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Tulsi vivah vidhi 2025: तुलसी विवाह की संपूर्ण पूजा विधि और पूजन सामग्री शुभ मुहूर्त के साथ

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025 (17:18 IST)
Dev Uthani Ekadashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। इसके बाद उनके विग्रह रूप शालिग्रामजी से तुलसी का विवाह कराकर विधिवत पूजन किया जाता है। आओ जानते हैं तुलसी विवाह की सामग्री और संपूर्ण पूजा विधि।

देव उठनी एकादशी तिथि:
एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर 2025 को सुबह 09:11 बजे।
एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025 को सुबह 07:31 बजे।
चूंकि एकादशी तिथि 1 नवंबर को सूर्योदय के समय मौजूद रहेगी (उदया तिथि), इसलिए व्रत 1 नवंबर को ही व्रत रखा जा रहा है। व्रत का पारण अगले दिन, यानी 2 नवंबर 2025 को दोपहर 01 बजकर 11 मिनट के बाद किया जा सकता है।
 
दिनांक 1 नवंबर 2025 के शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:42 से 12:27 तक। विष्णु पूजा का मुहूर्त।
गोधूलि मुहूर्त: शाम को 05:36 से 06:02 तक। तुलसी विवाह का मुहूर्त।
प्रदोषकाल मुहूर्त: यह सूर्यास्त के 40-45 मिनट पहले शुरू होता है और सूर्यास्त के 40-45 मिनट बाद तक चलता है। सूर्यास्त 05:36 पर होगा। तुलसी विवाह का मुहूर्त।
 
दिनांक 2 नवंबर 2025 के शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:42 से 12:26 तक। विष्णु पूजा का मुहूर्त।
गोधूलि मुहूर्त: शाम को 05:35 से 06:01 तक। तुलसी विवाह का मुहूर्त।
प्रदोषकाल मुहूर्त: शाम 06:31 से रात्रि 07:41 तक रहेगा। तुलसी विवाह का मुहूर्त।
 
तुलसी विवाह और पूजन में लगने वाली सामग्री
1. तुलसी का पौधा: एक स्वस्थ तुलसी का पौधा (गमले को गेरू या चूने से सजाया जा सकता है)।
2. भगवान शालिग्राम जी की प्रतिमा: (या भगवान विष्णु की मूर्ति/तस्वीर)।
3. पूजा की चौकी/पट्टे: तुलसी और शालिग्राम जी को स्थापित करने के लिए दो अलग-अलग चौकी।
4. मंडप के लिए सामग्री: गन्ना (ईख) या केले के पत्ते (इनसे मंडप सजाया जाता है)।
5. कलश: जल भरकर आम के पत्ते लगाने के लिए।
6. वस्त्र और श्रृंगार (वधू पक्ष): तुलसी माता के लिए: लाल चुनरी/साड़ी, चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी, काजल, महावर, बिछुए, और अन्य सुहाग सामग्री।
7. वस्त्र (वर पक्ष): शालिग्राम जी के लिए: पीले या लाल वस्त्र (या मौली/कलावा)।
8. तिलक और अभिषेक: रोली (कुमकुम), चंदन, हल्दी की गांठ (या पिसी हल्दी), अक्षत (चावल, ध्यान रखें कि शालिग्राम जी पर चावल की जगह तिल या सफेद चंदन चढ़ाते हैं), गंगाजल।
9. दीप और धूप: घी (या तेल), रुई की बाती, दीपक (कम से कम 11 या 21), धूप/अगरबत्ती, कपूर।
10. माला और पुष्प: तुलसी और शालिग्राम जी के लिए पुष्प माला, विभिन्न प्रकार के मौसमी फूल।
11. विवाह की रस्में: कच्चा सूत (तुलसी और शालिग्राम जी को बांधने के लिए), सुपारी, पान के पत्ते, दक्षिणा। 
12. मौसमी फल और सब्जियां: गन्ना, मूली, सिंघाड़ा, बेर, आंवला, अमरूद, शकरकंद, सीताफल आदि (ये सभी मौसमी उपज चढ़ाई जाती हैं)।
13. मिठाई/नैवेद्य: पंचामृत, मिठाई, खीर, या अन्य सात्विक भोग।
14. तुलसी दल: भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य शामिल करें।
 
तुलसी विवाह (देव उठनी एकादशी) विधि का संक्षिप्त रूप:
तुलसी विवाह के पहले विधिवत रूप से देव अर्थात भगवान विष्णु को जगाया जाता है। इसके बाद तुलसी विवाह करते हैं। तुलसी विवाह के दिन परिवार के सदस्य विवाह समारोह की तरह तैयार होकर वर (शालिग्राम) और वधू (तुलसी) पक्ष में बँट जाते हैं। गोधूलि बेला या अभिजीत मुहूर्त में विवाह संपन्न किया जाता है।
 
विवाह की तैयारी: आंगन, मंदिर या छत पर चौक और चौकी स्थापित करें। तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। तुलसी का पौधा पटिए पर बीच में रखें। अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम जी को स्थापित करें और उनका श्रृंगार करें। कलश स्थापित कर जल भरें, स्वस्तिक बनाएं, आम के पत्ते और नारियल रखें।
 
वस्त्र/श्रृंगार: तुलसी को समस्त सुहाग सामग्री और लाल चुनरी/साड़ी पहनाकर दुल्हन की तरह सजाएं। शालिग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं। गमले को गेरू से सजाकर शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर रखें।
 
विवाह की विधि:
  • विवाह के लिए प्रदोषकाल का समय उत्तम रहता है जो सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक रहता है।
  • 'ॐ श्री तुलस्यै नमः' मंत्र का जाप करते हुए गंगा जल छिड़कें और स्थान को अच्छे से पवित्र करें।
  • तुलसी के पौधे को रोली और शालिग्रामजी को चंदन का तिलक लगाएं।
  • तुलसी, शालिग्राम और मंडप को दूध में भीगी हल्दी का लेप लगाएं।
  • कोई पुरुष शालिग्राम को चौकी सहित गोद में उठाकर तुलसीजी की 7 बार परिक्रमा कराएं।
  • खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। मंगल गीत गाएं, मंत्रोच्चारण के साथ आरती करें।
  • कर्पूर से आरती कर 'नमो नमो तुलजा महारानी...' मंत्र बोलें। 
  • भोग को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें और प्रसाद का वितरण करें।

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