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Dol gyaras 2025: डोल ग्यारस पर कृष्ण पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

डोल ग्यारस 2025: जानें क्यों मनाई जाती है यह जन्माष्टमी के बाद आने वाली ग्यारस

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हमें फॉलो करें डोल ग्यारस 2025: जानें क्यों मनाई जाती है यह जन्माष्टमी के बाद आने वाली ग्यारस

WD Feature Desk

, मंगलवार, 2 सितम्बर 2025 (15:21 IST)
Dol gyaras 2025: डोल ग्यारस कब है? जानिए 2025 में डोल ग्यारस की सही तारीख, पूजा विधि, और इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का महत्व। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस कहते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। इसीलिए इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन को परिवर्तिनी, पद्मा और पार्श्व एकादशी भी कहते हैं।
 
डोल ग्यारस पर कृष्ण पूजा का शुभ मुहूर्त:
परिवर्तिनी एकादशी तिथि प्रारम्भ- 03 सितम्बर 2025 को 03:53 AM बजे।
परिवर्तिनी एकादशी तिथि समाप्त- 04 सितम्बर 2025 को तड़के 04:21 AM बजे।
 
लाभ का चौघडिया: सुबह 06:00 से 07:35 तक।
अमृत का चौघड़िया: सुबह 07:35 से 09:10 तक।
शुभ का चौघडिया: का 10:45 ए एम से 12:20 पी एम
गोधूलि मुहूर्त: शाम को 06:40 से 07:03 तक।
अमृत काल: शाम को 06:05 से 07:46 तक।
 
डोल ग्यारस का महत्व:
इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसीलिए इसे डोल ग्यारस भी कहा जाने लगा। इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। यह देवी लक्ष्मी का आह्लादकारी व्रत है इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
 
इस दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी पर भगवान विष्‍णु के वामन अवतार की कथा सुनने से लाभ मिलता है। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है। इस दिन गेंहू, धन, फल, वस्त्र और सिंदुर का दान करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। इस दिन भोजन पूर्व गाय माता को चारा खिलाने से दरिद्राता दूर होती है। इस एकादशी पर व्रत रखने और विष्णु पूजन करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु, लक्ष्मी और श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
 

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