ईद-उल-अजहा 2025: जानिए तारीख, महत्व और परंपराएं
कुर्बानी की परंपरा से जुड़ा त्योहार है ईद उल-अज़हा, जानें महत्व और इस दिन के विशेष कार्य
Eid-ul-Adha history and significance: ईद उल-अज़हा इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने, धुल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। यह त्योहार हज यात्रा के समापन और कुर्बानी की परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस दिन, मुसलमान पैगंबर इब्राहीम (अलैहि सलाम) की अल्लाह के प्रति श्रद्धा और उनके बेटे इस्माइल की बलिदान की इच्छा को याद करते हैं। इस बार भारत में बकरीद का त्योहार 07 जून 2025, शनिवार को मनाया जा सकता है। आइए जानते हैं इस दिन के बारे में..
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ईद उल-अज़हा का महत्व: ईद उल-अज़हा का त्योहार पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) की अल्लाह के प्रति असीम निष्ठा, आज्ञापालन और बलिदान की भावना को याद करने के लिए मनाया जाता है।
1. कुर्बानी का प्रतीक: इस त्योहार का मुख्य महत्व कुर्बानी से जुड़ा है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम को अपने सबसे प्रिय चीज़, यानी अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का आदेश दिया था। पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए तैयार हो गए। जब वे कुर्बानी देने ही वाले थे, तो अल्लाह ने उनके इरादे को परखने के बाद इस्माइल की जगह एक मेमने (भेड़) को भेज दिया, जिसकी कुर्बानी दी गई। यह घटना अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण और त्याग का प्रतीक है।
2. हज यात्रा का समापन: ईद उल-अज़हा हज यात्रा के समापन का भी प्रतीक है, जो इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। दुनिया भर से लाखों मुसलमान हज के लिए मक्का जाते हैं, और ईद उल-अज़हा का पर्व हज के दौरान ही मनाया जाता है।
3. सामुदायिक सद्भाव और दान: ईद उल-अज़हा के दिन मुसलमान विशेष नमाज अदा करते हैं। फिर पैगंबर इब्राहिम की कुर्बानी की याद में पशु (आमतौर पर बकरा या भेड़) की कुर्बानी दी जाती है।
कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है:
- एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दान किया जाता है।
- एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ साझा किया जाता है।
- एक हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
यह प्रथा समाज में भाईचारे, सेवा और दान की भावना को बढ़ाती है, जिससे सामाजिक समानता और सौहार्द को बढ़ावा मिलता है।
4. कृतज्ञता और खुशी: यह त्योहार अल्लाह के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद का जश्न मनाने का दिन है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं, उपहार और मिठाइयां बांटते हैं। इस तरह ईद उल-अज़हा बलिदान, विश्वास, समुदाय और अल्लाह के प्रति समर्पण का त्योहार है। यह मुसलमानों को त्याग और दूसरों के प्रति सहानुभूति का महत्व सिखाता है।
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