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सफला एकादशी 2022 : शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा, नियम, फायदे, मंत्र और आरती एक साथ

हमें फॉलो करें सफला एकादशी 2022 : शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा, नियम, फायदे, मंत्र और आरती एक साथ
वर्ष 2022 में सफला एकादशी व्रत सोमवार, 19 दिसंबर 2022 को पड़ रहा है। इस दिन भगवान नारायण की पूरे मन से पूजा करने से व्रतधारी श्रीहरि विष्णु जी का कृपापात्र बन जाता है। इस दिन उन्हें ऋतुफल अर्पित करने, एकादशी कथा पढ़ने तथा माहात्म्य सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

आइए जानते हैं हर कार्य में सफल करने वाली सफला एकादशी के बारे में समग्र जानकारी एक ही स्थान पर... 

सफला एकादशी शुभ मुहूर्त- Saphala Ekadashi puja Time 
 
19 दिसंबर 2022, दिन सोमवार
पौष कृष्ण एकादशी का प्रारंभ- 19 दिसंबर को 03:32 ए एम से, 
एकादशी समाप्त होने का समय- 20 दिसंबर को 02:32 ए एम पर।
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय- 08:05 ए एम पर।
 
19 दिसंबर 2022, सोमवार : दिन का चौघड़िया-
अमृत- 07:09 ए एम से 08:26 ए एम तक। 
शुभ- 09:43 ए एम से 11:01 ए एम तक। 
लाभ- 02:53 पी एम से 04:10 पी एम तक। 
अमृत- 04:10 पी एम से 05:28 पी एम तक। 
 
रात का चौघड़िया- 
लाभ- 10:36 पी एम से 20 दिसंबर को 12:18 ए एम तक। 
शुभ- 02:01 ए एम से 20 दिसंबर को 03:44 ए एम तक। 
अमृत- 03:44 ए एम से 20 दिसंबर को 05:26 ए एम तक। 
 
महत्व- मान्य‍तानुसार सफला एकादशी अपने नाम की तरह ही हर कार्य में सफल बनाने वाली मानी गई है। इस एकादशी के महत्व के बारे में महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था। अत: भगवान श्रीकृष्ण ने जो महत्व इस एकादशी का बताया था, वह इस प्रकार है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी का नाम सफला एकादशी है। 
 
यह एकादशी व्रत इतना अधिक महत्व का है कि अधिक से अधिक दक्षिणा पाने वाले यज्ञ से भी भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं, जितना इस एकादशी व्रत पर उपवास करने से होते हैं। इस एकादशी के देवता श्री नारायण हैं। जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे मुझे परम प्रिय हैं। यह अत्यंत भक्ति और श्रद्धा से युक्त होकर विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए।
 
पूजा विधि- Puja Vidhi
 
- हिन्दू मान्यती के अनुसार, एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन सिर्फ दिन के वक्त सात्विक आहार करना चाहिए।
 
- संध्याकाल में दातुन करके पवित्र होना चाहिए।
 
- रात्रि के समय भोजन नहीं करना चाहिए।
 
- भगवान के स्वरूप का स्मरण करते हुए सोना चाहिए।
 
- सफला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहन लें। 
 
- सबसे पहले श्री नारायण की पूजा के लिए ऋतु के अनुकूल फल, नारियल, नीबू, नैवेद्य आदि 16 वस्तुओं का संग्रह करें।
 
- इसके बाद भगवान विष्णु के समक्ष घी की दीपक जलाएं। 
 
- उन्हें तुलसी दल भी अर्पित करने के बाद आरती करें। 
 
- आप व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दौरान इसका संकल्प ले लें। 
 
- भगवान विष्णु को चरणामृत का भोग लगाएं, इसमें तुलसी का एक पत्ता जरूर डालें। 
 
- इस सामग्री से भगवान श्रीकृष्‍ण, विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा जरूर करें। 
 
- रात्रि के समय श्रीहरि के नाम से दीपदान करना चाहिए और आरती एवं भजन गाते हुए जागरण करें।
 
