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Indian foreign policy: भारत के दुश्‍मनों की बढ़ती संख्‍या, कनाडा और मालदीव से अदावत, भारत पर क्‍या असर होगा?

foreign policy को लेकर क्‍या है भारत की रणनीति?

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नवीन रांगियाल

  • भारत चीन के बीच रिश्‍ते बिगड़ रहे लेकिन व्‍यापार बढ़ रहा, ऐसा क्‍यों?
  • खालिस्‍तानी मूवमेंट पर कनाडा को कैसे कंट्रोल करेगा भारत?
  • मालदीव से दुश्‍मनी का भारत पर क्‍या होगा असर?
  • कनाडा ने दिया भारतीय छात्रों को झटका, छात्र वीजा पर 2 साल की सीमा की घोषणा की
एक तरफ जहां पूरी दुनिया में भारत की साख बढ़ रही है, वहीं कुछ पडोसी मुल्‍कों से तल्‍खी और कुछ पुरानी अदावतों के चलते भारत में लगातार अस्‍थिरता बनी हुई है। ऐतिहासिक गलतियों की वजह से चीन और पाकिस्‍तान तो भारत के पुराने दुश्‍मन रहे ही हैं, लेकिन अब कनाडा और मालदीव जैसे छोटे देशों के साथ भारत की बढ़ती कड़वाहट से दुनिया के नक्‍शे पर दोस्‍ती और दुश्‍मनी की तस्‍वीरें बदलती नजर आ रही हैं। एक तरह से भारत के दुश्‍मनों की संख्‍या बढ़ रही है।

भारत से खटपट के बाद मालदीव भारत के परम्‍परागत दुश्‍मन चीन की गोद में जा बैठा है तो वहीं खालिस्‍तान मूवमेंट मुद्दे पर कनाडा को कंट्रोल करना भारत के लिए जरूरी है। हाल ही में भारतीय छात्रों को झटका देते हुए कनाडा ने एक बड़ा फैसला लिया है। कनाडा ने छात्र वीजा पर दो साल की सीमा की घोषणा की है। इसके अलावा वीजा जारी करने के लिए एक सीमा तय करने का भी ऐलान किया है। हालांकि यूरोप और अफ्रीका के कुछ देश भारत के साथ खड़े नजर आते हैं, लेकिन पड़ोसी देशों के साथ नोकझोंक ने भारत में राजनीतिक और सामाजिक अस्‍थिरता बढ़ाई है। जानते हैं चीन,पाकिस्‍तान, कनाडा और मालदीव जैसे देशों के साथ दुश्‍मनी का भारत पर क्‍या असर हो सकता है।
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भारत-चीन : रिश्‍ते बिगड़े, व्‍यापार बढ़ा : हिंदी-चीनी भाई भाई से लेकर अब तक भारत चीन के बीच दोस्‍ती के कई प्रयास हुए, लेकिन चीन की धोखेबाज और विस्‍तारवादी नीति की वजह से यह प्रयास कभी धरातल पर मजबूत नहीं हो पाए। और आज भारत चीन के बीच जमकर तल्‍खी है। हालांकि भारत लंबे समय से 'वन चाइना' की नीति का समर्थन करता रहा है, ताकि चीन से उसे कुछ सद्भाव मिल जाए। यह बात अलग है कि 1962 से लेकर गलवान तक चीन ने भारत को धोखा ही दिया है। हालांकि भारत ने अपनी विदेश नीति में नए प्रयोग भी किए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हमास-इजरायल संघर्ष से लेकर जी-20 के समापन तक कई ऐसे कदम उठाए हैं, जो लीक से हट कर थे।

दरअसल, भारत को यह डर है कि ताइवान का समर्थन करने से फिर चीन अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा उठा सकता है, भूटान और म्यांमार की सीमा पर गतिविधि बढ़ सकती है, पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद को पनाह मिल सकती है। हालांकि यह भारत में आज भी हो रहा है। पाकिस्तान ने सीपेक के नाम पर बलूचिस्तान के पास का हिस्सा चीन को दे ही दिया है, अक्साई चिन उसको बेच ही दिया है।

भारत में चीनी कंपनियों का जाल : भारत में इस वक्त 174 चीनी कंपनियां हैं, जो विदेशी कंपनियों के तौर पर रजिस्टर्ड हैं। इसमें चीनी निवेशकों और शेयरधारकों वाली कंपनियों की संख्या शामिल नहीं है। केंद्र सरकार के मुताबिक इस तरह के आंकड़े अलग से नहीं रखे जाते। कॉर्पोरेट डाटा प्रबंधन (CDM) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 3560 कंपनियां ऐसी हैं, जिनमें चीनी डायरेक्टर हैं। ये आंकड़े भी बता रहे हैं कि भारत-चीन व्यापार के लिहाज से एक-दूसरे से कितने जुड़े हुए हैं।

