ज्येष्ठ महीने की शुरुआत 27 मई 2021 से हो गई है। ज्येष्ठ के महीने में 6 जून, रविवार को अचला (अपरा एकादशी) मनाई जाएगी। ज्येष्ठ का यह महीना 25 जून 2021 तक जारी रहेगा। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की ग्यारस तिथि को अपरा एकादशी पर्व मनाया जाएगा।
मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत काल में अपरा एकादशी की महिमा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी थी। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय हासिल की थी। जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि- हे भगवन्! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा कर कहिए?
तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी अचला तथा 'अपरा' दो नामों से जानी जाती है। यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णुलोक को जाता है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
एकादशी व्रत कथा-
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा/अचला एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, भद्रकाली तथा अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और उनके 5वें अवतार वामन ऋषि की पूजा की जाती है।
अपरा/अचला एकादशी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया।
इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा।
ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई।
वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। अत: अपरा एकादशी की कथा पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी पूजन विधि :
एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें और एकादशी व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात पूजन से पहले घर के मंदिर में एक वेदी बनाए उस पर सात तरह के धान यानी उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें। उस वेदी पर कलश की स्थापना करें, उस पर आम के या अशोक वृक्ष के 5 पत्ते लगाएं। अब भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें और भगवान विष्णु को पीले पुष्प, ऋतु फल और तुलसी दल चढ़ाएं। फिर धूप-दीप से आरती करें। शाम को भगवान विष्णु की आरती करके फलाहार ग्रहण करें। रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। अगले दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं और इच्छानुसार दान-दक्षिणा देकर तत्पश्चात व्रत का पारण करें।
मंत्र -
- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
- ॐ विष्णवे नम:
ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
अपरा एकादशी के शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ कृष्ण ग्यारस यानी अपरा (अचला) एकादशी का प्रारंभ-
शनिवार, 05 जून को सुबह 04:07 से शुरू होकर रविवार, 06 जून 2021 को सुबह 06:19 मिनट पर यह तिथि समाप्त होगी।
पारण का समय सुबह 5.12 मिनट से 7.59 मिनट तक रहेगा।
अपरा एकादशी के शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 03:34 से सुबह 04:16 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 04:57 से 07 जून 2021, सुबह 02:28 तक।
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:19 से दोपहर 12:14 तक।
निशिता मुहूर्त- दोपहर 11:26 से 07 जून 2021, अपराह्न 12:07 तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:03 से दोपहर 02:58 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:23 दोपहर से सायं 06:47 तक।
अमृत काल- शाम 06:22 से सायं 08:10 तक।