- आपको बता दें कि एकादशी के दिन चावल खाना माना होता है। इसलिए इस दिन अपने घर में न खुद चावल खाएं ना ही घर के किसी सदस्य को खाने दें।
 
- इस एकादशी के व्रत के समान यज्ञ, तीर्थ, दान, तप तथा और कोई दूसरा व्रत नहीं है। 
 
- पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने से पहले पारण कर लें।
 
व्रत कथा : चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके 4 पुत्र थे। उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था। वह पापी सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था। सदैव ही देवता, ब्राह्मण व वैष्णवों की निंदा किया करता था। जब राजा को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। तब वह विचारने लगा कि कहां जाऊं? क्या करूं? अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया। 
 
दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता तथा प्रजा को तंग करने और उन्हें मारने का कुकर्म करता। कुछ समय पश्चात सारी नगरी भयभीत हो गई। वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा। नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते। वन में एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसकी भगवान के समान पूजा करते थे। उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे। 
 
कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के चलते सारी रात्रि सो नहीं सका। उसके हाथ-पैर अकड़ गए। सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया। दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई। गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला। पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था अत: पेड़ों के नीचे गिरे हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया। उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे। वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन्! अब आपके ही अर्पण हैं ये फल। आप ही तृप्त हो जाइए। उस रात्रि को दु:ख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई।
 
उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए। दूसरे दिन प्रात: एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्री नारायण की कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो गए हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर। ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके ‘भगवान आपकी जय हो’ कहकर अपने पिता के पास गया। उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया।
 
अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुंब भगवान श्री नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ। अत: जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है। जो नहीं करते वे पूंछ और सींगों से रहित पशुओं के समान हैं।
 
इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। 5,000 वर्ष तप करने से जो फल मिलता है, उससे भी अधिक सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। अत: सफला एकादशी का व्रत हर मनुष्य अवश्य करना चाहिए। ताकि जाने-अनजाने में उससे हुए पाप कर्म दूर होकर वैकुठ में स्थान मिलें। 
 
मंत्र- 
1. ॐ कृष्णाय नम:
2. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः 
3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
4. ॐ नमो नारायणाय 
 
नियम- 
- एकादशी पर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, इस दिन स्त्रीसंग वर्जित है।
- अपने स्वार्थ के लिए किसी भी दूसरे व्यक्ति को जानबूझ कर दुख देने से श्री विष्णु नाराज होते हैं। इसका अंत दुखद होता है। 
- एकादशी के दिन पान खाना भी वर्जित माना गया है। 
- इस दिन सात्विक आचार-विचार रख प्रभु भक्ति में मन लगाना चाहिए।
- परनिंदा यानी दूसरों की बुराई नहीं करना चाहिए। 
- एकादशी पर पूरी रात जागकर भगवान विष्णु की भक्ति करनी चाहिए, सोना नहीं चाहिए।
- इस दिन चोरी तथा हिंसा करना पाप कर्म माना गया है। 
 
फायदे- 
- इस दिन भगवान श्री विष्णु तथा धन की देवी माता लक्ष्मी का पूजन विधि-विधान से करने से जीवन में खुशियां, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य का वरदान मिलता है।
- इस एकादशी का व्रत करने से जीवन के सभी मनोरथ सफल होते हैं। 
- सफला एकादशी के व्रत कथा पढ़ने या सुनने अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है तथा जाने-अनजाने में हुए पाप दूर होकर वैकुंठ मिलता है। 
- रात्रि जागरण करने से पाप, संकट से मुक्ति तथा जीवन में खुशियों का संचार होता है।  
- सफला एकादशी व्रत से कई वर्षों की तपस्या से ज्यादा फल मिलता है तथा सभी सभी दुखों का नाश होता है। 
 
एकादशी की आरती-
 
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
 
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
 
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
 
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
 
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
 
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
 
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
 
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
 
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
 
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
 
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
 
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, पाप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
 
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
 
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
 
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।

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Ekadashi Worship 2022

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