काम नहीं आया बायकॉट : जून 2020 गलवान में चीन के कायरतापूर्ण कार्रवाई के बाद भारत में लोगों के बीच चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चली थी। भारत सरकार ने टिकटॉक, वीचैट, हैलो समेत दो सौ से ज्यादा चाइनीज ऐप्स को प्रतिबंधित कर दिया था। चीन अपने सामानों पर मेड इन चाइना की जगह पर मेड इन PRC (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) लिखने को मजबूर हो गया था। हालांकि इन तमाम कोशिशों के बावजूद भारत-चीन व्यापार लगातार फलते-फूलते रहे हैं।

भारत पर असर : व्यापार घाटा चीन के पक्ष में है और भारत के लिए नकारात्मक पहलू है। इससे जाहिर होता है कि द्विपक्षीय कारोबार में भारत आयात ज्यादा कर रहा है और निर्यात कम कर रहा है। ये एक बड़ी वजह है जिसे चीन बखूबी समझता है। उसे मालूम है कि भारत फिलहाल कई चीजों के लिए उसपर निर्भर है। ऐसे में सीमा पर तनाव के बावजूद कारोबार पर असर नहीं पड़ेगा। भारत के नजरिए से इस पहलू पर तेजी से काम करने की जरुरत है।
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भारत- कनाडा : 1985 से घुली कड़वाहट और कड़वी हो गई  
भारत और कनाडा के रिश्ते काफी खराब स्थिति में पहुंच गए हैं। कनाडा ने भारतीय दूतावास से एक अधिकारी को निष्कासित कर दिया था। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में भारत ने भी कनाडा दूतावास के एक अधिकारी को निष्कासित कर दिया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार का हाथ है।

हाल ही में भारतीय छात्रों को झटका देते हुए कनाडा ने एक बड़ा फैसला लिया है। कनाडा ने छात्र वीजा पर दो साल की सीमा की घोषणा की है। इसके अलावा वीजा जारी करने के लिए एक सीमा तय करने का भी ऐलान किया है।दरअसल, भारत-कनाडा रिश्‍तों के बीच कुछ दशकों तनाव घुल रहा है। शुरुआत तब हुई जब कनाडा स्थित खालिस्तानी अलगाववादी समूह द्वारा 1985 में एयर इंडिया विमान पर बम विस्फोट किया गया। 32 साल पहले एयर इंडिया बम धमाके की जांच अब तक नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। 2015 में ट्रूडो के कनाडा के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के संबंधों में रिश्ते बिगड़े हैं। भारत का कहना है कि कनाडा सरकार कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नर्म है और भारतीय हितों के खिलाफ काम कर रही है। कनाडा को ये बात भी चुभती रही है कि भारत कथित तौर पर हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की बात करके उसके आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश करता रहा है। हाल ही में भारत में आयोजित जी20 के बाद पीएम मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बीच जमकर तल्‍खी आई है।

क्‍या होगा असर : भारत और कनाडा के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता है। काफी संख्या में भारतीय वहां रहकर व्यापार या नौकरियां करते हैं। बहुत से भारतीय छात्र वहां पढ़ने के लिए जाते हैं। कनाडा ऐसा देश भी है, जहां भारतीय खासकर पंजाबी सिख समुदाय बड़ी सियासी ताकत भी बनकर उभरा है। अगर भारत और कनाडा के बीच संबंध और बिगड़े तो निश्चित तौर पर वहां रहने वाले भारतीयों पर तो असर पड़ेगा ही। साथ ही वहां जाने वाले भारतीयों के वीसा पर खासा प्रभाव पड़ सकता है। पिछले दिनों कनाडा में भारत विरोधी प्रदर्शन भी देखे गए। भारतीय अप्रवासियों पर खालिस्तान समर्थकों द्वारा हमले की भी खबरें आईं। खालिस्तान मूवमेंट को कंट्रोल करने के लिए भारत को कनाडा की मदद लेना ही पड़ेगी, क्‍योंकि यह पूरा मूवमेंट कनाडा से ही ऑपरेट होता है, जो भारत की राजनीतिक और सामाजिक स्‍थिति को अस्‍थिर करता है।
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भारत- मालदीव : क्‍यों चीन की गोद में बैठा मालदीव?
मालदीव के साथ भारत का पिछले कई वर्षों से बहुत नजदीकी संबंध चल रहा था, लेकिन नए प्रधानमंत्री मुइज्जू तो भारत-विरोध के नारे पर ही सत्ता में आए हैं। वहां चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और इससे हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की चिंता बढ़ेगी। वहां के राष्ट्रपति मोइज्जु अभी तो 'इंडिया आउट' के नारे के साथ ही सत्ता में ही आए हैं और उन्होंने पहली यात्रा ही तुर्की की की थी। उसके बाद वह चीन गए और दर्जनों समझौते किए।
हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप की यात्रा की तो मालदीव और ज्‍यादा भड़क गया। उसके तीन मंत्रियों ने पीएम मोदी को लेकर आपत्‍तिजनक टिप्‍पणी कर डाली। जिसके बाद भारत में बायकॉट मालदीव ट्रेंड करने लगा। जवाबी कार्रवाई में मालदीव ने भारत के जो सैनिक वहां केवल मेंटेनेंस के लिए तैनात थे, उन्हे भी वहां से हटने को लेकर भारत को अल्‍टीमेटम जारी कर दिया।

