पौष मास की कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी अपने नाम की तरह ही हर कार्य को सफल बनाने वाली मानी गई है। इस एकादशी का महत्व एवं इस दिन कौन से देवता का किया जाता है पूजन और उसकी क्या विधि है जानिए यहां-
कब है सफला एकादशी (Saphala Ekadashi Date)
सफला एकादशी 29 दिसंबर, 2021 को शाम के 4 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी, जो अगले दिन 30 दिसंबर के 01 बजकर 40 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
मुहूर्त-
पौष, कृष्ण एकादशी प्रारंभ - शाम 04:12, 29 दिसंबर, 2021
पौष, कृष्ण एकादशी समाप्त - 01 बजकर 40 मिनट 30 दिसंबर
सफला एकादशी पारण समय-
31 दिसंबर को प्रात: 07:14 से 09:18 के बीच व्रत को खोलें
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दिन में 10:39 का है।
कैसे करें सफला एकादशी पर पूजा
सफला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहन लें।
इसके बाद भगवान विष्णु के समक्ष घी की दीपक जलाएं।
उन्हें तुलसी दल भी अर्पित करने के बाद आरती करें।
आप व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दौरान इसे लेकर संकल्प ले लें।
भगवान विष्णु को चरणामृत का भोग लगाएं, इसमें तुलसी का एक पत्ता जरूर डालें।
विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा जरूर करें। बता दें कि एकादशी के दिन चावल खाना माना होता है। इसलिए इस दिन अपने घर में न खुद चावल खाएं ना ही घर के किसी सदस्य को खाने दें।
किसका करें पूजन- इस एकादशी का नाम सफला एकादशी है। इस एकादशी के देवता श्री नारायण हैं। हर भक्त को विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरूड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे श्रीहरि को परम प्रिय हैं। इस व्रत के नियम ...
1. हिन्दू पंचांग के अनुसार, एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन सिर्फ दिन के वक्त सात्विक आहार करना चाहिए।
2. संध्याकाल में दातुन करके पवित्र होना चाहिए।
3. रात्रि के समय भोजन नहीं करना चाहिए।
4. भगवान के स्वरूप का स्मरण करते हुए सोना चाहिए।
5. एकादशी के दिन सुबह स्नान करके संकल्प करना चाहिए और व्रत रखना चाहिए।
6. श्री विष्णु पूजन के लिए ऋतु के अनुकूल फल, नारियल, नींबू, नैवेद्य आदि 16 वस्तुओं का संग्रह करें। इस सामग्री से श्री विष्णु की पूजा करें।
7. दिन में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
7. पूजा में धूप, दीप एवं नाना प्रकार की सामग्रियों से विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए।
8. कलुषित विचार को त्याग कर सात्विक भाव धारण करना चाहिए।
9. रात्रि के समय श्रीहरि के नाम से दीपदान करना चाहिए और आरती एवं भजन गाते हुए जागरण करें।
10. इस एकादशी को अत्यंत भक्ति और श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत के समान यज्ञ, तीर्थ, दान, तप तथा और कोई दूसरा व्रत नहीं है। 5,000 वर्ष तप करने से जो फल मिलता है, उससे भी अधिक सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
सफला एकादशी व्रत रखने के 5 बड़े फायदे
1.सफला एकादशी सफल करने वाली होती है। यदि आपको जीवन के हर कार्य में सफल होना है तो इस एकादशी के दिन विधिवत रूप से शास्त्र सम्मत व्रत रखना चाहिए।
2. सफला एकादशी व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
3. इस दिन नियमपूर्वक व्रत रखने तथा श्री हरि की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रीहरि के साथ ही देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती है और धन समृद्धि बढ़ती है।
4. इसका व्रत रखने से लंबी आयु तथा अच्छे स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है।
5. पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है, वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उसके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
सफला एकादशी पर करें इन मंत्रों का 108 बार जाप
1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
2. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः
सफला एकादशी व्रत के करने के 26 फायदे हैं-
व्यक्ति निरोगी रहता है,
राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है,
पापों का नाश होता है,
संकटों से मुक्ति मिलती है,
सर्वकार्य सिद्ध होते हैं,
सौभाग्य प्राप्त होता है,
मोक्ष मिलता है,
विवाह बाधा समाप्त होती है,
धन और समृद्धि आती है,
शांति मिलती है,
मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है,
हर प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं,
खुशियां मिलती हैं,
सिद्धि प्राप्त होती है,
उपद्रव शांत होते हैं,
दरिद्रता दूर होती है,
खोया हुआ सबकुछ फिर से प्राप्त हो जाता है,
पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है,
भाग्य जाग्रत होता है,
ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,
पुत्र प्राप्ति होती है,
शत्रुओं का नाश होता है,
सभी रोगों का नाश होता है,
कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है,
वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और हर कार्य में सफलता मिलती है।
सफला एकादशी कथा
यह साल 2021 की अंतिम एकादशी है। यह एकादशी अपने नाम की तरह ही हर कार्य में सफल बनाने वाली मानी गई है।
महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे जनार्दन! पौष कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएं।
भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, मैं तुम्हारे स्नेह के कारण तुमसे कहता हूं कि एकादशी व्रत के अतिरिक्त मैं अधिक से अधिक दक्षिणा पाने वाले यज्ञ से भी प्रसन्न नहीं होता हूं। अत: इसे अत्यंत भक्ति और श्रद्धा से युक्त होकर करें। हे राजन! द्वादशीयुक्त पौष कृष्ण एकादशी का माहात्म्य तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो।
इस एकादशी का नाम सफला एकादशी है। इस एकादशी के देवता श्री नारायण हैं। विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरूड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे मुझे परम प्रिय हैं। अब इस व्रत की विधि कहता हूं।
मेरी पूजा के लिए ऋतु के अनुकूल फल, नारियल, नींबू, नैवेद्य आदि 16 वस्तुओं का संग्रह करें। इस सामग्री से मेरी पूजा करने के बाद रात्रि जागरण करें। इस एकादशी के व्रत के समान यज्ञ, तीर्थ, दान, तप तथा और कोई दूसरा व्रत नहीं है। 5,000 वर्ष तप करने से जो फल मिलता है, उससे भी अधिक सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। हे राजन! अब आप इस एकादशी की कथा सुनिए।
चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके 4 पुत्र थे। उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था। वह पापी सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था। सदैव ही देवता, ब्राह्मण व वैष्णवों की निंदा किया करता था। जब राजा को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। तब वह विचारने लगा कि कहां जाऊं? क्या करूं?
अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया। दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता तथा प्रजा को तंग करने और उन्हें मारने का कुकर्म करता। कुछ समय पश्चात सारी नगरी भयभीत हो गई। वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा। नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते।
वन में एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसकी भगवान के समान पूजा करते थे। उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे। कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के चलते सारी रात्रि सो नहीं सका। उसके हाथ-पैर अकड़ गए।
सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया। दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई। गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला। पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था अत: पेड़ों के नीचे गिरे हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया। उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे। वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन्! अब आपके ही अर्पण हैं ये फल। आप ही तृप्त हो जाइए। उस रात्रि को दु:ख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई।
उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए। दूसरे दिन प्रात: एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्री नारायण की कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो गए हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर। ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके भगवान आपकी जय हो कहकर अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया।
अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुंब भगवान श्री नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।
अत: जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है। जो नहीं करते वे पूंछ और सींगों से रहित पशुओं के समान हैं। इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।