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देवशयनी एकादशी 2020 : मुहूर्त, महत्व, मंत्र, पूजा विधि और कथा

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देवशयनी एकादशी 2020 : मुहूर्त, महत्व, मंत्र, पूजा विधि और कथा 
 
मुहूर्त :
एकादशी तिथि प्रारंभ- 30 जून शाम 7:49 बजे
 एकादशी तिथि समाप्त - एक जुलाई शाम 5:29 बजे
 व्रत अनुष्ठान - उदयातिथि का मान होने से 1 जुलाई को व्रत धारण किया जाएगा। 
व्रत पारण कब - 2 जुलाई सुबह 5:27 बजे से 8:14 बजे के बीच।
महत्व : आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहते हैं। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ी एकादशी जून या जुलाई के महीने में आती है। 
 
2020 में ये एकादशी 01 जुलाई, 2020 (बुधवार) को है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार माह का समय हरिशयन का काल समझा जाता है। वर्षा के इन चार माहों का संयुक्त नाम चातुर्मास दिया गया है। इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं, उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य' कहलाता है। चातुर्मास से चार मास के समय का बोध होता है और चातुर्मास्य से इस समय के दौरान किए गए सभी व्रतों-पर्वों का समग्र बोध होता है।
कथा : सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुख और आनंद से रहती थी। एक समय राज्य में लगातार 3 वर्ष तक बारिश नहीं होने से भयंकर अकाल पड़ा। प्रजा व्याकुल हो गई और चारों ओर हाहाकार मच गया। प्रजा की दयनीय स्थिति देखकर राजा समाधान खोजने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
 
इस दौरान विचरण करते हुए राजा मान्धाता अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजा की बातें सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा कि, आप राज्य में जाकर देवशयनी एकादशी का व्रत रखो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में अवश्य ही वर्षा होगी। अंगिरा ऋषि की बात मानकर राजा मान्धाता राज्य में वापस लौट आए। राजा ने विधि विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया, इसके प्रभाव से अच्छी वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। पुराणों में आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व मिलता है। मान्यता है कि, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं।
पूजा विधि : वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए। 
 
पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। 
 
भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें। 
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भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें… 
 
मंत्र:
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।' 
 
अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं। 
इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। 
 
देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।


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