा और वैज्ञानिक ठंडी छत के नीचे रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य और घर के अंदर के वातावरण से जुड़े डेटा जुटाएंगे। जो लोग ठंडी छत के नीचे नहीं रहते हैं उनसे भी डेटा इकट्ठा किया जाएगा। अन्य अध्ययन स्थल बुर्किना फासो, मेक्सिको और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के निउए द्वीप में हैं, जहां निर्माण सामग्री और जलवायु अलग है।
 
बुर्किना फासो के परीक्षण के शुरुआती नतीजों के बारे में बुंकर ने कहा कि "ठंडी छतों" ने अंदर के तापमान को टिन या मिट्टी की छत वाले घरों में 1.2 डिग्री सेल्सियस और टिन की छत वाले घरों में 1.7 डिग्री सेल्सियस तक कम कर दिया।
एए/आरएस (रॉयटर्स)

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