भारत पर असर : भारत और मालदीव के विवाद में चीन भारत के खिलाफ फायदा उठा सकता है। क्‍योंकि भारत से विवाद के बाद मालदीव की चीन से नजदीकी देखी गई है। पहले चीन श्रीलंका के मार्फत भारत को नुकसान पहुंचा सकता था, लेकिन अब वो वाया मालदीव भारत में घुसपैठ कर सकता है, क्‍योंकि मालदीव एक तरह से चीन की गोद में जा बैठा है। दूसरी तरफ मालदीव और भारत के बीच पर्यटन के लिहाज से गहरे रिश्‍ते हैं, जो बिगड जाएंगे। भारत के हजारों-लाखों लोग मालदीव की यात्रा करते हैं। हजारों भारतीय मालदीव में रहते हैं। इन पर असर हो सकता है।
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भारत- पाकिस्‍तान : हिंदू-मुस्‍लिम एंगल और भारत का पुराना दुश्‍मन
पाकिस्‍तान भारत का परंपरागत दुश्‍मन रहा है। 1947 से ही भारत और पाकिस्‍तान के बीच युद्ध और स्‍ट्राइक होते रही हैं। दोनों देशों के बीच हिंदू-मुस्‍लिम एंगल की जमकर चलता है। जिसका असर राजनीति से लेकर खेल, फिल्‍म इंडस्‍ट्री तक नजर आता है। हाल ही में भारत में राम मंदिर निर्माण और मंदिर की प्राण प्रतिष्‍ठा से से क्षुब्‍ध हो गया है। पाकिस्‍तान ने राम मंदिर निर्माण और भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की निंदा की है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा- हम अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की निंदा करते हैं। यह मंदिर बाबरी मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है। बयान में कहा गया कि ध्वस्त मस्जिद की जगह पर बना मंदिर आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र के माथे पर कलंक की तरह बना रहेगा। भारत में बढ़ती 'हिंदुत्व' विचारधारा धार्मिक सद्भाव और क्षेत्रीय शांति के लिए बड़ा खतरा है। ऐसा करके भारत मुस्लिमों को दरकिनार करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान ने कहा है कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अफसोस है। वहीं दूसरी तरफ भारत के सोशल मीडिया में भी राम मंदिर को लेकर ट्रेंड हुआ था। सोशल मीडिया में हैशटैग बाबरी जिंदा है चला। हालात यह है कि पाकिस्‍तान में अल्‍पसंख्‍यक हिंदुओं पर लगातार अत्‍याचार बढ रहे हैं। बडी तादात में हिंदुओं का धर्मांतरण किया जा रहा है। हालांकि इस वक्‍त पाकिस्तान खुद फटेहाल है,वहां सरकार भी अस्‍थिर है, बावजूद इसके पाकिस्‍तान भारत विरोध से बाज नहीं आता। अभी कुछ दिनों से उसकी ईरान के साथ तनातनी चल रही थी, जो अब युद्ध में बदल गई है। ऐसे हालात में भारत को अब अपनी विदेश नीति के लिए बेहद सतर्क रहना होगा। हालांकि यूरोप और अफ्रीका में भारत के चाहने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन चीन, पाकिस्‍तान जैसे पड़ोसी देशों से सावधान रहना होगा।

भारत पर असर : जहां तक पाकिस्‍तान से भारत की दुश्‍मनी से भारत पर असर की बात है तो भारत पर व्‍यापारिक तौर पर कोई असर नहीं होगा, क्‍योंकि उल्‍टा पाकिस्‍तान ही भारत पर कई मामलों में निर्भर है। हालांकि पाकिस्‍तान की हरकतों और आतंकी गतिविधियों से भारत में अस्‍थिरता रह सकती है।
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भारत- बांग्‍लादेश : भारत के मित्र सरकार की वापसी
बात करें बांग्‍लादेश की तो शेख हसीना ने अब तक मोदी सरकार के लिए मित्रवत रवैया दिखाया है। हाल ही में बांग्लादेश में एक बार फिर से शेख हसीना के रूप में भारत के मित्र सरकार की वापसी हो गई है। और शेख हसीना वहां प्रधानमंत्री बन चुकी हैं। हलांकि वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी ने वहां अब 'इंडिया आउट' का नारा बुलंद कर दिया है। मालदीव की तरह ही खालिदा जिया की बीएनपी भी इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा देती है और भारत की विरोधी पार्टी है।

भारत पर असर : पीएम मोदी और बांग्‍लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच दोस्‍ताना संबंध हैं। जब तक शेख हसीना बांग्‍लादेश की पीएम हैं, तब तक भारत के साथ बांग्‍लादेश के रिश्‍ते ठीक ही रहेंगे। वैसे भी कई मामलों में भारत बांग्‍लादेश का मददगार ही है।

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